न्यूक्लियर पर बड़ा दांव! टूटेगा 60 साल का सरकारी एकाधिकार; जानें SHANTI Bill 2025 की A टू Z बातें
SHANTI Bill 2025 के जरिए भारत की न्यूक्लियर ऊर्जा नीति में ऐतिहासिक बदलाव की तैयारी है. सरकार ने संसद में यह बिल पेश कर Atomic Energy Act 1962 और Nuclear Liability कानून को हटाने का प्रस्ताव रखा है. बिल के तहत निजी कंपनियों को न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने और चलाने की अनुमति मिल सकती है, जबकि दायित्व और सुरक्षा ढांचे में भी बड़े सुधार किए गए हैं. इसे भारत के नेट-ज़ीरो और 100 GW न्यूक्लियर लक्ष्य से जोड़कर देखा जा रहा है.
भारत की ऊर्जा नीति अब एक ऐसे निर्णायक मोड़ पर खड़ी है, जहां कोयले पर निर्भरता, रिन्यूएबल एनर्जी की सीमाएं और जलवायु लक्ष्यों का दबाव तीनों एक साथ रास्ता मांग रहे हैं. इसी पृष्ठभूमि में संसद में पेश किया गया SHANTI Bill 2025 देश की न्यूक्लियर ऊर्जा नीति को पूरी तरह नया आकार देने की कोशिश है.
यह बिल सिर्फ एक कानूनी संशोधन नहीं, बल्कि दशकों पुराने सरकारी एकाधिकार को तोड़कर निजी निवेश, तकनीक और वैश्विक साझेदारी के लिए दरवाज़ा खोलने की पहल है. अगर यह कानून बनता है, तो भारत की परमाणु ऊर्जा कहानी में यह सबसे बड़ा बदलाव माना जाएगा.
स्टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्सक्राइब करने के लिए क्लिक करें
SHANTI Bill क्या है और क्यों लाया गया?
Sustainable Harnessing and Advancement of Nuclear Energy for Transforming India (SHANTI) Bill 2025 को लोकसभा में पेश किया गया है. इसका उद्देश्य भारत के सिविल न्यूक्लियर फ्रेमवर्क को आधुनिक बनाना और निवेश के लिए अनुकूल माहौल तैयार करना है. यह बिल Atomic Energy Act 1962 और Civil Liability for Nuclear Damage Act 2010 को हटाने का प्रस्ताव करता है, जिन्हें लंबे समय से निवेश में बाधा माना जाता रहा है.
सरकारी एकाधिकार से बाहर निकलेगा न्यूक्लियर सेक्टर
अब तक न्यूक्लियर पावर प्लांट का निर्माण और संचालन मुख्य रूप से NPCIL जैसे सरकारी संस्थानों तक सीमित था. SHANTI Bill पहली बार भारतीय निजी कंपनियों को न्यूक्लियर प्लांट बनाने, चलाने और बंद करने (decommissioning) का अधिकार देने का रास्ता खोलता है. हालांकि लाइसेंस और सुरक्षा नियंत्रण सरकार के पास ही रहेंगे.
न्यूक्लियर दुर्घटना की जिम्मेदारी में बड़ा बदलाव
इस बिल का सबसे विवादास्पद लेकिन अहम पहलू है न्यूक्लियर दायित्व व्यवस्था में बदलाव. अब किसी हादसे की जिम्मेदारी सिर्फ ऑपरेटर तक सीमित होगी, उपकरण सप्लायरों को इससे बाहर रखा गया है. यही वह बिंदु था, जिसके चलते विदेशी कंपनियां भारत में निवेश से कतराती थीं. अब अधिकतम दायित्व सीमा 300 मिलियन SDR तय की गई है, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है.
बीमा, फंड और सरकार की भूमिका
बिल के अनुसार ऑपरेटर को रिएक्टर के आकार के आधार पर बीमा या दायित्व फंड रखना होगा, जिसकी सीमा करीब 11 मिलियन डॉलर से 330 मिलियन डॉलर तक होगी. यदि नुकसान इससे ज्यादा हुआ, तो एक अलग न्यूक्लियर लायबिलिटी फंड और अंततः सरकार हस्तक्षेप करेगी. इससे निवेशकों का जोखिम काफी हद तक कम हो जाएगा.
निजी कंपनियों को क्या-क्या करने की छूट?
भारतीय निजी कंपनियों को अब न्यूक्लियर फ्यूल फैब्रिकेशन, ईंधन परिवहन, स्टोरेज और निर्धारित उपकरणों के आयात-निर्यात की अनुमति मिल सकती है. हालांकि फ्यूल एनरिचमेंट, स्पेंट फ्यूल री-प्रोसेसिंग और हेवी वॉटर उत्पादन जैसे संवेदनशील क्षेत्र पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में ही रहेंगे. विदेशी नियंत्रण वाली कंपनियों को लाइसेंस नहीं मिलेगा.
क्लाइमेट टारगेट और न्यूक्लियर पावर का रोल
सरकार का लक्ष्य 2070 तक नेट-ज़ीरो और 2047 तक 100 गीगावॉट न्यूक्लियर क्षमता हासिल करना है, जबकि फिलहाल यह क्षमता करीब 8.2 GW है. इस अंतर को पाटने के लिए निजी पूंजी और तकनीक को जरूरी माना जा रहा है. SHANTI Bill को इसी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है.
SMR और विदेशी फंडिंग की संभावनाएं
बिल के बाद बनने वाले नियमों में स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) के निर्माण और मैन्युफैक्चरिंग वैल्यू चेन में विदेशी फंडिंग का रास्ता खुल सकता है. वेस्ट एशिया के सॉवरेन फंड्स और वैश्विक कंपनियों ने शुरुआती दिलचस्पी दिखाई है. इसे अमेरिका और अन्य देशों के साथ न्यूक्लियर सहयोग मजबूत करने की रणनीति से भी जोड़ा जा रहा है.
रेगुलेशन और सुरक्षा पर क्या बदलेगा?
SHANTI Bill Atomic Energy Regulatory Board (AERB) को वैधानिक दर्जा देता है, जो अब तक एक कार्यकारी आदेश के तहत काम कर रहा था. इसके साथ ही विवाद निपटारे के लिए Atomic Energy Redressal Advisory Council बनाने का प्रस्ताव है. नियमों के उल्लंघन पर 5 लाख से 1 करोड़ रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान भी रखा गया है.
न्यूक्लियर नीति में ‘गेमचेंजर’ साबित होगा SHANTI Bill?
अगर SHANTI Bill संसद से पारित हो जाता है, तो यह भारत की न्यूक्लियर नीति में सबसे बड़ा संरचनात्मक बदलाव माना जाएगा. इससे अरबों डॉलर का निवेश, नई तकनीक और रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं. लेकिन साथ ही सुरक्षा, पारदर्शिता और सार्वजनिक भरोसे की परीक्षा भी होगी. साफ है कि SHANTI Bill सिर्फ ऊर्जा कानून नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की ऊर्जा रणनीति का ब्लूप्रिंट है.





