कहानी 30 साल के SCO की? तिआनजिन में 'एशियन क्लब' का जमावड़ा! महाशक्तियों के मिलन से दुनिया को मिलेगा खास संदेश
अमेरिका-भारत टैरिफ वार को लेकर मचे बवाल के बीच SCO की दो दिवसीय बैठक आज से चीन के तियानजिन शहर में जारी है. बहुत कम समय में यह एशिया का सबसे प्रभावशाली बहुपक्षीय मंच बन गया है. अमेरिका, ईयू सहित पूरी दुनिया की इस बैठक पर नजर है. खासकर शी जिनपिंग, पीएम मोदी और व्लादिमीर पुतिन के संदेश को लेकर डोनाल्ड ट्रंप की नींद गायब है. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की शुरुआत चीन से हुई थी.

भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ को लेकर जारी तनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान के बाद चीन दौरे पर हैं. दूसरी तरफ चीन के ही तियानजिन शहर में एससीओ की दो दिवसीय बैठक भी आज सुबह से जारी है. इस बैठक में शामिल होने के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी पहुंच गए हैं. पीएम मोदी जापान से सीधे चीन पहुंचे हैं. उनकी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय वार्ता जारी है. बताया जा रहा है कि दुनिया के देशों की पीएम मोदी, शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात पर है. इस बैठक की अहमियत इसलिए भी है कि अमेरिका और इंडिया के बीच टैरिफ वार की वजह से पूरी दुनिया बवाल के हालात हैं.
इस बीच चीन में हुई शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक ने एक बार फिर इस मंच की अहमियत को दुनिया के सामने रखा है. इसकी अहमियत इसलिए बढ़ी है कि इसमें चीन, रूस और इंडिया जैसे देश शामिल हैं, जिन्हें अमेरिका विरोधी माना जाता है और ट्रंप के 'टैरिफ' से यह तीनों देश सबसे ज्यादा परेशान हैं. यह संगठन एशिया के सबसे बड़े भू-राजनीतिक और आर्थिक समूहों में गिना जाता है. भारत, रूस, चीन, पाकिस्तान और मध्य एशियाई देशों की मौजूदगी के साथ यह संगठन न सिर्फ क्षेत्रीय सुरक्षा बल्कि आर्थिक सहयोग का भी बहुत बड़ा जरिया है. विश्व बैंक की तरह इसका भी अपना अलग बैंक है.
पीएम मोदी शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन (31 अगस्त और एक सितंबर) को हिस्सा लेंगे. पीएम मोदी की चीन यात्रा से दो महाशक्तियों के रिश्तों में नया अध्याय शुरू होने की संभावना है, जो साल 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक घटनाओं के बाद से ठप है.
वैश्विक व्यवस्था में SCO की अहमियत
अपने तीन दशक से ज्यादा के इतिहास में SCO न सिर्फ क्षेत्रीय सुरक्षा में बल्कि बहुध्रुवीय दुनिया के निर्माण में भी बड़ी भूमिका निभाने लगा है. अमेरिका और यूरोप की नीतियों के बीच यह संगठन एशियाई देशों के लिए साझा मंच साबित हो रहा है. चीन, रूस और भारत जैसे देशों की मौजूदगी ने इसे और अधिक राजनीतिक अहमियत दी है. अब टैरिफ विवाद में यह मंच प्रभावी भूमिका निभाने की तैयारी में है.
धर्म संकट में मोदी क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए चीन के तियानजिन शहर में ‘एससीओ’ शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेना किसी ‘अग्निपरीक्षा’ से कम नहीं है. ऐसा इसलिए यहां से दुनिया भर में जो संदेश जाएगा, उससे मोदी का काम तय होगा. डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ जंग में भारत के सामने झुकेंगे या नहीं, ये भी इसी से तय होगा. रूस यूक्रेन विवाद में क्या होगी इंडिया की भूमिका, ये भी यहीं से तय होगा.
दरअसल, सात साल बाद प्रधानमंत्री मोदी चीन पहुंचे हैं. टैरिफ विवाद ने भारत को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया है, जहां राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री मोदी की गुफ्तगू पर अमेरिका के साथ-साथ दुनिया की निगाहें होंगी. पूर्व विदेश सेवा के अधिकारी एसके शर्मा कहते हैं कि भारत अमेरिका को छोड़ नहीं सकता. चीन को खुलकर अपना नहीं सकता और रूस से मुंह मोड़ना उसके लिए मुश्किल है.
इंडिया की बैक चैनल डिप्लोमेसी जारी
इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी की जापान यात्रा सफल रही. इसके अलावा अमेरिका के साथ भी भारत की बैक चैनल डिप्लोमेसी जारी है. वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक सितंबर के दूसरे सप्ताह तक अच्छी खबर आएगी. एक वरिष्ठ राजनयिक का कहना है कि अमेरिका भारत को इस तरह से नहीं छोड़ सकता. पूर्व विदेश सचिव शशांक भी अमेरिका में हैं. भारत इस बार वाशिंगटन से सब साध लेने में कोई चूक नहीं करना चाहता. जबकि वाशिंगटन की निगाह चीन के तियानजिन शहर पर टिकी है. चीन और इंडिया इस समय दो बड़े अंतरराष्ट्रीय ‘प्लेयर’ हैं. दोनों पर अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप प्रशासन के दबाव का कोई असर नहीं है. ट्रंप इसलिए परेशान हैं कि पुतिन, जिनपिंग, मोदी मिलकर कहीं अमेरिका की घेराबंदी के लिए कहीं कोई बड़ा फैसला न ले लें.
कब हुई थी एससीओ की शुरुआत? क्या है इतिहास
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की शुरुआत 15 जून 2001 को चीन के शंघाई शहर में हुई थी. इसकी नींव 1996 में ‘शंघाई फाइव’ समूह (चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान) के साथ रखी गई थी. उसके बाद इसमें उज्बेकिस्तान जुड़ा और यह संगठन औपचारिक रूप से SCO बन गया.
गठन का मकसद
शंघाई सहयोग संगठन का मुख्य मकसद सीमा विवाद सुलझाना, आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के खिलाफ साझा लड़ाई लड़ना, क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखना और आर्थिक सहयोग बढ़ाना था. यह मंच धीरे-धीरे ऊर्जा, व्यापार, संस्कृति और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में भी सक्रिय हो गया है.
कब हुई इंडिया-पाकिस्तान की एंट्री?
भारत और पाकिस्तान 2017 में SCO के स्थायी सदस्य बने. इससे संगठन का दायरा और भी बढ़ गया. यह दुनिया के सबसे बड़े क्षेत्रीय संगठनों में शामिल हो गया.
SCO में 10 सदस्य देश
वर्तमान में एससीओ में 10 स्थायी सदस्य देश हैं. जिनमें चीन, भारत के अलावा, बेलारूस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं. इसके अलावा, कई संवाद साझेदार और पर्यवेक्षक देश भी शामिल हैं. भारत 2017 से एससीओ का सदस्य है और 2005 से पर्यवेक्षक रहा है. अपनी सदस्यता अवधि के दौरान भारत ने 2020 में एससीओ शासनाध्यक्ष परिषद और 2022 से 2023 तक एससीओ राष्ट्राध्यक्ष परिषद की अध्यक्षता की है.