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शान की सवारी या मौत की... Thar चलाने वालों के सिर पर कौन सा भूत सवार होता है?

महिंद्रा थार की पॉपुलैरिटी बढ़ रही है, लेकिन गलत वजहों से. युवा इसे रोमांच और स्टंट के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे कई हादसे हो चुके हैं. गुरुग्राम, जयपुर, लखनऊ और दिल्ली में थार से जुड़े कई जानलेवा एक्सीडेंट सामने आए हैं. थार मालिक अक्सर ओवरस्पीडिंग, नशे में ड्राइविंग और स्टंट करते हैं. यह गाड़ी अब एडवेंचर नहीं, बल्कि “भौकाल और मौत” का प्रतीक बन गई है.

शान की सवारी या मौत की... Thar चलाने वालों के सिर पर कौन सा भूत सवार होता है?
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
By: प्रवीण सिंह

Updated on: 30 Sept 2025 11:41 AM IST

महिंद्रा की एक बहुत ही पॉपुलर एसयूवी है थार, जी हां, आपने भी नाम जरूर सुना होगा. कीमत 12 लाख से लेकर 20 लाख तक जाती है. ऑफरोडिंग के शौकीनों के लिए तो जैसे इससे अच्‍छी कोई गाड़ी ही न हो. लेकिन एक बात और है क‍ि अगर सड़क पर एक्‍सीडेंट्स को देखें, फिर चाहे वो लापरवाह ड्राइविंग का नजारा हो या फिर टशन दिखाने का या भौकाल बनाने का या फिर गुंडई करने का, या फिर ओवर स्‍पीडिंग करते हुए डिवाइडर से टकराकर खुद की और दोस्‍तों की जान से खिलवाड़ करना. ऐसे तमाम मामलों में थार वाले ही शामिल दिखाई दे रहे हैं. तो सवाल उठता है कि थार की ड्राइविंग सीट पर बैठने के बाद किस शैतान की आत्‍मा चलाने वाले के शरीर में घुस जाती है तो ऐसे तमाम कांड सामने आ रहे हैं.

पिछले कुछ महीनों में कई बड़े हादसे इसी गाड़ी से जुड़े रहे हैं. कुछ दिन पहले ही गुरुग्राम में हुए एक दर्दनाक हादसे में थार में सवार 5 दोस्तों की मौत हो गई. बकाबू रफ्तार की वजह से गाड़ी डिवाइडर से जा टकराई जिसमें 5 की जान चली गई जब‍कि एक अन्‍य शख्‍स अस्‍पताल में गंभीर हालत में भर्ती है. की इससे पहले नोएडा, लखनऊ, पटना, जयपुर और भोपाल जैसे शहरों में भी थार हादसे सुर्खियों में रहे.



सवाल उठता है कि आखिर क्यों जब भी कोई खतरनाक सड़क हादसा सामने आता है, उसमें थार का नाम जुड़ जाता है? क्यों थार चलाने वालों पर ‘लापरवाह’, ‘भौकाल टाइप’, ‘ओवरस्पीडिंग’ और ‘खतरा मोल लेने वाले’ जैसे टैग लगने लगे हैं?

थार चलाने वालों की ‘मेंटैलिटी’ पर सवाल

सड़क पर थार दिखते ही लोगों के मन में सिर्फ गाड़ी नहीं, बल्कि ‘भौकाल का ट्रेलर’ नजर आने लगता है. यह गाड़ी अपने आप में एक ‘चलता-फिरता अहंकार’ बन चुकी है. जहां आम लोग कार को सफर और सुविधा के लिए खरीदते हैं, वहीं थार वाले इसे टशन का हथियार और दबंगई का लाइसेंस मान बैठते हैं. शादी-ब्याह के जुलूस से लेकर आधी रात की सड़क तक, थार अकसर तेज़ हॉर्न, बेतुके स्टंट और धुएं के गुबार में दूसरों की शांति को रौंदती हुई निकलती है. ड्राइविंग स्टाइल ऐसा मानो सड़क उनकी जागीर हो और बाकी लोग उनकी रियासत के ‘प्रजा’. कई बार उनके हावभाव देखकर लगता है कि स्टीयरिंग पकड़ते ही उनमें कोई नकली ‘सुपरहीरो’ या गांव के मेले वाला ‘प्लास्टिक की बंदूक वाला दबंग’ जाग उठता है - जिसे सिर्फ दिखावा चाहिए, भले ही दूसरों की जान क्यों न दांव पर लगे. ये वही मानसिकता है, जो ट्रैफिक रूल्स को खिलौना समझती है और पैदल चलने वालों को कीड़े-मकौड़े. थार की सवारी जैसे उन्हें यह झूठा भरोसा दे देती है कि वे सड़क के मालिक हैं और बाकियों का काम बस उनकी रफ्तार का तमाशा देखना है.


मस्ती से मौत तक का सफर

पिछले कुछ महीनों में थार से जुड़े हादसे बार-बार साबित कर चुके हैं कि यह गाड़ी जितनी पावरफुल है, इसे चलाने में लापरवाही उतनी ही खतरनाक भी. 27 सितंबर 2025 को गुरुग्राम में हुआ हादसा इसका सबसे ताज़ा सबूत है. तेज रफ्तार थार डिवाइडर से टकराई और पलभर में उसमें सवार पांच लोगों की मौत हो गई. लेकिन यह कोई अकेला हादसा नहीं. जुलाई 2025 में जयपुर में शादी से लौटते युवाओं की थार पलट गई और तीन की जान चली गई. जून 2025, लखनऊ में नशे में धुत एक थार ड्राइवर ने स्कूटी सवार को कुचल दिया. मई 2025, दिल्ली की रिंग रोड पर ओवरस्पीड थार ने बैरिकेड्स तोड़ दिए, जिससे कई लोग घायल हुए. ये सब हादसे सिर्फ सुर्खियां बने हुए मामले हैं. लेकिन छोटे शहरों और हाइवे पर रोज़ ऐसे दर्जनों हादसे होते हैं, जिनकी रिपोर्टिंग तक नहीं होती. यही वजह है कि थार अब मस्ती की सवारी से मौत की गाड़ी का नया नाम बन गई है.

चलाने वालों की वजह से बदनाम होती थार

थार हादसों की सबसे बड़ी वजह है उसे चलाने वालों की मानसिकता. ऐसा लगता है जैसे थार में बैठने के वाले को यही महसूस होता है कि वह सड़क का बादशाह है और उसकी गाड़ी किसी भी टक्कर को सह लेगी. यही झूठा भरोसा अक्सर मौत में बदल जाता है. इसके अलावा थार ड्राइवरों की आदत है ओवरस्पीडिंग और स्टंट. उनका मानना है कि इतनी बड़ी गाड़ी लेकर धीरे चलना तो उनकी शान के खिलाफ है. और यही सोच उन्हें सीधे खाई में धकेल देती है. सबसे खतरनाक रोल निभाता है सोशल मीडिया. इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर थार से जुड़े स्टंट्स और रील्स धड़ल्ले से वायरल होते हैं. गाड़ियों को उठाते, डोनट्स मारते या हाइवे पर रेस लगाते वीडियो देखकर युवा उन्हें कॉपी करने निकल पड़ते हैं. नतीजा, हादसा और बरबाद परिवार.


नकली मर्दानगी का खेल

थार अब गाड़ी कम और नकली मर्दानगी का प्रतीक ज़्यादा बन चुकी है. गाड़ी की स्पीड और शोर को ताकत मान लेना, दूसरों को ओवरटेक कर यह जताना कि वे किसी से कम नहीं, और फिर सोशल मीडिया पर स्टंट डालकर फॉलोअर्स बढ़ाना - यही बन गया है थार चलाने वालों का एजेंडा. असलियत यह है कि थार मालिक भूल जाते हैं कि असली ताकत दूसरों को डराने में नहीं, बल्कि दूसरों की सुरक्षा का ध्यान रखने में है. लेकिन उनके लिए सड़क पर डर पैदा करना ही ‘हीरोपंती’ है. नतीजा, यह नकली मर्दानगी सीधे मौत की ओर ले जाती है.

स्‍टंटबाजी और शोऑफ का चक्‍कर

रोड सेफ्टी एक्सपर्ट्स बार-बार चेतावनी दे चुके हैं कि थार जैसी गाड़ियों का इस्तेमाल एडवेंचर के बजाय स्टंट और शो-ऑफ के लिए हो रहा है. रोड सेफ्टी एनालिस्ट कहते हैं, “थार की पॉपुलैरिटी बढ़ी है लेकिन गलत वजहों से. यह गाड़ी युवाओं के लिए रोमांच का नाम नहीं, बल्कि मौत से खिलवाड़ का खिलौना बन चुकी है.” थार मालिकों की आदत है नियम तोड़ने की. चाहे नशे में गाड़ी चलाना हो या ओवरस्पीडिंग, थार हमेशा ऐसे मामलों में सबसे आगे होती है.

डर, गुस्सा और बेबसी

थार मालिकों की लापरवाही का असर सिर्फ उन्हीं पर नहीं पड़ता, बल्कि पूरे समाज पर दिखाई देता है. पैदल चलने वाले और टू-व्हीलर सवार थार को देखकर अक्सर किनारे हट जाते हैं. स्थानीय लोग कहते हैं कि सड़क पर थार आ जाए तो बाकी गाड़ियां खुद-ब-खुद साइड कर देती हैं. यह डर और बेबसी का माहौल है. गुरुग्राम जैसे हादसों ने कई परिवारों की जिंदगियां तबाह कर दीं. लेकिन इन हादसों से थार मालिकों की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आता. मानो हादसे सिर्फ खबरें हों, और उनकी गाड़ी उनसे ऊपर.

कानून और जिम्मेदारी

जरूरी है कि थार से जुड़ी इस लापरवाही पर सख्त कार्रवाई की जाए. ओवरस्पीडिंग और स्टंट करने वालों के खिलाफ सिर्फ चालान नहीं, बल्कि गाड़ी जब्त करने जैसी कड़ी सज़ा होनी चाहिए. युवाओं को यह समझाना होगा कि थार रोमांच का नाम है, मौत का नहीं. सोशल मीडिया पर भी ऐसे स्टंट वीडियो पर लगाम लगानी होगी, जो युवाओं को गलत दिशा में धकेल रहे हैं.

महिंद्रा थार एक बेहतरीन एसयूवी है, इसमें कोई शक नहीं. लेकिन इसके मालिकों की सोच ने इसे ‘भौकाल की गाड़ी’ बना दिया है. गुरुग्राम जैसे हादसे हमें यह चेतावनी देते हैं कि अगर मानसिकता नहीं बदली, तो आने वाले सालों में थार का नाम रोमांच या एडवेंचर नहीं, बल्कि मौत और बरबादी का पर्याय बन जाएगा.

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