स्पेस में शुभांशु शुक्ला ने 18 दिन में कर डाले ऐसे धमाके कि विज्ञान भी रह गया दंग, भारत को कैसे मिलेगा फायदा?
भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरिक्ष में 18 दिन बिताकर 60 से अधिक प्रयोग किए. टार्डिग्रेड्स से लेकर मांसपेशियों की मरम्मत, बीज अंकुरण, ऑक्सीजन उत्पादन, माइक्रोएल्गी रिसर्च, स्क्रीन इंटरैक्शन, ब्रेन-टू-कंप्यूटर और जल परिक्षण जैसे प्रयोगों से उन्होंने भविष्य की अंतरिक्ष यात्राओं के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए.

भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर रहकर न केवल भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा, बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान की दिशा में भी बड़ी छलांग लगाई. उन्होंने साथियों के साथ मिलकर 18 दिनों की इस अंतरिक्ष यात्रा के दौरान उन्होंने 60 से अधिक प्रयोग किए, जो चिकित्सा, कृषि, प्रौद्योगिकी और मानव व्यवहार से संबंधित थे. इस मिशन ने न केवल भारत की पहली मानवीय उपस्थिति को आईएसएस पर दर्ज किया, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि भारतीय वैज्ञानिक और अंतरिक्ष यात्री जटिल अंतरिक्ष परियोजनाओं में नेतृत्वकारी भूमिका निभा सकते हैं.
उनके किए गए प्रयोगों का उद्देश्य यह समझना था कि सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण (माइक्रोग्रैविटी) में जीवन कैसे व्यवहार करता है, कैसे भोजन और ऑक्सीजन उत्पन्न की जा सकती है, और कैसे अंतरिक्ष यात्रियों की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति पर इसका प्रभाव पड़ता है. अब आइए, इन आठों महत्वपूर्ण प्रयोगों को विस्तार से समझते हैं.
जीवन की अति-लचीलता का अध्ययन: टार्डिग्रेड्स
शुक्ला ने टार्डिग्रेड्स नामक सूक्ष्म जीवों की भारतीय प्रजातियों पर अंतरिक्ष के प्रभावों का अध्ययन किया. ये जीव, जो अत्यधिक तापमान, विकिरण और निर्वात जैसी चरम परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं, अंतरिक्ष के तनावों को झेलने की अपनी क्षमता के लिए पहचाने जाते हैं. यह प्रयोग यह समझने के लिए था कि क्या अंतरिक्ष में भी ये जीव अपनी जैविक प्रणाली को स्थिर रख सकते हैं, और इनसे भविष्य की अंतरिक्ष जीवन रक्षा प्रणाली का निर्माण संभव हो सकता है.
अंतरिक्ष में मांसपेशी क्षय पर शोध
आईएसएस पर शुक्ला ने मायोजेनेसिस नामक प्रक्रिया पर अध्ययन किया, यानी मांसपेशी ऊतक का निर्माण. सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में मांसपेशियों पर दबाव न पड़ने के कारण उनका क्षय होता है. इस शोध का उद्देश्य यह था कि अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने पर शरीर में क्या-क्या जैविक परिवर्तन होते हैं, और यह जानकारी पृथ्वी पर भी मांसपेशियों से जुड़ी बीमारियों के इलाज में सहायक हो सकती है.
अंतरिक्ष में बीज अंकुरण का विश्लेषण
शुक्ला ने मूंग और मेथी जैसे बीजों को अंतरिक्ष में अंकुरित कर यह जांचा कि सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण बीजों के विकास को कैसे प्रभावित करता है. इन बीजों को बाद में आईएसएस के फ्रीजर में संरक्षित भी किया गया, जिससे वैज्ञानिक तुलना कर सकें कि पृथ्वी बनाम अंतरिक्ष में विकास में क्या अंतर रहा. यह अध्ययन भविष्य में अंतरिक्ष में खेती की संभावनाओं की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
ऑक्सीजन पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों का प्रयोग
सायनोबैक्टीरिया की दो प्रजातियों पर किए गए प्रयोग ने यह साबित करने की कोशिश की कि ये प्रकाश संश्लेषक जीव अंतरिक्ष यानों की रीसायक्लिंग प्रणालियों का हिस्सा बन सकते हैं. ये जीव तेजी से बढ़ते हैं, कार्बन-नाइट्रोजन का पुनर्चक्रण करते हैं और ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं, जिससे भविष्य के दीर्घकालिक मिशनों में इनकी भूमिका अत्यंत उपयोगी हो सकती है.
शैवाल: अंतरिक्ष में भोजन और ईंधन की उम्मीद
शुक्ला ने सूक्ष्म शैवालों की वृद्धि और उनके जैविक गुणों पर सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव का अध्ययन किया. चूंकि ये शैवाल ऊर्जा स्रोत के रूप में और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन के रूप में प्रयोग किए जा सकते हैं, इस अध्ययन ने भविष्य में अंतरिक्ष स्टेशनों और चंद्र-मंगल मिशनों के लिए आत्मनिर्भर जीवन प्रणाली का मार्ग प्रशस्त किया.
ज़ीरो-ग्रैविटी में स्क्रीन इंटरैक्शन
"वॉयेजर डिस्प्ले" नामक इस प्रयोग में यह देखा गया कि शून्य गुरुत्व में अंतरिक्ष यात्री डिजिटल स्क्रीन के साथ कैसे संवाद करते हैं. क्या लंबे समय तक स्क्रीन का इस्तेमाल मानसिक थकावट बढ़ाता है? क्या इंटरफेस को अंतरिक्ष के अनुरूप बेहतर डिज़ाइन किया जा सकता है? इस प्रयोग ने ऑनबोर्ड कंप्यूटर सिस्टम के भावी डिज़ाइन को प्रभावित करने की दिशा तय की है.
मस्तिष्क और कंप्यूटर के बीच संवाद
एक ऐतिहासिक प्रयोग में, शुक्ला और पोलैंड के अंतरिक्ष यात्री स्लावोज़ उज़्नान्स्की ने विचारों के माध्यम से कंप्यूटर से संपर्क साधने की कोशिश की. इस प्रयोग का उद्देश्य यह देखना था कि क्या अंतरिक्ष में एकाग्रता की गहन स्थिति में मस्तिष्क तरंगें कंप्यूटर को संकेत भेज सकती हैं. यदि यह तकनीक विकसित होती है, तो यह अंतरिक्ष में संचार के तरीके में क्रांति ला सकती है.
पानी के बुलबुले से गुरुत्वाकर्षण को समझना
शुक्ला ने सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में जल के व्यवहार को दिखाने के लिए पानी का बुलबुला बनाकर प्रदर्शन किया. उन्होंने सतही तनाव का उपयोग कर यह साबित किया कि ज़ीरो ग्रैविटी में पानी किस तरह से स्थिर रह सकता है. यह प्रयोग अंतरिक्ष में तरल पदार्थों के प्रबंधन की नई संभावनाओं की ओर इशारा करता है.
भारत को कैसे मिलेगा फायदा?
शुभांशु शुक्ला के इन ऐतिहासिक वैज्ञानिक प्रयोगों से भारत को दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों की तैयारी में सीधा फायदा मिलेगा, क्योंकि अब हमारे पास माइक्रोग्रैविटी में कृषि, स्वास्थ्य, ऑक्सीजन उत्पादन और ब्रेन-टू-कंप्यूटर इंटरफेस जैसे क्षेत्रों में व्यवहारिक डेटा और अनुभव है. इससे भारत न केवल अंतरिक्ष अनुसंधान में आत्मनिर्भर होगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर स्पेस टेक्नोलॉजी और बायोटेक्नोलॉजी में अग्रणी भूमिका निभा सकेगा.
अंतरिक्ष में जिया भारत का सपना
अंतरिक्ष यात्रा से लौटते समय शुभांशु शुक्ला का मुस्कुराता चेहरा और भावुक आंखें यह दर्शाती थीं कि यह सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि पूरे भारत का सपना था जो उन्होंने अंतरिक्ष में जिया. उनका यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान को वैश्विक मंच पर एक नई ऊंचाई पर ले गया है.