अमेरिकी Tariff पर भारत के वार का असर, EU के बदले तेवर, ट्रंप के आदेश से NATO में खलबली, 10 बड़ी बात
अमेरिकी टैरिफ पर पीएम मोदी सरकार के पलटवार का असर अब यूरोपीय संघ (EU) के देशों पर दिखने लगा है. इससे नाराज अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नाटो में शामिल देशों को नए आदेश देते हुए उस पर अमल करने को कहा है. ट्रंप के इस रूस से नाटों में शामिल देश के नेता बेचैन हैं. नाटो के सदस्य देश के नेता यह समझ नहीं पा रहे है कि ट्रंप के सनकीपन का क्या इलाज करें?

भारत और अमेरिका के बीच पिछले कुछ समय से व्यापारिक जंग टैरिफ के मसले पर दुश्मनी में का रूप ले चुका है. ऐसा डोनाल्ड ट्रंप की नासमझी की वजह से हो रहा है. दूसरी तरफ भारत को चीन और रूस का साथ मिलने के बाद से डोनाल्ड ट्रंप भड़क गए हैं. उन्होंने भारत को काबू में करने के लिए नाटो (NATO) के सदस्य देशों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है, उन्होंने अपने आदेश में यूरोपीय देशों से अपील की है कि वे भी भारत पर वैसे ही प्रतिबंध लगाए जैसे अमेरिका ने लगाए हैं. ट्रंप के आदेश का कितना असर होगा, इसका तो पता नहीं, लेकिन इस पर अमल होने की संभावन न के बराबर है.
दरअसल, भारत के टैरिफ (Tariff) पर वार से जहां यूरोपीय संघ (EU) को अपने रवैये में नरमी लानी पड़ी है, इस घटनाक्रम ने केवल आर्थिक मोर्चे पर बल्कि वैश्विक राजनीति में भी भारत की मजबूती के संकेत है. जो ट्रंप को हजम नहीं हो रहा है. सवाल यह है कि इन फैसलों का वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था पर कितना गहरा असर होगा? 10 प्वाइंट में समझे पूरी बात.
1. अमेरिका ने भारत सरकार की नीति से नाराज होकर टैरिफ को 25 से बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया है. इसके जवाब में भारत ने हाल ही में कई अमेरिकी और यूरोपीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने का फैसला लिया है. टैरिफ की वजह से मेडिसिन, स्टील, एल्युमीनियम और कृषि उत्पादों पर शुल्क बढ़ने से पश्चिमी और यूरोपीय देशों को बड़ा झटका लगा है. मोदी सरकार के फैसले से साफ हो गया कि अब भारत "एकतरफा दबाव" नहीं झेलेगा.
2. दूसरी तरफ भारत के रुख से भड़के ट्रंप ने टैरिफ मसले को खुद की ईगो का सवाल बना है. इस बात को ध्यान में रखते हुए यूरोपीय संघ ने अपने नीतियों में बदलाव के संकेत दिए हैं. ऐसा इसलिए कि भारत के फैसले से यूरोपीय संघ (EU) को झुकना पड़ा है. पहले EU भारत पर निर्यात शुल्क में ढील का दबाव बना रहा था, लेकिन अब वह बातचीत के लिए तैयार दिख रहा है.
3. इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के नाटो देशों से रक्षा बजट में हिस्सेदारी बढ़ाने के आदेश दिए हैं. इतना ही नहीं, उन्होंने एक और आदेश जारी कर यूरोपीय संघ के देशों से अमेरिका की तरह प्रतिबंध लगाने को कहा है. ट्रंप का कहना है कि नाटो का पूरा बोझ अमेरिका क्यों उठाए? उनके इस आदेश से नाटो देशों में असहमति और खलबली मच गई है. यूरोप के कई देश पहले से आर्थिक दबाव में हैं, ऐसे में ट्रंप की यह शर्त उनके लिए नई मुश्किल की तरह है.
4. भारत ने इस मौके का फायदा उठाते हुए खुद को वैश्विक मंच पर "बैलेंस पावर" के रूप में पेश किया है. भारत ने ऐसा इसलिए किया है कि अमेरिका और यूरोप का एक अनिवार्य साझेदार बनता जा रहा है. दूसरी तरफ ट्रंप की नासमझी की वजह से व्यापार युद्ध के बीच भारत ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है.
5. इससे साफ हो गया है कि 21वीं सदी में भारत की आर्थिक ताकत और रणनीतिक भूमिका को नजरअंदाज करना अब असंभव है. EU का झुकना और नाटो में खलबली दोनों इस बात के संकेत हैं कि अब भारत केवल क्षेत्रीय नहीं बल्कि वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है.
6. डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ नीति की वजह से यह स्थित उत्पन्न हुई है. डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर 50% टैरिफ थोप दिया है. उसके बाद से जर्मनी खुलकर भारत के साथ खड़ा हो गया है. फ्रांस, इटली,सहित कई देश अप्रत्यक्ष रूप से इस मसले पर भारत के साथ हैं.
7. ट्रंप की जिद यह है कि भारत रूस से तेल न खरीदे. इस पर अमल न करने से व्हाइट हाउस खुलकर भारत के खिलाफ है. अब यूरोपीय देशों से भी भारत ने वही प्रतिबंध लगाने की अपील की है, जो खुद अमेरिका ने लगाए हैं. ट्रंप प्रशासन चाहता है कि यूरोप भारत से तेल गैस की खरीद पूरी तरह बंद करे और सेकेंडरी टैरिफ लगाए.
8. अब यह मसला तियानजिन में होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात के दौरान यह मुद्दा खास तौर पर उठने की उम्मीद है.
9. चीन पहुंचने से पहले पीएम मोदी जापान की दो दिवसीय यात्रा पर थे. इस दौरान जापान ने भारत में 68 अरब डॉलर का निवेश करने का ऐलान किया. जबकि एक दिन पहले तक जापान यह निवेश अमेरिका में करने का मन बना चुका था, लेकिन टैरिफ वार के बाद वैश्विक स्तर पर बदले माहौल को देखते हुए जापान ने भारत में निवेश करने का फैसला लिया है.
10. अमेरिकी प्रतिबंध को लेकर भारत सरकार का कहना है कि उसके लिए नेशनल इंटरेस्ट सबसे पहले हैं. अमेरिका के कहने पर भारत रूस से तेल लेना बंद नहीं करेगा. भारत ने इस बात को भी दमदार तरीके से रखा है कि अमेरिका व यूरोपीय देश खुद रूस से कारोबार करते हैं. यहां तक तेल और गैस की खरीदारी करते हैं. पहले वे रूस से कारोबार बंद करें. यही बात ट्रंप को खल गई है. ट्रंप को लगता है कि पीएम मोदी ने विरोध में फैसला लेने की हिम्म्त कैसे हुई?