'अगर घर में दीपक जलाया या फोड़े पटाखे तो हो जाएगी मौत', इस गांव में दिवाली पर अंधेरा रहता है कायम! वजह कर देगी हैरान
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले का समू गांव इस दीवाली भी अंधेरे में डूबा रहेगा. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जब एक महिला ने अपने पति के अंतिम संस्कार के समय आत्मदाह किया और गांव को श्राप दिया. तब से गांववाले दीवाली पर पटाखे जलाने या भव्य उत्सव मनाने से बचते हैं.

हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले का समू गांव इस दीवाली भी अंधेरे में डूबा रहेगा. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जब एक महिला ने अपने पति के अंतिम संस्कार के समय आत्मदाह किया और गांव को श्राप दिया. तब से गांववाले दीवाली पर पटाखे जलाने या भव्य उत्सव मनाने से बचते हैं.
गांव की उप सरपंच वीणा देवी ने शनिवार को बताया कि दीवाली के दिन सिर्फ दीप जलाना ही सीमित है और किसी भी तरह के महंगे उत्सव से परहेज किया जाता है. किसी भी नियम का उल्लंघन, गांववालों के अनुसार, आपदा की चेतावनी के समान माना जाता है.
सती का श्राप और उसकी कहानी
स्थानीय लोगों के अनुसार, कई सौ साल पहले एक गर्भवती महिला दीवाली की तैयारी कर रही थी, तभी उसके पति का शव घर लाया गया. पति गांव के राजा की सेना का सैनिक था. दुखी महिला ने अंतिम संस्कार की आग में कूदकर आत्मदाह किया और जाते-जाते शाप दिया कि गांववाले कभी दीवाली नहीं मना पाएंगे. थाकुर बिधी चंद, गांव के बुजुर्ग, बताते हैं, "जब भी हमने दीवाली मनाने की कोशिश की, या तो किसी की मौत हुई या कोई आपदा आ गई."
शाप को तोड़ने की असफल कोशिशें
गांव वालों ने कई बार 'हवन' और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से शाप को खत्म करने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. विजय कुमार, एक अन्य ग्रामीण ने बताया, "तीन साल पहले हमने एक बड़ा यज्ञ किया, लेकिन शाप की शक्ति अब भी कायम है. गांववाले इतने प्रभावित हैं कि दीवाली के दिन कई लोग घर से बाहर भी नहीं निकलते.
दीवाली पर सीमित उत्सव
समू गांव में दीवाली के दिन केवल दीप जलाने की अनुमति है. पटाखे फोड़ना या भव्य सजावट करना मना है. स्थानीय प्रशासन और बुजुर्ग इस परंपरा का सम्मान करते हैं और इसे तोड़ने की कोई पहल नहीं की जाती.