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नया साल, नई चुनौतियां... राजनीतिक दलों के लिए कैसा रहेगा 2025?

New Year 2025 Challenges For BJP Congress: साल 2024 के आखिर में सत्ता और विपक्ष के बीच संबंध बेहद खराब स्थिति में पहुंच गए. यहां तक कि राहुल गांधी के खिलाफ संसद में हुई धक्का मुक्की केस में एफआईआर दर्ज करनी पड़ी. ऐसे में अगले साल सत्ता और विपक्ष के बीच संबंध सुधरेंगे, इसकी संभावना बेहद कम है. वहीं, दिल्ली और बिहार में चुनाव भी होने हैं, जिसमें पीएम मोदी, नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल की प्रतिष्ठा दांव पर होगी. इसके अलावा भी इस साल कई राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिलेंगे. आइए, इस पर एक नजर डालते हैं...

नया साल,  नई चुनौतियां... राजनीतिक दलों के लिए कैसा रहेगा 2025?
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( Image Source:  ANI )

New Year 2025 Challenges For BJP Congress: भारत में राजनीतिक नजरिए से 2024 का साल काफी अहम रहा. नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने. इसी साल अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन हुआ, जिससे भाजपा काफी उत्साहित थी, लेकिन लोकसभा चुनाव के परिणाम ने बीजेपी को चौंका दिया. उसे फैजाबाद सीट पर भी हार का सामना करना पड़ा. पीएम मोदी को अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा. इससे विपक्ष समेत कई लोगों को लगने लगा था कि भाजपा सत्ता पर अपनी पकड़ खोने लगी है. हालांकि, बीजेपी ने हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में शानदार वापसी कर सबको चौंका दिया.

हरियाणा में बीजेपी ने अप्रत्याशित जीत हासिल की, वहीं महाराष्ट्र में दो तिहाई से भी अधिक सीटें जीतकर कांग्रेस को बैकफुट पर धकेल दिया. कांग्रेस लोकसभा चुनाव में मिली जीत से काफी उत्साहित थी, लेकिन विधानसभा चुनावों में मिली हार से वह इंडी गठबंधन में शामिल अन्य दलों की बढ़ती चुनौतियों का सामना करने लग गई है. इसी साल कई वर्षों के इंतजार के बाद जम्मू-कश्मीर में फिर से चुनाव हुए. इंजीनियर राशिद की अवामी इत्तेहाद पार्टी और जमात-ए-इस्लामी द्वारा समर्थित उम्मीदवारों की मौजूदगी के बावजूद, लोगों ने मुख्यधारा की पार्टियों में अपना भरोसा बनाए रखा. ओडिशा में नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजेडी को रिकॉर्ड 24 साल तक सरकार चलाने के बाद सत्ता छोड़नी पड़ी.

अगर 2025 की बात करें तो आर्थिक मोर्चे पर कई चुनौतियां रहने वाली हैं, क्योंकि दूसरी तिमाही में विकास दर उम्मीद से अधिक धीमी रही है. वहीं, राजनीति के लिए लिहाज से भी यह साल काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है. आइए जानते हैं कि 2025 राजनीतिक नजरिए से कैसा रहने वाला है और क्या-क्या चुनौतियां आने वाली हैं...

सत्ता और विपक्ष के बीच संबंध हुए खराब

साल 2024 के खत्म होते-होते सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच संबंध सबसे खराब स्थिति में पहुंच गए हैं. संसद में हुई धक्कामुक्की में दो सांसदों का चोटिल होकर अस्पताल में भर्ती होना और नेता विपक्ष व कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के खिलाफ एफआईआर सत्ता और विपक्ष के बीच संबंधों को और खराब कर दिया. देश के इतिहास में पहली बार विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को पद से हटाने की कोशिश की, जो नाकाम रही. अगले साल भी संसद में जोरदार हंगामा होने की उम्मीद है. ।

दो राज्यों में तीन नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर

दिल्ली और बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव में होने हैं. इस चुनाव में तीन नेताओं नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. बिहार में दो दशकों से भी अधिक समय से नीतीश ने राजनीतिक और चुनावी असफलताओं को अवसरों में बदल दिया है. अंत में हमेशा ही अपनी स्थिति बनाए रखने में सफल रहे हैं. उन पर बार-बार विचारधारा की तुलना में राजनीतिक सुविधा को चुनने का आरोप भी लगाया गया है. अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाला बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के लिए एक बड़ी परीक्षा होगी. यह चुनाव बिहार के मुख्यमंत्री बनने के लिए लंबे समय से प्रतीक्षा कर रहे तेजस्वी यादव की राजनीतिक क्षमता का भी परीक्षा लेगा.

वहीं, दिल्ली में 2013 से सत्ता पर काबिज अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पहले से कहीं अधिक दबाव में है. केजरीवाल के सामने भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाने और जमानत पर बाहर आने के बाद AAP को फिर से सत्ता पर काबिज करने की चुनौती है. एक दशक से भी अधिक समय पहले AAP देश की सबसे सफल राजनीतिक स्टार्टअप बन गई थी. आज केजरीवाल की छवि और उनकी राजनीति का ब्रांड दोनों ही दांव पर है.

पीएम मोदी की ब्रांड वैल्यू का भी बिहार और दिल्ली दोनों में टेस्ट होगा. दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटें 2014 से जीतने के बावजूद बीजेपी ढाई दशक से अधिक समय से दिल्ली में राजनीतिक वनवास में है. इस बार बीजेपी के पास सत्ता में आने का मौका रहेगा.

विवादास्पद कानून

2025 में संसद में दो विवादास्पद और ध्रुवीकरण विधेयकों पर विचार किया जाएगा. इसमें लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक और वक्फ संपत्तियों को विनियमित करने वाला विधेयक शामिल है. वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक को संसद में पारित करवाना केंद्र सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी. फिलहाल इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया है. संविधान में संशोधन करने वाले विधेयक को पारित होने के लिए सदन की कुल सदस्यता के 50% से अधिक और उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों के विशेष बहुमत की आवश्यकता होगी. बीजेपी के पास दोनों सदनों में उस तरह का बहुमत नहीं है.

पिछले 10 सालों में बीजेपी ने विवादास्पद कानून पारित करवाने में सफलता हासिल की है, जिसमें जम्मू-कश्मीर को विभाजित करने और (पूर्ववर्ती) राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदलने का विधेयक भी शामिल है. अब स्थिति अलग है. लगभग पूरा विपक्ष एक राष्ट्र, एक चुनाव के प्रस्ताव के खिलाफ एकजुट है. वहीं, वक्फ विधेयक भाजपा की टीडीपी और जेडी(यू) जैसे सहयोगियों के साथ बातचीत करने की क्षमता का परीक्षण करेगा, जिनके पास पर्याप्त मुस्लिम समर्थन आधार है.

मंदिर-मस्जिद विवाद रहेगा जारी

सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा हिंदू मंदिरों के खंडहरों पर बनाए गए मस्जिदों के मालिकाना हक को चुनौती देने वाले दीवानी मुकदमों की बाढ़ को फिलहाल रोक दिया है. आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी कहा है कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद नए स्थानों पर इसी तरह के मुद्दों को उठाना स्वीकार्य नहीं है, लेकिन ऐसी संभावना न के बराबर है कि 2025 में मंदिर और मस्जिद पर राजनीति बंद हो जाएगी. इस समय देश की 10 मस्जिदों/धर्मस्थलों को लेकर कम से कम 18 याचिकाएं कोर्ट में लंबित हैं. सबसे ज्यादा मुकदमे उत्तर प्रदेश में दायर किए गए हैं, जहां लोकसभा चुनाव में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा.

जाति जनगणना और यूसीसी

कई सालों से लंबित दशकीय जनगणना को सरकार इस बार शुरू कर सकती है. बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार जनगणना में जाति को शामिल करेगी. भाजपा ने अभी तक ऐसा करने से परहेज किया है. कांग्रेस का मानना ​​है कि जाति और सामाजिक न्याय का मुद्दा भाजपा के हिंदुत्व के प्रयास का मुकाबला कर सकता है. यही वजह है कि भाजपा 'बटेंगे तो कटेंगे' और 'एक हैं तो सुरक्षित हैं' जैसे राजनीतिक नारे दे रही है. प्रधानमंत्री ने गरीबों, युवाओं, महिलाओं और किसानों को 'सबसे बड़ी जाति' के रूप में पेश किया है.

स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने मौजूदा 'सांप्रदायिक नागरिक संहिता' के बजाय 'धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता' की ओर बढ़ने की आवश्यकता पर जोर दिया. लोकसभा में संविधान के 75 साल पूरे होने पर बहस का जवाब देते हुए भी उन्होंने इसका जिक्र किया. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की है कि उत्तराखंड की तरह हर राज्य में भाजपा की सरकार समान नागरिक संहिता लाएगी. उत्तराखंड में यूसीसी जनवरी 2025 में लागू होगी. इस समय पूर्वोत्तर के राज्यों समेत 14 राज्यों में भाजपा के मुख्यमंत्री हैं. यूसीसी को आगे बढ़ाने के प्रयास राजनीति में नई दरार पैदा कर सकते हैं.

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