अमेरिका से Stryker ICV खरीदेगा भारत, चीन के लिए बन सकता है सिरदर्द
पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुई द्विपक्षीय बैठक में इस बात पर सहमति बनी है कि अमेरिका से भारत Stryker ICV खरीदेगा. पहली बार अमेरिका ने 2000 में भारत को स्ट्राइकर बेचने की पेशकश की थी. दोनों देशों की सेनाओं के बीच कई संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यासों में ICV का इस्तेमाल किया गया था.

Stryker Infantry Combat Vehicles ICV: भारत अपनी रक्षा जरूरतों को तेजी से पूरा करने के लिए अमेरिका से जेवलिन एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल्स और स्ट्राइकर इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल्स (ICV) को खरीदेगा. यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच वाशिंगटन में व्हाइट हाउस में हुई चर्चा के बाद एक संयुक्त बयान में कही गई. अमेरिका ने पहली बार 2000 में भारत को स्ट्राइकर बेचने की पेशकश की थी. दोनों देशों की सेनाओं के बीच कई संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यासों में ICV का इस्तेमाल किया गया है.
'द ट्रिब्यून' की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल अक्टूबर में कनाडा और भारत के बीच कूटनीतिक विवाद के बाद ICV की खरीद पर चर्चा रुक गई थी, क्योंकि कनाडा भी आईसीवी के उत्पादन से जुड़ा हुआ है. हालांकि, इस साल 10 जनवरी को भारत में स्ट्राइकर के लिए विनिर्माण सुविधाएं स्थापित करने के प्रस्तावों को अमेरिकी सरकार ने मंजूरी दे दी.
530 स्ट्राइकर खरीदने की योजना
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 10 Mechanised Infantry Battalions को लैस करने के लिए 530 स्ट्राइकर खरीदने की योजना बना रहा है. कुछ यूनिट्स को सीधे आयात किया जाएगा, जबकि बाकी को कुछ स्वदेशी सामग्री के साथ भारत में बनाया जाएगा. अगर ऐसा होता है तो भारत स्ट्राइकर का निर्माण करने वाला अमेरिका के बाहर पहला देश होगा.
लद्दाख और LAC में तैनात किया जाएगा स्ट्राइकर
स्ट्राइकर को मुख्य रूप से लद्दाख और उत्तर-पूर्व में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के साथ ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात किए जाने की संभावना है, जहां 2020 की शुरुआत से चीन के साथ गतिरोध जारी है. एलएसी पर भारी चीनी सैन्य जमावड़े और कई बार घुसपैठ करने के बाद भारत ने यहां बड़ी संख्या में सैनिकों के साथ-साथ बख्तरबंद वाहनों और तोपों को तैनात किया है.
लद्दाख में 50000 भारतीय सैनिकों को किया गया तैनात
पिछले साल के अंत में तनाव कम होने से पहले दोनों पक्षों के सैनिक चार साल तक आमने-सामने थे. इसे देखते हुए लद्दाख में लगभग 50,000 भारतीय सैनिकों को तैनात किया गया है, जो 2020 से पहले की संख्या से काफी अधिक है.
लद्दाख में 500 बख्तरबंद वाहन तैनात
गतिरोध के कारण एलएसी पर सेना की तैनाती में भी बदलाव किया गया है. एलएसी पर तैनाती के लिए अतिरिक्त मशीनीकृत ब्रिगेड भी बनाई जा रही हैं. सेना ने लद्दाख में करीब 500 बख्तरबंद वाहन तैनात किए हैं, जिनमें टी-90 और टी-72 टैंक और बीएमपी-II ICV शामिल हैं. सेना अपने भंडार में मौजूद 2,500 BMP को भी बदलने की कोशिश कर रही है, जो 1980 के दशक से सेवा में हैं. अब इनकी जगह ट्रैक्ड और व्हील्ड आईसीवी को तैनात किया जाएगा.
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लद्दाख में 18000 फीट की ऊंचाई पर स्ट्राइकर का ट्रायल
पिछले साल सितंबर-अक्टूबर में भारत ने लद्दाख में 18,000 फीट की ऊंचाई पर स्ट्राइकर का ट्रायल किया था. इस साल ट्रायल का एक और दौर होने और आईसीवी में कुछ संशोधन और रेट्रो फिटमेंट शामिल किए जाने की उम्मीद है. ताकि अत्यधिक ऊंचाई, खराब जलवायु और ऊबड़-खाबड़ इलाकों जैसी विशिष्ट भारतीय परिचालन आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके.
स्ट्राइकर आईसीवी 2002 में अमेरिकी सेवा में हुआ शामिल
स्ट्राइकर आईसीवी 2002 में अमेरिकी सेवा में शामिल हुआ था. इसका उपयोग इराक, अफगानिस्तान, सीरिया और यूक्रेन में युद्ध में किया गया था. यह आठ पहियों वाला बख्तरबंद कार्मिक वाहक है, जो अपने दो चालक दल के अलावा नौ लड़ाकू-सज्जित सैनिकों के एक दस्ते को ले जा सकता है. यह हल्के हथियारों से लैस है, जिसमें एक मशीनगन या ग्रेनेड लांचर लगा हुआ है. इसका 350 एचपी इंजन इसे 100 किमी प्रति घंटे की अधिकतम गति और 500 किलोमीटर की परिचालन सीमा प्रदान करता है.
लगभग 16 टन है स्ट्राइकर आईसीवी का वजन
स्ट्राइकर आईसीवी का वजन लगभग 16 टन है. इस वजह से इन्हें चिनूक हेलिकॉप्टरों के जरिए हवाई मार्ग से ले जाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि इन हेलिकॉप्टरों की पेलोड क्षमता 12 टन है, जबकि रूस द्वारा निर्मित एमआई-26, जो दुनिया का सबसे बड़ा हेलिकॉप्टर है, 20 टन भार उठा सकता है.
स्ट्राइकर ICV की क्या है खासियत?
स्ट्राइकर 8 व्हील ड्राइव कॉम्बेट व्हीकल है, जिसमें 30 मिमी गन और 105 मोबाइल गन लगी हुई है. इसकी रेंज 483 किलोमीटर है. यह 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से मूव कर सकता है. यह बेल्ट ऑनसेरेमिक आर्म्ड प्रोटेक्शन से लैस है. इसे चिनूक हेलिकॉप्टरस से आसानी से ऊंचाई वाले इलाकों में पहुंचाया जा सकता है. भारतीय वायुसेना के पास तीन Mi-26 है, जो रखरखाव संबंधी समस्याओं के कारण पिछले कुछ सालों से सेवा में नहीं है. वर्तमान में चंडीगढ़ में नंबर 3 बेस रिपेयर डिपो में रूसी मदद से इनकी मरम्मत का काम चल रहा है. इस साल इनके चालू होने की उम्मीद है.
स्ट्राइकर की खरीद का कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के साथ-साथ निजी उद्योग द्वारा ICV विकसित करने के लिए कई स्वदेशी परियोजनाएं चल रही हैं. डीआरडीओ ने केस्ट्रेल नामक 8 पहियों वाला बख्तरबंद प्लेटफॉर्म विकसित किया है, जिसका निर्माण टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स द्वारा किया जा रहा है. अलग-अलग मिशन और युद्ध के मैदान में इस्तेमाल के लिए इसके कई वैरिएंट हैं. सेना ने अब तक इनमें से 25 वाहन खरीदे हैं, जिन्हें लद्दाख में तैनात किया गया है. वहीं, 100 और वाहनों को यहां तैनात किए जाने की योजना है.