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अंतिम फैसला हमारा... ऐसा क्या बोल गए RSS चीफ मोहन भागवत, जो संतों ने खोला मोर्चा?

RSS Chief vs Saint: अखिल भारतीय संत समिति ने मंदिर-मस्जिद विवादों के बीच RSS चीफ मोहन भागवत की टिप्पणी की आलोचना की है, जिसमें उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि ऐसे धार्मिक मामलों का फैसला धार्मिक नेताओं को करना चाहिए.

अंतिम फैसला हमारा... ऐसा क्या बोल गए RSS चीफ मोहन भागवत, जो संतों ने खोला मोर्चा?
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RSS Chief vs Saint
सचिन सिंह
Edited By: सचिन सिंह

Updated on: 24 Dec 2024 9:47 AM IST

RSS Chief vs Saint: आरएसएस चीफ मोहन भागवत की हालिया टिप्पणियों ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है, जिसे लेकर उनके खिलाफ संतों के संगठन अखिल भारतीय संत समिति (AKSS) ने मोर्चा खोल दिया है. मोहन भागवत ने कहा था कि मंदिर-मस्जिद विवाद को हवा देकर और सांप्रदायिक विभाजन फैलाकर कोई भी हिंदुओं का नेता नहीं बन सकता है.

अखिल भारतीय संत समिति के महासचिव स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि ऐसे धार्मिक मामलों का फैसला आरएसएस के बजाय 'धर्माचार्यों' (धार्मिक नेताओं) को करना चाहिए. इस दौरान उन्होंने RSS को 'सांस्कृतिक संगठन' बताया.

'अंतिम फैसला धर्मगुरुओं का होगा'

सरस्वती ने कहा, 'जब धर्म का सवाल उठता है तो धार्मिक गुरुओं को निर्णय लेना होता है और वे जो भी निर्णय लेंगे, उसे संघ और वीएचपी स्वीकार करेंगे.' यानी कि इन मामलों में अंतिम फैसला संतों को होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि भागवत की अतीत में इसी तरह की टिप्पणियों के बाद भी 56 नए जगहों पर मंदिर संरचनाओं की पहचान की गई है. उन्होंने कहा कि धार्मिक संगठन अक्सर राजनीतिक एजेंडे की तुलना में जनता की भावनाओं के जवाब में कार्य करते हैं.

भागवत हमारे अनुशासनकर्ता नहीं -जगद्गुरु

इससे पहले जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने भी मोहन भागवत के बयान को तुष्टीकरण वाला बताते हुए कहा था कि उन्हें हिंदू धर्म के बारे में ज्ञान की कमी है. रामभद्राचार्य ने आरएसएस चीफ के अधिकार को चुनौती देते हुए कहा, 'मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मोहन भागवत हमारे अनुशासनकर्ता नहीं हैं, बल्कि हम हैं.' रामभद्राचार्य ने कहा, 'सकारात्मक पक्ष यह है कि चीजें हिंदुओं के पक्ष में सामने आ रही हैं. हम इसे कोर्टों और जनता के समर्थन से सुरक्षित करेंगे.'

पहली बार RSS चीफ के खिलाफ संत

यह पहली बार है जब भागवत को हिंदू संतो के भीतर से बड़ी असहमति का सामना करना पड़ा है. जगद्गुरु रामभद्राचार्य जैसे धार्मिक गुरुओं का मानना ​​है कि संघ को धर्म से जुड़े फैसलों में आध्यात्मिक हस्तियों का सम्मान करना चाहिए. भागवत की ये टिप्पणी हिंदू समूहों के उन मस्जिदों को गिराने की कानूनी याचिका दायर करने के बाद आई है, जिसमें दावा किया गया कि वे यूपी के संभल में शाही जामा मस्जिद सहित मंदिर स्थलों पर बनाई गई थी.

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