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राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों में दखल? केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उठाए बड़े सवाल

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर हस्ताक्षर करने की समयसीमा तय की गई थी और 10 तमिलनाडु विधेयकों को "डिम्ड असेंट" मान लिया गया था. केंद्र ने कहा कि यह संविधान की मूल संरचना से छेड़छाड़ है और इससे विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका के बीच संतुलन बिगड़ जाएगा.

राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों में दखल? केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उठाए बड़े सवाल
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( Image Source:  Social Media )
सागर द्विवेदी
By: सागर द्विवेदी

Updated on: 17 Aug 2025 6:30 AM IST

सुप्रीम कोर्ट के उस अहम फैसले पर केंद्र सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है, जिसमें अदालत ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधानसभा से पारित विधेयकों पर हस्ताक्षर या अस्वीकृति देने की समय सीमा तय की थी. केंद्र ने शनिवार को दायर अपने लिखित जवाब में कहा कि न्यायपालिका द्वारा इस तरह की समय सीमा तय करना संविधान में प्रदत्त शक्तियों के दायरे से बाहर है और यह विधायिका, कार्य पालिका और न्यायपालिका के बीच बने संतुलन को बिगाड़ सकता है.

केंद्र ने आगाह किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए 'डिम्ड असेंट' (स्वतः स्वीकृति) की अवधारणा गढ़ना संविधान की मूल संरचना से छेड़छाड़ है. सरकार ने कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपालों के फैसलों पर न्यायिक हस्तक्षेप उन्हें न्यायपालिका के अधीनस्थ बना देगा, जो कि संविधान की भावना और उसकी बुनियादी संरचना के खिलाफ है.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आपत्ति

केंद्र ने विशेष रूप से 8 अप्रैल को दिए गए जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन के फैसले पर आपत्ति जताई, जिसमें 10 तमिलनाडु विधेयकों को "डिम्ड असेंट" मान लिया गया था. केंद्र ने कहा कि,'अनुच्छेद 142 अदालत को 'डिम्ड असेंट' (स्वतः स्वीकृति) की अवधारणा गढ़ने का अधिकार नहीं देता, क्योंकि यह संवैधानिक और विधायी प्रक्रिया को उलट-पुलट कर देता है.

राजनीतिक जवाब, न कि न्यायिक हस्तक्षेप

सरकार ने दलील दी कि राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर लिए गए फैसले राजनीतिक प्रकृति के होते हैं और इनके जवाब लोकतांत्रिक तरीके से खोजे जाने चाहिए, न कि न्यायपालिका द्वारा, केंद्र ने कहा कि,'विधेयकों से जुड़े मुद्दे, जिनका संबंध राष्ट्रपति और राज्यपालों के निर्णयों से है, उनके जवाब राजनीतिक होने चाहिए, न कि अनिवार्य रूप से न्यायिक.

संविधान में समय सीमा का अभाव

केंद्र ने जोर दिया कि जब भी संविधान ने किसी प्रक्रिया में समयसीमा तय करनी चाही, तो उसने स्पष्ट रूप से इसका उल्लेख किया. लेकिन अनुच्छेद 200 और 201 में कोई समयसीमा तय नहीं की गई. केंद्र ने अपने लिखित जवाब में कहा कि' चूंकि अनुच्छेद 200 या 201 के पाठ में कोई निश्चित समयसीमा निर्धारित नहीं है, इसलिए किसी भी प्रकार की न्यायिक समीक्षा या न्यायिक व्याख्या के माध्यम से ऐसी समयसीमा थोपी नहीं जा सकती'.

गवर्नर की भूमिका पर टिप्पणी

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा तमिलनाडु के राज्यपाल के साथ किए गए व्यवहार को भी अनुचित बताया. केंद्र ने कहा कि, 'राज्यपाल राज्यों में विदेशी नहीं हैं, वे केवल केंद्र के प्रतिनिधि मात्र नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हित और राज्यों में लोकतांत्रिक इच्छाशक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं और राष्ट्रीय एकता के हिस्से के रूप में कार्य करते हैं.

शक्तियों के संतुलन पर खतरा

केंद्र ने यह भी कहा कि तीनों अंग विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका, संविधान से शक्ति प्राप्त करते हैं। इनमें से किसी को भी दूसरों से 'ऊंचा दर्जा' नहीं दिया गया है. लोकतांत्रिक समाज में उत्पन्न होने वाली हर जटिल समस्या की चाबी या समाधान न्यायपालिका के पास नहीं होता.

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