हीरे से हवालात तक! मेहुल चोकसी पर शिकंजा कसने बेल्जियम जा रही CBI-ED की टीम; एजेंसियों का क्या है प्लान?
हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी की बेल्जियम में गिरफ्तारी के बाद CBI और ED ने प्रत्यर्पण प्रक्रिया तेज कर दी है. दोनों एजेंसियों की छह सदस्यीय टीम सुनवाई से पहले बेल्जियम भेजी जा रही है. चोकसी मेडिकल आधार पर जमानत की अपील की तैयारी में है, जबकि भारतीय एजेंसियां उसे वापस लाने के लिए कानूनी और राजनयिक स्तर पर सक्रिय हो चुकी है.

भगोड़े हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी की बेल्जियम में गिरफ्तारी के बाद भारतीय एजेंसियों ने उसे भारत लाने की तैयारी तेज़ कर दी है. सूत्रों के मुताबिक, CBI और ED की तीन-तीन अधिकारियों की टीम जल्द ही बेल्जियम रवाना होगी. इन टीमों को बेल्जियम में कोर्ट की सुनवाई से पहले दस्तावेज़ी और कानूनी प्रक्रिया पूरी करनी है ताकि प्रत्यर्पण को जल्दी अंजाम दिया जा सके.
भारत की केंद्रीय एजेंसियों की अपील पर ही चोकसी को 12 अप्रैल को बेल्जियम में गिरफ्तार किया गया था. माना जा रहा है कि वह स्विट्जरलैंड भागने की कोशिश में था. अब एजेंसियों के लिए यह एक रणनीतिक मौका है, क्योंकि लंबे समय से फरार चल रहा यह आरोपी भारत की सबसे बड़ी बैंक धोखाधड़ी मामलों में से एक का केंद्र है.
ब्लड कैंसर से पीड़ित है चोकसी
हालांकि, चोकसी की ओर से कानूनी लड़ाई शुरू हो चुकी है. उसके वकीलों ने दावा किया है कि वह ब्लड कैंसर से पीड़ित है और बेल्जियम में उसकी गिरफ्तारी अवैध है. वे चिकित्सा आधार पर उसकी जमानत की अपील दाखिल करने की तैयारी में हैं. उनका कहना है कि उसकी स्थिति स्थिर नहीं है और उसे इलाज की जरूरत है, इसलिए उसे हिरासत में रखना मानवीय दृष्टिकोण से अनुचित है.
2018 में भागकर पहुंचा था एंटीगुआ
वकीलों ने यह भी तर्क दिया है कि चोकसी के भागने का कोई खतरा नहीं है. हालांकि अतीत में वह भारत से 2018 में फरार होकर एंटीगुआ पहुंचा, जहां उसने कैरेबियाई नागरिकता ले ली थी. इंटरपोल ने हाल ही में उसके खिलाफ जारी रेड कॉर्नर नोटिस हटा लिया था, जिसके बाद से भारतीय एजेंसियों ने फिर से प्रत्यर्पण की प्रक्रिया को सक्रिय किया.
पहले से है प्रत्यर्पण संधि
भारत और बेल्जियम के बीच पहले से प्रत्यर्पण संधि मौजूद है, जिससे कानूनी प्रक्रिया को तेज़ी से पूरा करना संभव हो सकता है. चोकसी के भारत लौटने की दिशा में यह एक निर्णायक मोड़ हो सकता है, बशर्ते कोर्ट में उसकी दलीलें कमजोर पड़ें और बेल्जियम सरकार भारत के अनुरोध को स्वीकार करे.