Early Monsoon: समय से पहले आया मानूसन तो ना हों ज्यादा खुश, अगर हुआ साल 2009 जैसा हाल तो...
इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून 24 मई को सामान्य तिथि से आठ दिन पहले केरल पहुंच गया, जबकि पूर्वोत्तर भारत में यह 12 दिन पहले आ गया. हालांकि विशेषज्ञों के अनुसार, जल्दी मानसून आना अच्छी बारिश की गारंटी नहीं है. 2009 में भी मानसून जल्दी आया था, लेकिन बारिश कमजोर रही. असल मायने चार महीनों में बारिश की निरंतरता और वितरण में है, जो कृषि उत्पादन और आर्थिक वृद्धि को प्रभावित करते हैं.

Early Monsoon: इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून (Monsoon) ने 24 मई को केरल में दस्तक दे दी, जो कि सामान्य समय (1 जून) से 8 दिन पहले है. पूर्वोत्तर भारत में यह मानसून और भी जल्दी पहुंच गया, लगभग 12 दिन पहले. पिछली बार जब मानसून इससे भी पहले आया था, वो साल 2009 था, जब इसकी शुरुआत 23 मई को हुई थी. लेकिन 2009 की तरह ही, यह समय से पहले पहुंचा मानसून जरूरी नहीं कि अच्छा और संतुलित साबित हो.
इतिहास गवाह है कि मानसून का समय से पहले आना, पूरे देश में समान और भरपूर बारिश की गारंटी नहीं देता. कई बार ऐसा हुआ है कि मानसून केरल तट पर जल्द पहुंचा, लेकिन देशभर में उसकी गति और बारिश की मात्रा असमान रही.
असल मायने में जून से लेकर अगले चार महीनों तक बारिश की निरंतरता, समयबद्धता और भौगोलिक संतुलन ही यह तय करेगा कि भारत की कृषि उत्पादन और आर्थिक विकास की रफ्तार कैसी रहेगी.
2009: जब जल्दी आया मानसून बना था चिंता का कारण
2009 में भी ठीक ऐसा ही हुआ था. उस साल मानसून ने 23 मई को ही केरल तट पर दस्तक दी थी, यानी इस साल से भी एक दिन पहले. लेकिन इसके बाद जो हुआ, उसने पूरे देश को संकट में डाल दिया. मानसून की शुरुआत तो शानदार थी, लेकिन जुलाई और अगस्त में देश के बड़े हिस्सों में भीषण वर्षा की कमी देखी गई. नतीजा यह हुआ कि भारत को उस साल सूखे का सामना करना पड़ा और खरीफ की फसलें बुरी तरह प्रभावित हुईं.
2009 में देशभर में मानसून की कुल बारिश सामान्य से 22% कम रही थी. पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे कृषि प्रधान राज्यों में वर्षा में भारी कमी आई थी. इस कारण चावल, दाल और गन्ने जैसी फसलें बर्बाद हो गईं.
इस बार भी खतरे कम नहीं हैं
हालांकि इस बार मानसून की शुरुआती प्रगति तेज है, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि "शुरुआत से ज्यादा जरूरी है निरंतरता और वितरण." अगर मानसून आगे जाकर कमजोर पड़ता है या कुछ राज्यों में बारिश होती है और कुछ में नहीं, तो इससे कृषि व्यवस्था डगमगा सकती है.
मौसम विभाग क्या कह रहा है?
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने अनुमान जताया है कि इस साल सामान्य से थोड़ी ज्यादा बारिश हो सकती है, लेकिन यह भी साफ किया गया है कि मानसून की वास्तविक उपयोगिता इस बात पर निर्भर करेगी कि जून से सितंबर तक वर्षा समय पर, लगातार और हर क्षेत्र में समान रूप से होती है या नहीं. शुरुआती मानसून कई बार "फ्लैश इन द पैन" साबित होता है, यानी अचानक शुरू होकर जल्द ही कमजोर पड़ जाता है.
कृषि पर निर्भरता और आर्थिक असर
भारत की करीब 55% खेती मानसूनी बारिश पर निर्भर करती है. ऐसे में अगर मानसून अनियमित हुआ, तो इसका असर केवल किसानों पर ही नहीं बल्कि खाद्यान्न आपूर्ति, महंगाई, ग्रामीण आय और देश की GDP तक पड़ता है. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि जून-जुलाई में बारिश ठीक नहीं रही तो धान और गन्ने की फसल को बड़ा नुकसान हो सकता है. अगर अगस्त-सितंबर में कम बारिश हुई तो दालों, मक्के और सोयाबीन जैसी फसलों की बुवाई प्रभावित होगी.
क्या सबक लेना चाहिए 2009 से?
- जल्दी आया मानसून स्थायी राहत नहीं देता, इसे लेकर अति उत्साह खतरनाक हो सकता है
- जल संरक्षण और सिंचाई योजनाओं को मजबूत करने की जरूरत है ताकि बारिश की कमी से फसलें नष्ट न हों
- सरकार को चाहिए कि रिजर्व अनाज स्टॉक और MSP प्रणाली को सतर्कता से मॉनिटर करे
- किसानों को फसल बीमा योजनाओं में बढ़-चढ़कर जोड़ा जाए ताकि संभावित नुकसान से बचाव हो
बारिश का असली इम्तिहान अभी बाकी है
वक्त से पहले आया मानसून एक उम्मीद तो जरूर है, लेकिन भारत जैसे विशाल और विविधता वाले देश के लिए यह सिर्फ एक शुरुआत है. अगर 2009 जैसी स्थिति दोहराई गई, तो यह "जल्दी की खुशी" बहुत महंगी साबित हो सकती है. इसलिए मौसम वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं और किसानों, तीनों को मिलकर आगामी चार महीनों की हर बूंद पर नजर रखनी होगी.