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Great Himalayan Earthquake: क्या भारत को ‘ग्रेट हिमालयन अर्थक्वेक’ के लिए तैयार रहना चाहिए? जापान की मेगाक्वेक चेतावनी के बाद बढ़ी चिंता

Great Himalayan Earthquake: जापान की मेगा-भूकंप चेतावनी ने हिमालयी क्षेत्र में संभावित ग्रेट हिमालयन अर्थक्वेक को लेकर भारत की चिंताएं बढ़ा दी हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, हिमालय के नीचे भारतीय और यूरेशियन प्लेटों की टक्कर लगातार तनाव जमा कर रही है, जो भविष्य में 8.0+ तीव्रता का विनाशकारी भूकंप पैदा कर सकती है. NCS के डायरेक्टर का कहना है कि छोटे भूकंप अभी तनाव को कम कर रहे हैं, लेकिन खतरा खत्म नहीं हुआ है.

Great Himalayan Earthquake: क्या भारत को ‘ग्रेट हिमालयन अर्थक्वेक’ के लिए तैयार रहना चाहिए? जापान की मेगाक्वेक चेतावनी के बाद बढ़ी चिंता
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( Image Source:  Sora AI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 11 Dec 2025 5:32 PM

Great Himalayan Earthquake: जापान से हाल ही में मिली मेगा भूकंप (Megaquake) की चेतावनी ने एशिया के दूसरे सबसे संवेदनशील भूकंपीय क्षेत्र हिमालय की ओर फिर से ध्यान खींच लिया है. जापान पैसिफिक रिंग ऑफ फायर (Pacific Ring of Fire) पर बैठा है, जहां दुनिया की 90% भूकंपीय गतिविधियां होती हैं. पर विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के उत्तर में फैला हिमालय भी किसी बड़े भूकंप के लिए उतना ही ‘प्राइम ज़ोन’ है.

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इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, जापान के खतरे ने भारतीय वैज्ञानिकों को इस बात पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर किया है कि क्या हिमालय भी एक “टिक-टिक करता टाइम बम” है?

क्या है ‘ग्रेट हिमालयन अर्थक्वेक’?

Great Himalayan Earthquake एक ऐसी संभावित विशाल भूकंपीय घटना है जो हिमालयी क्षेत्र में कभी भी हो सकती है. यह भूकंप इतना बड़ा हो सकता है कि इसकी तीव्रता 8.0 या उससे ज्यादा हो - यानी वही श्रेणी जिसमें दुनिया के सबसे विनाशकारी भूकंप आते हैं.

क्यों होता है यह खतरा?

हिमालय जिस मेन हिमालयन थ्रस्‍ट (MHT) पर बना है, वह एक विशाल फॉल्ट लाइन है. यहां भारतीय टेक्टॉनिक प्लेट लगातार - और बेहद धीमी लेकिन निश्‍चित - गति से यूरेशियन प्लेट के नीचे धंस रही है. इस धंसने से धरती की परतों में लगातार तनाव (stress) जमा होता रहता है. एक समय आता है जब चट्टानों में इस तनाव को सहने की क्षमता खत्म हो जाती है. और फिर अचानक - एक ही झटके में - मुक्त होने वाला तनाव भयानक भूकंप में बदल जाता है.

इतिहास गवाह है - यह क्षेत्र कई बार हिल चुका है

  • 1934 का बिहार–नेपाल भूकंप (8.0) - 8,000 से अधिक मौतें
  • 1950 असम–तिब्बत भूकंप (8.6) - 20वीं सदी का सबसे बड़ा स्थलीय भूकंप
  • 2015 नेपाल भूकंप (7.8) - 9,000+ मौतें
  • 2005 कश्मीर भूकंप (7.6) - 80,000 से अधिक मौतें

इन घटनाओं के बावजूद वैज्ञानिक मानते हैं कि हिमालय में अभी भी बहुत बड़ा स्टोर किया हुआ तनाव मौजूद है.

क्या भारत को डरना चाहिए? वैज्ञानिक का बड़ा बयान

इंडिया टुडे से बातचीत में राष्ट्रीय भूकंपीय केंद्र (NCS) के डायरेक्टर डॉ. ओम प्रकाश मिश्रा ने कहा कि हिमालय फिलहाल एक तरह की सेफ्टी वाल्व की तरह काम कर रहा है. उनके अनुसार, “हिमालय छोटे-छोटे भूकंपों के जरिए अंदर जमा तनाव को धीरे-धीरे रिलीज कर रहा है. ये 2.5-3.5 मैग्नीट्यूड के छोटे झटके नुकसान नहीं करते, लेकिन बड़ी मात्रा में तनाव को बाहर निकाल देते हैं. इसलिए फिलहाल ग्रेट हिमालयन अर्थक्वेक को लेकर घबराने की जरूरत नहीं है.”

इसे वैज्ञानिक भाषा में Aseismic Creep कहा जाता है - जब तनाव छोटे झटकों में धीरे-धीरे निकलता है और बड़े भूकंप की संभावना कुछ समय के लिए कम हो जाती है.

लेकिन… खतरा खत्म नहीं हुआ है

विशेषज्ञ मानते हैं कि टेक्टॉनिक प्लेटों का दबाव तो अब भी जारी है, इसलिए “लॉन्ग टर्म” में खतरे को नकारा नहीं जा सकता. छोटे झटके राहत देते हैं, पर पूरी तरह सुरक्षा की गारंटी नहीं.

भारत का नया भूकंप मानचित्र: हिमालय बना ‘अत्यधिक जोखिम’ क्षेत्र

हाल ही में भारत सरकार ने ब्‍यूरो ऑफ इंडियन स्‍टैंडर्ड्स (BIS) के Earthquake Design Code को अपडेट किया है. यह अपडेट पिछले 50 वर्षों में सबसे बड़ा बदलाव माना जा रहा है. इसके तहत जो मुख्‍य बदलाव शामिल किए गए हैं, वो हैं...

  • पूरा हिमालय सबसे ऊंचे जोखिम वाले ज़ोन VI में डाल दिया गया है (पहली बार).
  • पूरे भारत का 61% हिस्सा अब “मॉडरेट से हाई रिस्क” कैटेगरी में आ चुका है.
  • राजधानी दिल्ली, देहरादून, गंगटोक, श्रीनगर, ईटानगर - सब हाई रिस्क जोन में हैं.

इसका मतलब है कि देश का एक बड़ा हिस्सा किसी भी समय मध्यम या बड़े भूकंप की चपेट में आ सकता है.

अगर ‘ग्रेट हिमालयन अर्थक्वेक’ आया तो क्या होगा?

विशेषज्ञों के अनुसार संभावित प्रभाव बेहद गंभीर हो सकते हैं:

  • उत्तर भारत की बड़ी आबादी प्रभावित होगी : दिल्ली–एनसीआर, उत्तराखंड, हिमाचल, बिहार, उत्तर प्रदेश और असम जैसे क्षेत्र लाखों घरों और करोड़ों लोगों की जीवनरेखा हैं. मजबूत निर्माण मानकों की कमी से नुकसान बहुत बढ़ सकता है.
  • पहाड़ी राज्यों में भूस्खलन और हिमस्खलन : हिमालय की ढलानों पर बसे शहर - धरमशाला, मसूरी, गंगटोक, नेहरू, उत्तरकाशी - सब जोखिम में.
  • नेपाल और तिब्बत में व्यापक विनाश : नेपाल तो 2015 की तरह एक बड़ी त्रासदी झेल चुका है; पुनर्निर्माण आज भी जारी है.
  • नदियों पर खतरा और बांध टूटने का जोखिम : गीर, तीस्ता, अलकनंदा, मंदाकिनी जैसे पर्वतीय नदी तंत्र भारी क्षति झेल सकते हैं.
  • करोड़ों लोगों के विस्थापन का खतरा : एक बड़ा भूकंप क्षेत्रीय मानवीय संकट का कारण बन सकता है.

जापान और भारत - दो देश, दो खतरे, लेकिन सीख समान

जापान भूकंपों का दुनिया में सबसे बड़ा ‘लैब’ माना जाता है. वहां की तकनीक, अर्ली वार्निंग सिस्टम, भूकंप-प्रतिरोधी इमारतें, और प्रशिक्षण पूरी दुनिया के लिए मिसाल हैं. लेकिन भारत में :

  • Early Warning Systems सीमित हैं
  • पहाड़ी राज्यों में कमजोर कंस्ट्रक्शन
  • सिस्मिक कोड्स का पालन बेहद कम
  • पुराने स्कूल–हॉस्पिटल भूकंप-सहिष्णु नहीं
  • नगर निगमों के पास मॉनिटरिंग क्षमता कम

इसलिए भारत को जापान से सीखकर पहले से तैयार रहना ही एकमात्र रास्ता है.

क्या भारत को अभी से तैयारी करनी चाहिए?

विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय सरकार सही दिशा में बढ़ रही है, पर अभी बहुत कुछ बाकी है:

  • अर्ली वार्निंग सिस्टम का विस्तार : उत्तराखंड में जो सिस्टम काम कर रहा है, उसे पूरे हिमालयी बेल्ट में लागू करना होगा.
  • भवन निर्माण के सख्त मानक : दिल्ली, पहाड़ी शहरों, गांवों - सब जगह निर्माण कोड लागू हों.
  • सिस्मिक माइक्रोज़ोनेशन : हर शहर को वैज्ञानिक रूप से यह पता होना चाहिए कि कौन से इलाके सबसे अधिक खतरे में हैं.
  • स्कूल–हॉस्पिटल को प्राथमिकता : ये इमारतें सबसे सुरक्षित होनी चाहिए, ताकि संकट में जानें बचाई जा सकें.
  • जनता को जागरूकता और ड्रिल्स : भूकंप से बचाव में पहले 30 सेकंड सबसे महत्वपूर्ण होते हैं - अगर लोग प्रशिक्षित हों, तो जानें बचाई जा सकती हैं.

हिमालय शांत नहीं है - बस धीरे-धीरे सांस ले रहा है

रिपोर्ट साफ इशारा करती है कि फिलहाल छोटे झटके बड़े खतरे को कम कर रहे हैं लेकिन पूरी तरह रोक नहीं सकते. टेक्टॉनिक प्लेटें लगातार टकरा रही हैं और कभी भी तनाव की सीमा पार हो सकती है. जैसे जापान अपने मेगा भूकंप के लिए तैयार होने की कोशिश कर रहा है, वैसे ही भारत को भी हिमालय की गोद में छिपे इस प्राकृतिक खतरे को गंभीरता से लेना होगा. प्रकृति भले समय खरीद दे, लेकिन अगला बड़ा भूकंप क्षितिज पर कभी भी उभर सकता है.

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