नागपुर हिंसा में 'बजरंग दल' पर उठ रही उंगली, जानें राम मंदिर आंदोलन से लेकर बैन होने तक संगठन की पूरी कहानी
महाराष्ट्र के नागपुर में औरंगजेब की कब्र हटाने को लेकर हुए विवाद ने हिंसा का रूप ले लिया. इसके बाद गाड़ियों में तोड़फोड़ की गई और कई संपत्तियों को आग के हवाले किया गया. इस घटना में बजरंग दल पर सवाल उठ रहे हैं. सीएम फडणवीस ने भी कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई के आदेश दिए हैं. आइये जानते हैं बजरंग दल का इतिहास...

नागपुर में औरंगजेब की कब्र हटाने को लेकर छिड़ा विवाद हिंसा में तब्दील हो गया. विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठनों ने बाबरी मस्जिद की तर्ज पर औरंगजेब की कब्र हटाने की धमकी दी थी, जिससे तनाव और बढ़ गया. इस मुद्दे को लेकर शहर में बवाल मच गया, जिसके चलते कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ गई.
हिंसा भड़कने के बाद, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कड़ा रुख अपनाते हुए धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में इन संगठनों के कार्यकर्ताओं पर एफआईआर दर्ज करवाई. प्रशासन ने हालात पर काबू पाने के लिए सुरक्षा बढ़ा दी है और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है. इस घटनाक्रम के बाद शहर में माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है. अब इसमें बजरंग दल की भूमिका की बात कही जा रही है. आइए बजरंग दल के बारे में जानते हैं.
राम जन्मभूमि आंदोलन से हुई शुरुआत
साल 1984 में पंजाब अशांत था. 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' के बाद हिंदुओं पर हमले बढ़ रहे थे. इसी माहौल में विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने अयोध्या में राम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए एक समिति बनाई. दिलचस्प बात यह थी कि इस समिति के महासचिव कांग्रेस के नेता दाऊ दयाल खन्ना थे, जबकि इसकी अगुआई गोरखनाथ मठ के महंत अवैद्यनाथ कर रहे थे. सितंबर 1984 में, इस समिति ने बिहार के सीतामढ़ी से अयोध्या तक 400 किलोमीटर लंबी यात्रा निकाली. यह यात्रा एक बड़े धार्मिक आंदोलन की नींव रख रही थी.
बजरंग दल का गठन
6 अक्टूबर 1984 को यात्रा अयोध्या पहुंची, जहां सरयू नदी के तट पर एक विशाल आयोजन हुआ. इसमें 60,000 से अधिक लोग शामिल हुए. इस दौरान मंच पर एक बड़ी तस्वीर लगी थी, जिसमें तलवारें लिए मुसलमानों को निहत्थे साधुओं के सामने दिखाया गया था. वक्ताओं ने विवादित भूमि हिंदुओं को सौंपने की मांग की. 8 अक्टूबर 1984 को, VHP ने राम की सहायता करने वाली वानर सेना की तर्ज पर 'बजरंग दल' के गठन की घोषणा की. इसकी कमान विनय कटियार को सौंपी गई और संगठन का मुख्य उद्देश्य राम जन्मभूमि को 'मुक्त' कराना था. कुछ ही वर्षों में बजरंग दल राम जन्मभूमि आंदोलन का प्रमुख चेहरा बन गया. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने में बजरंग दल ने अहम भूमिका निभाई, जिसके बाद इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया.
संघ से अलग बजरंग दल का ढांचा
1993 में बजरंग दल को एक अखिल भारतीय संगठन का रूप दिया गया. RSS की तरह इसकी कोई लिखित संविधानिक संरचना नहीं है. इसकी नियुक्तियां मौखिक रूप से होती हैं. RSS बड़े हिंदुत्ववादी मुद्दों पर काम करता है, जबकि बजरंग दल छोटे स्तर पर सक्रिय रहता है, जैसे चर्चों के निर्माण का विरोध, गौरक्षा, और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा. संघ के विपरीत, बजरंग दल के पास कोई निश्चित ड्रेस कोड नहीं है, हालांकि इसके कार्यकर्ता अपने कंधे या सिर पर 'बजरंग दल' लिखी पट्टी जरूर लगाते हैं.
हिंदू पर्वों पर निकालता है जुलूस
बजरंग दल पूरे देश में 2,500 से अधिक अखाड़े चलाता है और विभिन्न हिंदू पर्वों पर बड़े पैमाने पर जुलूस निकालता है. राजनीतिक और सामाजिक संगठनों का मानना है कि इसके कार्यक्रमों के कारण सांप्रदायिक तनाव बढ़ता है. आलोचकों का कहना है कि बजरंग दल के कार्यों से धार्मिक टकराव की स्थिति बनती है, जबकि समर्थकों के अनुसार यह संगठन हिंदू संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए कार्यरत है.