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ये रेशमी जुल्फें...ऑफिस में महिला कर्मचारी के बालों को देखकर गाया गाना, अब कोर्ट ने सुना दिया ये फैसला

ऑफिस के एक ट्रेनिंग सेशन के दौरान महिला कर्मचारी के लंबे बालों को देखकर 'रेशमी जुल्फें' गाना गाना एक पुरुष कर्मचारी को महंगा पड़ गया. इस घटना के बाद, बैंक की आंतरिक शिकायत समिति ने इसे अनुचित आचरण मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की. मामला उच्च न्यायालय तक पहुंचा, जहां अदालत ने कहा कि इस तरह की टिप्पणी या गाना गाना अपने आप में यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आता.

ये रेशमी जुल्फें...ऑफिस में महिला कर्मचारी के बालों को देखकर गाया गाना, अब कोर्ट ने सुना दिया ये फैसला
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सागर द्विवेदी
Edited By: सागर द्विवेदी

Updated on: 21 March 2025 7:50 PM IST

ऑफिस के एक ट्रेनिंग सेशन के दौरान महिला कर्मचारी के लंबे बालों को देखकर 'रेशमी जुल्फें' गाना गाना एक पुरुष कर्मचारी को महंगा पड़ गया. इस घटना के बाद, बैंक की आंतरिक शिकायत समिति ने इसे अनुचित आचरण मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की. मामला उच्च न्यायालय तक पहुंचा, जहां अदालत ने कहा कि इस तरह की टिप्पणी या गाना गाना अपने आप में यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आता. हालांकि, यह फैसला कार्यस्थल पर व्यवहार के मानकों और अनुशासन को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस का विषय बन गया है.

बंबई उच्च न्यायालय ने एक निजी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी को राहत देते हुए कहा कि महिला सहकर्मी के बालों पर टिप्पणी करना और उसके बारे में गाना गाना अपने आप में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न नहीं है. न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की अध्यक्षता वाली पीठ ने 18 मार्च को दिए अपने फैसले में कहा कि यदि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों को सत्य भी मान लिया जाए, तो भी उनसे यौन उत्पीड़न का ठोस निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता.

यह मामला पुणे स्थित एचडीएफसी बैंक के एसोसिएट क्षेत्रीय प्रबंधक विनोद कचावे से जुड़ा है, जिनकी पदावनति बैंक की आंतरिक शिकायत समिति की रिपोर्ट के आधार पर की गई थी. समिति ने उन्हें कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH अधिनियम) के तहत दोषी ठहराया था.

क्या था मामला?

महिला शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि कचावे ने उसके बालों पर टिप्पणी की और उसके बारे में गाना गाया. इसके अलावा, उन्होंने अन्य महिला सहकर्मियों की उपस्थिति में एक पुरुष सहकर्मी के निजी अंगों पर भी टिप्पणी की. न्यायालय ने कहा कि शिकायत समिति ने इस पहलू पर विचार नहीं किया कि क्या आरोपित आचरण वास्तव में यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है.

अदालत ने पाया कि आरोप सत्य मानने के बावजूद, यह यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता. औद्योगिक न्यायालय के निष्कर्षों को "स्पष्ट रूप से त्रुटिपूर्ण" बताया गया, क्योंकि इसने यह नहीं माना कि आरोप साबित होने पर भी यौन उत्पीड़न का मामला नहीं बनता. कचावे की वकील सना रईस खान ने दलील दी कि कथित टिप्पणी मात्र एक हल्का मजाक थी, जिसे शिकायतकर्ता ने शुरुआत में गंभीरता से नहीं लिया था. अदालत ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि शिकायतकर्ता ने यह आरोप अपने त्यागपत्र देने के बाद लगाए थे.

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