क्या है मुंबई की पगड़ी प्रणाली? एकनाथ शिंदे का विधानसभा में बड़ा ऐलान, जानें किरायेदार और मकान मालिक को कैसे मिलेगी राहत
मुंबई के दक्षिण और मध्य इलाकों में दशकों से चली आ रही पगड़ी प्रणाली अब बदलाव के दौर में प्रवेश करने जा रही है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कभी किरायेदारों को सुरक्षा देने वाली यह किराया नियंत्रण व्यवस्था आज हजारों पुरानी इमारतों के लिए खतरे की वजह बन चुकी है. अब राज्य सरकार पुरानी पगड़ी इमारतों के पुनर्विकास के लिए नए नियम बनाएगी.
मुंबई के दक्षिण और मध्य इलाकों में दशकों से चली आ रही पगड़ी प्रणाली अब बदलाव के दौर में प्रवेश करने जा रही है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कभी किरायेदारों को सुरक्षा देने वाली यह किराया नियंत्रण व्यवस्था आज हजारों पुरानी इमारतों के लिए खतरे की वजह बन चुकी है. रखरखाव के अभाव में 60–70 साल पुरानी कई इमारतें जर्जर हो चुकी हैं, कुछ ढह चुकी हैं तो कई को असुरक्षित घोषित किया जा चुका है.
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पुनर्विकास से जुड़े कानूनी और आर्थिक विवादों के कारण यह समस्या सालों से जस की तस बनी हुई थी. अब महाराष्ट्र सरकार ने इस गतिरोध को खत्म करने की दिशा में बड़ा कदम उठाने का संकेत दिया है. सरकार का दावा है कि आने वाले नए नियम न केवल पुनर्विकास को रफ्तार देंगे, बल्कि किरायेदारों और मकान मालिकों दोनों के हितों की रक्षा भी करेंगे.
विधानसभा में बड़ा ऐलान
गुरुवार को महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विधानसभा में कहा कि राज्य सरकार पुरानी पगड़ी इमारतों के पुनर्विकास के लिए नए नियम बनाएगी. उन्होंने इसे मुंबई को पगड़ी-मुक्त बनाने की दिशा में एक अहम कदम बताया. शिंदे के अनुसार प्रस्तावित नियमों से बड़े पैमाने पर पुनर्विकास संभव होगा और लंबे समय से अटके प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी मिल सकेगी. उन्होंने स्पष्ट किया कि यह नीति किरायेदारों को सुरक्षित आवास और मकान मालिकों को उचित मुआवजा दिलाने पर केंद्रित होगी.
क्या है पगड़ी प्रणाली?
पगड़ी प्रणाली मुंबई में आज़ादी से पहले प्रचलित एक पुरानी किरायेदारी व्यवस्था है. इसके तहत किरायेदार मकान मालिक को एकमुश्त बड़ी रकम (प्रीमियम) देता था और बदले में बेहद कम किराये कभी-कभी सिर्फ कुछ सौ रुपये प्रतिमाह पर लगभग स्थायी रूप से घर में रहने का अधिकार पा जाता था. महाराष्ट्र किराया नियंत्रण अधिनियम के चलते दशकों तक किराया नहीं बढ़ पाया. नतीजतन, मकान मालिकों की आमदनी बेहद कम रही और इमारतों के रखरखाव के लिए जरूरी संसाधन नहीं जुट पाए. समय के साथ यही इमारतें रहने लायक नहीं रहीं.
पुनर्विकास क्यों अटका रहा?
जहां मकान मालिक कम किराये और बढ़ते रखरखाव खर्च से जूझते रहे, वहीं किरायेदारों को पुनर्विकास के दौरान अपने घर और अधिकार खोने का डर सताता रहा. जिसके चलते कई इलाकों में पुनर्विकास की प्रक्रिया सालों तक ठप पड़ी रही.
सरकार का संतुलित ढांचा, किसे क्या मिलेगा?
- किरायेदारों को उनके मौजूदा फ्लैट के बराबर आकार का नया, सुरक्षित फ्लैट मिलेगा.
- मकान मालिकों को उनके स्वामित्व के अनुसार स्पष्ट विकास अधिकार दिए जाएंगे, जिससे उन्हें उचित मुआवजा मिल सके.
- कम आय वाले परिवारों के लिए सरकार अतिरिक्त सहायता देगी, ताकि पुनर्निर्मित घर उन्हें बिना किसी लागत के मिल सकें.
- जिन भूखंडों पर ऊंचाई या अन्य प्रतिबंधों के कारण पूरा निर्माण संभव नहीं होगा, वहां बची हुई क्षमता को विकास अधिकारों में बदला जाएगा, जिसे कहीं और उपयोग या बेचा जा सकेगा.
किरायेदारों और मकान मालिकों को राहत
नई नीति से किरायेदारों को सुरक्षित और आधुनिक घर मिलने की उम्मीद है, वह भी बिना अपने अधिकार खोए। कई मामलों में यह बदलाव उन्हें पुराने किराये के मकानों से निकलकर पूरी तरह स्वामित्व वाले फ्लैट तक पहुंचा सकता है. वहीं, सालों से कम किराये में फंसे मकान मालिकों को भी अब पुनर्विकास और उचित मुआवजे का स्पष्ट रास्ता मिलता नजर आ रहा है. अगर यह योजना जमीन पर उतरती है, तो मुंबई की जर्जर इमारतों की तस्वीर आने वाले सालों में पूरी तरह बदल सकती है.





