Begin typing your search...

भारत पर अमेरिकी प्रतिबंध का इतिहास: डोनाल्ड ट्रंप अकेले नहीं! इन राष्ट्रपतियों ने भी भारत पर लगाया था बैन

भारत पर अलग-अलग समय में अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं. यही वजह है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते उतार-चढ़ावों वाले रहे हैं. ताजा मामला डोनाल्ड ट्रंप द्वारा 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की वजह से सुर्खियों में है, लेकिन ऐसा नहीं है कि वह भारत के खिलाफ प्रतिबंध लगाने वाले पहले राष्ट्रपति हैं. इससे पहले भी कुछ राष्ट्रपतियों ने परमाणु परीक्षण के नाम पर तो कुछ ने रक्षा खरीद, व्यापार नीति और मानवाधिकार जैसे मुद्दे पर अनबन होने के बाद ये कदम उठाए.

भारत पर अमेरिकी प्रतिबंध का इतिहास: डोनाल्ड ट्रंप अकेले नहीं! इन राष्ट्रपतियों ने भी भारत पर लगाया था बैन
X

देश की आजादी के बाद 70 सालों में भारत और अमेरिका के बीच डिप्लोमैटिक रिलेशंस अलग-अलग समय में वहां के राष्ट्रपतियों के साथ उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. कुछ राष्ट्रपति ऐसे हुए जिनके साथ भारत के संबंध तनावपूर्ण या खराब रहे. पाकिस्तान और मध्य-पूर्व के मुद्दे और रूस से नजदीकी संबंधों की वजह से भारत पर सबसे ज्यादा प्रतिबंध लगे. कुछ मामलों अमेरिकी कार्रवाई की वजह अलग-अलग मामलों पर वैचारिक मतभेद रहा है. खासकर पाकिस्तान के संदर्भ में आतंकवाद विरोधी प्रयासों और मध्य-पूर्व में ईरान के संबंध में.

शीत युद्ध (1945 से लेकर 1990) के दौरान अमेरिका और भारत के संबंध सबसे ज्यादा खराब रहे. क्योंकि अमेरिका ने पश्चिमी देशों का नेतृत्व किया. जबकि भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई. सोवियत संघ के साथ भारत की नजदीकी भी प्रमुख कारणों में एक रहा. ओवरआल, भारत और अमेरिका के बीच सात दशकों से भी अधिक समय से जटिल और विकासशील संबंध रहे हैं.

मतभेदों के बावजूद सहयोग

अगर अहम बात करें 1947-1960 तक के दौर की तो अमेरिका ने 15 अगस्त, 1947 को भारत को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दी थी. साथ ही राजनयिक संबंध भी स्थापित किए. शीत युद्ध के दौरान भारत की गुटनिरपेक्ष नीति के कारण अमेरिका की नीति भारत के साथ सतर्कता भरे रहे. हालांकि, मतभेदों के बावजूद अमेरिका ने हरित क्रांति के दौरान भारत को कृषि सहायता दी थी.

तनाव सहयोग और विरोध

साल 1960 से 1970 के बीच 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध ने अमेरिका के साथ भारत के संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया. इस दौर में अमेरिका ने भारत के खिलाफ पाकिस्तान को सैन्य सहायता प्रदान की. 1974 के परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत पर सख्त प्रतिबंध लगाए थे. भारत ने वियतनाम में अमेरिकी हस्तक्षेप की आलोचना की, जिससे नाराज होकर अमेरिका ने अनाज की आपूर्ति भारत को बंद करने का निर्णय लिया था.

उदारीकरण के बाद की भागीदारी

साल 1990 से 2000 के काल में सोवियत संघ के पतन और भारत के आर्थिक उदारीकरण के कारण अमेरिका के साथ सहयोग बढ़ा. अमेरिका और भारत ने 2005 में रक्षा संबंधों के लिए नए ढांचे पर हस्ताक्षर किए, जिससे द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को बढ़ावा मिला. साल 2008 में भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते ने संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया.

रणनीतिक साझेदारी का दौर

साल 2000 के बाद से अब तक के काल आपे आर रणनीतिक साझेदारी वाला दौर कह सकते हैं. हालांकि इस दौर में भी अलग—अलग मुद्दों पर दोनों देशों के बीच उभरकर सामने आए. इस दौर में अमेरिका और भारत ने रक्षा, व्यापार, प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में सहयोग को मजबूत किया. इस बीच LEMOA, COMCASA और BECA जैसे समझौतों के साथ भारत अमेरिका का एक प्रमुख रक्षा साझेदार भी बने. इस दौर में भारत अमेरिका के बीच उभरती प्रौद्योगिकियों पर अमेरिका-भारत पहल, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और क्वांटम प्रौद्योगिकियों जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग को बढ़ावा मिला.

अमेरिका के किन-किन राष्ट्रपतियों ने भारत पर लगाए प्रतिबंध

1. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूर्व राष्ट्रपति ट्रूमैन ने भारत को खाद्यान्न सहायता पर शर्तें लगाई और परमाणु इंधन देने से मना कर दिया था.

2. जॉन एफ. कैनेडी के 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत का साथ दिया था. उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को चीनी आक्रमण के विरुद्ध पूर्ण अमेरिकी समर्थन का आश्वासन दिया और भारत द्वारा सहायता मांगे जाने पर नैतिक और ठोस सहायता का वादा किया था. भारत की गुटनिरपेक्ष नीति के बावजूद कैनेडी भारत को परिवहन विमानों और उपकरणों सहित सैन्य सहायता प्रदान करने के लिए सहमत हुए. इस मामले में कैनेडी भारत के प्रति अपनी सहानुभूति पूर्ण रखने की वजह से दूसरों राष्ट्रपतियों से अलग रहे. उन्होंने मई 1959 में कहा था कि कि एशिया में नेतृत्व के लिए भारत और चीन के बीच संघर्ष को गंभीरता से लेने की जरूरत है. भारत की सहायता के लिए 1 बिलियन डॉलर के सहायता पैकेज का प्रस्ताव रखा था.

3. रिचर्ड निक्सन का कार्यकाल तो भारत के लिए बहुत बुरा साबित हुआ था. निक्सन ने उस दौर में इंदिरा गांधी के प्रति उनकी नापसंदगी और पाकिस्तान समर्थक रुख से प्रेरित होकर बयान देते थे. उन्होंने भारतीय महिलाओं को "निस्संदेह दुनिया की सबसे बदसूरत महिला करार दिया था. निक्सन इंदिरा गांधी को 'चुड़ैल' तक कहने से नहीं चूके थे. भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 के दौरान इंदिरा गांधी के साहस और आत्मविश्वास की वजह से नाराज रहते थे. उन्होंने इंदिरा गांधी को अमेरिकी सत्ता के लिए एक चुनौती माना था. भारत को हराने के लिए उन्होंने यूएसए एंटरप्राइज को बंगाल की खाड़ी में उतार दिया था. इतना ही नहीं उन्होंने गुप्त रूप से अमेरिका को चीन के करीब पहुंचने में भी मदद की थी. निक्सन ने भारत को आर्थिक सहायता तक रोक दी थी.

4. पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन कार्यकाल सहयोग और विरोध दोनों का रहा. अधिकांश मामलों में उनके कार्यकाल के दौरान दोनों देशों के बीच भारत के लिए सम्मान का रहा. क्लिंटन ने 2000 में अपनी यात्रा के दौरान भारत और वैश्विक मामलों में उसकी भूमिका के प्रति सम्मान व्यक्त किया, जिससे अमेरिका-भारत संबंधों में एक बदलाव आया. क्लिंटन भारत को समस्या के बजाय एक साझेदार के रूप में देखने वाले पहले अमेरिकी नेता थे. क्लिंटन ने भारत के आर्थिक विकास का समर्थन किया और द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को प्रोत्साहित किया. उन्होंने परमाणु और मिसाइल हथियारों की होड़ को रोकने की वकालत करते हुए भारत की एक विश्वसनीय न्यूनतम परमाणु निवारण क्षमता की आवश्यकता को स्वीकार किया. अमेरिकी अपनी अर्थव्यवस्था को खोलने में भारत की सफलता और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में उसकी उपलब्धियों की प्रशंसा की. क्लिंटन की यात्रा अमेरिका-भारत संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ.

हालांकि, 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर प्रतिबंध लगाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति भी बिल क्लिंटन ही थे. ये प्रतिबंध शस्त्र निर्यात नियंत्रण अधिनियम, जिसे ग्लेन संशोधन भी कहा जाता है, की धारा 102 के तहत उन्होंने लगाए गए थे. यह अधिनियम परमाणु परीक्षण करने वाले गैर-परमाणु हथियार संपन्न देशों को आर्थिक और सैन्य सहायता देने पर प्रतिबंध लगाता है. उन्होंने इन परीक्षणों की व्यापक अंतरराष्ट्रीय निंदा हुई और अमेरिका तथा अन्य देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए. उसके बाद बराक ओबामा और जो बाइडन के दौर में मतभेदों के बावजूद संबंधों में तेजी से सुधार हुए और भारत अमेरिका रणनीतिक साझेदार बन गया.

5. हालांकि डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी दोनों देश के बीच संबंध बेहतर बने रहे. लेकिन दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद उनका नजरिया यूक्रेन और रूस के बीच वार की वजह से बदल गया. रूस से भारत के तेल खरीदने से पीछे न हटने और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मध्यस्थता को लेकर मामला बिगड़ने पर उन्होंने 50% टैरिफ लगा दिया. जो उनकी नकारात्मक सोच का प्रतीक है.

अमेरिका भारत संबंधों में चुनौतियां और अवसर

भारतीय इस्पात और एल्युमीनियम पर अमेरिकी शुल्क जैसे व्यापार विवादों ने तनाव पैदा किया है. अमेरिका ने भारत को रूसी तेल पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए प्रोत्साहित किया. चुनौतियों के बावजूद अमेरिका और भारत ने आतंकवाद-निरोध, अंतरिक्ष अन्वेषण और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग को पहले से बेहतर बनाया है.



India News
अगला लेख