ये रास्ते हैं जापान के! कौन सच्चा कौन झूठा- नीति आयोग के सुब्रमण्यम या विरमानी?
भारत की वैश्विक आर्थिक रैंकिंग पर नीति आयोग के दो शीर्ष अधिकारियों के बयानों में टकराव देखने को मिला. सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने भारत को जापान से आगे बताया, जबकि सदस्य अरविंद विरमानी ने दिसंबर 2025 तक इंतजार की सलाह दी. IMF का अनुमान भारत को चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर संकेत करता है, लेकिन तस्वीर अभी पूरी नहीं है.

भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है. ऐसा दावा नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने 24 मई को खुले मंच से किया. वहीं, उसी नीति आयोग के सदस्य डॉ. अरविंद विरमानी का कहना है कि यह मुकाम भारत को दिसंबर 2025 के अंत तक हासिल होगा. इस विरोधाभास ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि देश की आर्थिक रैंकिंग पर किसका आंकड़ा सही है? क्या भारत सचमुच जापान को पीछे छोड़ चुका है या अभी इस दौड़ में कुछ महीने बाकी हैं?
प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुब्रमण्यम ने आत्मविश्वास से कहा, “भारत अब चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. सिर्फ अमेरिका, चीन और जर्मनी हमारे आगे हैं. अगर हम अपनी रफ्तार बनाए रखें, तो ढाई-तीन साल में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन जाएंगे.” उन्होंने इसका आधार IMF के हालिया डेटा को बताया.
विरमानी का क्या है कहना?
दूसरी ओर, अर्थशास्त्री अरविंद विरमानी का बयान थोड़ा सतर्क और तकनीकी है. उनका कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय तुलना करते वक्त आमतौर पर वर्षभर की जीडीपी को देखा जाता है, और उस आधार पर भारत 2025 के अंत तक जापान से आगे निकल सकता है. उन्होंने साफ कहा, “पूरा साल खत्म होने से पहले किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी. IMF ने भी यह अनुमान पूरे वर्ष 2025 के लिए दिया है.”
4.187 ट्रिलियन होगी भारत की जीडीपी
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की अप्रैल रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा कीमतों पर 2025 में भारत की जीडीपी 4.187 ट्रिलियन डॉलर रहने की उम्मीद है, जबकि जापान की अनुमानित जीडीपी 4.186 ट्रिलियन डॉलर होगी. यह अंतर बहुत मामूली है, और IMF ने भी इसे ‘प्रोजेक्शन’ यानी अनुमान के रूप में ही पेश किया है.
क्या कहते हैं इकोनॉमिस्ट?
वित्तीय विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद तकनीकी भाषा और समय सीमा की व्याख्या का मामला है. एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने कहा, “संभव है कि सुब्रमण्यम ने तात्कालिक आंकड़ों के आधार पर बात की हो, जबकि विरमानी का जोर औसत वार्षिक जीडीपी पर है. इसमें किसी की बात पूरी तरह गलत नहीं, लेकिन संदर्भ अलग हैं.”
सभी के लिए है कन्फ्यूजन
असल में, सवाल यह नहीं कि भारत आगे निकला है या नहीं. सवाल है सरकार की तरफ से सही मैसेज देना का. जब नीति आयोग के दो वरिष्ठ पदाधिकारी अलग-अलग समयरेखा और मापदंडों पर बयान दें, तो आम आदमी, मीडिया और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के लिए भ्रम की स्थिति पैदा होना स्वाभाविक है.
पूरी नहीं हुई दौड़
हकीकत यह है कि भारत एक निर्णायक आर्थिक मोड़ पर खड़ा है. जापान के साथ यह कांटे की टक्कर सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि यह वैश्विक मंच पर भारत की महत्वाकांक्षा और ताकत का संकेत भी है. ऐसे में यह और जरूरी हो जाता है कि नीतिगत बयानों में तालमेल हो, ताकि देश की आर्थिक तस्वीर दुनियाभर में एक सुस्पष्ट और सशक्त स्वरूप में पेश की जा सके.
तो कौन सच्चा, कौन झूठा? शायद कोई नहीं. मुद्दा सिर्फ ये है कि तस्वीर पूरी दिखनी बाकी है, और दिसंबर 2025 तक इसका साफ फ्रेम तैयार होगा. अभी भारत चौथे नंबर की दहलीज पर है. कदम कुछ आगे बढ़ा चुका है, लेकिन दौड़ पूरी नहीं हुई है.