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Pahalgam Attack: 68 साल से भारत में बसी रजिया का दर्द: 'गोली खाकर मर जाऊंगी, लेकिन पाकिस्तान नहीं जाऊंगी

पहलगाम अटैक के बाद भारत सरकार ने हिंदुस्तान में बसे पाकिस्तान के लोगों को अपने वतन लौटने के लिए कहा है. जहां ओडिशा की रजिया का कहना है कि पूरी जिंदगी भारत में रहने के बाद अब हम कैसे जाएंगे. हमें गोली मार दो, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है.

Pahalgam Attack: 68 साल से भारत में बसी रजिया का दर्द: गोली खाकर मर जाऊंगी, लेकिन पाकिस्तान नहीं जाऊंगी
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हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 28 April 2025 12:08 PM IST

"मैंने अपनी ज़िंदगी भारत को दी है, अब बुढ़ापे में मुझसे मेरा वजूद मत छीनो." बालासोर की एक संकरी गली के एक सादे से घर में 72 साल की रजिया सुल्ताना चुपचाप बैठी हैं. चेहरे पर झुर्रियां हैं, आंखों में धुंध है, लेकिन उनका दिल… वो आज भी उसी मिट्टी से जुड़ा है जिस पर उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी बिता दी.

68 साल पहले महज़ 4 साल की उम्र में वे अपने पिता के साथ पाकिस्तान से भारत आई थीं. जन्म ज़रूर पाकिस्तान में हुआ था, पर उम्र के हर एक पड़ाव की गवाही इस देश की मिट्टी ने दी है. खेल का मैदान, स्कूल की घंटी, शादी की मेहंदी, मां बनने की घबराहट, पति की बीमारी और अब पोती की किलकारी, सब कुछ यहीं है.

सरकारी नोटिस ने बदली जिंदगी

पर अब अचानक से एक नोटिस आता है. सरकार कहती है कि देश छोड़ दो. रजिया पूछती हैं, "किस देश को छोड़ दूं बेटा? कौन सा देश?" जिस पाकिस्तान को वो सिर्फ नाम से जानती हैं, जहां उनका कोई नहीं, कोई ठिकाना नहीं, कोई रिश्ता नहीं, उसी पाकिस्तान को अब उनका नया 'घर' कहा जा रहा है. उनके पति बालासोर के ही थे. अब इस दुनिया में नहीं हैं. 2023 में कैंसर ने उन्हें छीन लिया. दो बेटे हैं, बहुएं हैं, एक नन्ही सी पोती है जो उनके गले में बाहें डालकर सोती है. ये है उनका संसार.

रजिया के पास हैं सारे डॉक्यूमेंट्स

उनके पास आधार कार्ड है, पैन कार्ड है, वोटर आईडी है, वृद्धावस्था पेंशन कार्ड है. यानी सब कुछ जो एक आम भारतीय नागरिक के पास होता है. सिर्फ एक चीज़ नहीं है. उस देश से जुड़े "कागज़", जिसमें वो पैदा हुई थीं. पर कभी जानी नहीं. अगर हमने कुछ गलत किया है, तो गोली मार दो. लेकिन मुझे उस सरहद के पार मत भेजो, जहां मेरे लिए न कोई घर है, न दरवाज़ा. ये शब्द रजिया की आवाज़ नहीं, उनकी टूटी हुई आत्मा की पुकार थी.

यहीं पैदा हुए हैं यहीं मरेंगे

हम यहीं पैदा हुए, यहीं बड़े हुए, और यहीं मरेंगे. ये घर हमारा है. हम कहीं नहीं जाएंगे.10 मई को रजिया की एक ज़रूरी मेडिकल अपॉइंटमेंट है. उन्हें किडनी की बीमारी है. डॉक्टर ने कहा है, इलाज ज़रूरी है. लेकिन नोटिस कहता है "देश छोड़ो."

प्रशासन कहता है. ये सिर्फ एक आदेश है, जो रिकॉर्ड्स के आधार पर दिया गया है. लेकिन क्या रिकॉर्ड एक इंसान की जड़ों को काट सकते हैं? ये कहानी सिर्फ रजिया सुल्ताना की नहीं है. ये उस हर इंसान की है, जिसने ज़िंदगी को घर समझकर जिया, लेकिन उम्र के उस पड़ाव पर खड़ा है जहां उससे उसका वजूद छीनने की कोशिश हो रही है.

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