EXCLUSIVE: स्ट्रीट-डॉग्स पर बेतुके ‘सुप्रीम फैसले’ पर मेनका गांधी की दो टूक, बोलीं- कोर्ट के हिसाब से 1 लाख करोड़ और 10 साल चाहिए!
पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया ‘स्ट्रीट डॉग्स’ पर फैसले को “बेतुका” बताया है. उन्होंने कहा कि अदालत के आदेश के मुताबिक देशभर के लावारिस कुत्तों को हटाने और उनके लिए चारदीवारी बनाने में कम से कम 10 साल और ₹1 लाख करोड़ लगेंगे. मेनका ने सवाल उठाया कि जब इंसानों से जुड़े लाखों केस लंबित हैं, तब सुप्रीम कोर्ट अचानक कुत्तों पर इतनी सक्रिय क्यों हो गई, जबकि इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार भी गहराई से फैला है.
बीते कुछ महीनों से देश में लावारिस-बेकाबू सड़क के कहिए या स्ट्रीट-डॉग्स (Street Dogs) लेकर सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक ‘क्लेश’ मचा हुआ है. शुक्रवार को जैसे ही सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय विशेष बैंच ने इस बारे में आदेश पारित किया, वैसे ही ‘डॉग-लवर्स’ के दिलों में फिर ‘हूक’ उठने लगी. आखिर इन लावारिस-सड़क के कुत्तों के क्लेश का इलाज क्या है? डॉग-लवर्स का सवाल यह है कि जिस देश की अदालतों में इंसानों को न्याय मिलने-मिलाने, देने-दिलवाने से संबंधित लाखों मुकदमे वर्षों से सुनवाई के लिए लंबित हैं, उसी भारत जैसे देश की सुप्रीम कोर्ट ‘सड़क पर मारे-मारे फिर रहे केवल लावारिस कुत्तों’ को सड़कों से रातों-रात गायब कर देने के मामले में इस कदर की रुचि आखिर अचानक क्यों पैदा हो गई?
इन्हीं तमाम सवालों को लेकर शनिवार (8 सितंबर 2025) को “स्टेट मिरर हिंदी” के एडिटर इनवेस्टीगेशन ने नई दिल्ली में मौजूद पूर्व केंद्रीय मंत्री, पूर्व सांसद श्रीमती मेनका गांधी से एक्सक्लूसिव बात की. इसलिए क्योंकि 140 करोड़ की आबादी वाले दुनिया के इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में साल 1992 में ‘बेजुबान जानवरों-पशुओं’ की रक्षा के लिए सबसे पहले राष्ट्रीय स्तर पर मेनका गांधी ने ही वीणा उठाया था. पीपुल फॉर एनिमल्स (PFA) नाम से एक पशु-अधिकार और पर्यावरण संगठन बनाकर, जो आज भी निर्बाध रूप से जमीन पर काम कर रहा है.
सुप्रीम कोर्ट की रुचि ‘स्ट्रीट डॉग्स’ में ही कैसे?
स्टेट मिरर हिंदी से विशेष-बातचीत के दौरान एक सवाल के जवाब में पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, “देश में लावारिस-सड़क पर घूमने वाले जानवरों-पशुओं के हित से संबंधित हमने 400 से ज्यादा आवेदन-जनहित याचिकाएं इसी सुप्रीम कोर्ट में लगाईं. आज तक कभी उन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. फिर अचानक सुप्रीम कोर्ट द्वारा सड़क पर घूमने वाले लावारिस बेजुबान कुत्तों के पीछे हाथ धोकर पड़ जाने का तर्क मेरे सिर से ऊपर जा रहा है. जिस देश की अदालतों में आज न्याय पाने वालों से संबंधित लाखों मामले देश की अदालतों में कई-कई दशक या साल से लंबित पड़े हों, उस भारत के सुप्रीम कोर्ट को स्ट्रीट डॉग्स पर खुद ही साउमोटो (स्वत: संज्ञान) लेने की फुर्सत भी कैसे मिल गई? यह सवाल मेरे ही लिए हैरत की बात नहीं है. सड़क पर मौजूद बेसहारा बेजुबानों की कदर करने वाले हर भारतीय नागरिक का यह सामूहिक सवाल है. न केवल स्ट्रीट डॉग्स को लेकर अपितु सड़कों पर मारे मारे भूखे-प्यासे फिर रहे अन्य लाखों बेजुबान जानवरों के चाहने वालों का भी यह सवाल सुप्रीम कोर्ट से हैं. मैं तो कहती हूं कि अगर सुप्रीम कोर्ट वास्तव में आमजन की सुविधाओं का ख्याल रखता है, तो फिर देश की हजारों अदालतों में बीते कई कई साल या दशक से जो लंबित मुकदमे पड़े हैं न्याय की आस में. सुप्रीम कोर्ट स्ट्रीड डॉग्स को काबू करने के मामले की तरह ही क्यों नहीं उन लंबित मुकदमों को भी रातों-रात निपटाने के लिए इसी तरह से चौकन्नी और तेज हो जाती है, जैसे वह स्ट्रीग डॉग्स को सड़क से उठाकर पिंजरों में बंद करने पर आमादा है.”
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में यह क्यों नहीं बताया
विशेष बातचीत के दौरान पीएफए की संस्थापक अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने कहा, “दरअसल हम जब जब भी सड़क पर मारे मारे फिरने वाले बेजुवानों के दर्द का मरहम मांगने की जायज मांग लेकर किसी भी अदालत में पहुंचे, तो हमें सिर्फ तारीख पर तारीख मिली, जबकि मुद्दा जब स्ट्रीट डॉग्स मामले में सुप्रीम कोर्ट की अपनी दिलचस्पी का आया तो उसने रातों रात फैसला दे डाला कि, देश भर के सार्वजनिक स्थलों पर घूमने वाले स्ट्रीट डॉग्स को पकड़ कर उन्हें चार-दीवारी के भीतर बंद कर दिया जाए, मैं सुप्रीम कोर्ट की बात ही अगर बड़ी रखूं तो फिर ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि, यह फैसला देते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने यह क्यों नहीं फैसले में खुलकर कहीं लिखा है कि, देश की सड़कों पर और सार्वजनिक स्थलों पर से इन बेजुबानों को रातों रात हटाने का वह (सुप्रीम कोर्ट) इंतजाम क्या और कैसे करवाएगी? सिर्फ सुप्रीम कोर्ट द्वारा कागज पर आदेश पास कर देने भर से एक करोड़ से भी ज्यादा लावारिस स्ट्रीट डॉग्स तो नहीं हट जाएंगे. वह भी तब जब स्ट्रीट डॉग्स को काबू करने के धंधे में भी करप्शन की जड़ें बहुत गहरी हो चुकी हों.”
दिल्ली नगर निगम में ऐसी होती है ‘बंदरबांट’
स्ट्रीट डॉग्स को सड़कों या सार्वजनिक स्थलों से हटाने के काम में करप्शन कैसे? पूछने पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और पीपुल फॉर एनिमल की संस्थापक अध्यक्ष मेनका गांधी बोलीं, “स्ट्रीट डॉग्स को हटाने और उनके बंधीकरण (बधिया) करने के लिए तमाम योजनाएं हैं. मगर जमीन पर कोई नजर नहीं आती है. देश के बाकी दूर दराज के हिस्सों की बात छोड़िए राजधानी दिल्ली में ही अगर स्ट्रीट डॉग्स के बंधीकरण की बात करूं तो, इस धंधे में तमाम फर्जी गैर-सरकारी संगठनों का जाल बुना-बिछा पड़ा है. और तो और दिल्ली नगर निगम जिसके हवाले यह काम सौंपा गया है वही, अपने रिटायर होने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों को स्ट्रीट डॉग्स के बंधीकरण का काम ‘गिफ्ट’ के तौर पर थमा देता है. ताकि सरकारी पैसे का बंदरबांट मिलजुल कर किया जा सके. अगर बंधीकरण होता है 10 कुत्तों का तो कागज पर भरा जाता है 200 कुत्तों का रिकॉर्ड. यह करप्शन नहीं है तो क्या है. इस पर सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश या डेटलाइन कि फलां तय अवधि के अंदर स्ट्रीट डॉग्स को सार्वजनिक स्थलों से पकड़ उन्हें चार-दिवारी के भीतर बंद कर दिया जाए.”
जमा-जुबानी से कुछ नहीं होगा
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश देते वक्त उसमें यह क्यों नहीं लिखा कि उसके इस आदेश को अमल में लाने पर जो मेरे अनुमान से 1 लाख करोड़ का खर्चा आएगा, उसका इंतजाम कहां से और कौन करेगा? यह रकम पूरे देश भर के स्ट्रीट डॉग्स के लिए चार-दिवारी के निर्माण पर खर्च होगी. इसके साथ ही वहां उनके खाने पीने, इलाज रख-रखाव पर भी खर्चा होगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि चंद महीनों में उसके आदेश पर अमल कर दिया जाए. सोचिए कि देश भर में एक करोड़ से भी ज्यादा स्ट्रीट डॉग्स के लिए चार-दिवारी का निर्माण महीनों में कैसे संभव है? यह काम कम से कम 10 साल के समय में और अनुमानित 1 लाख करोड़ की रकम से संभव है. इस बारे में तो अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहीं कुछ नहीं लिखा आखिर क्यों? सिर्फ जमा-जुबानी आदेश लिख देने भर से क्या ऐसे आदेश फलीभूत हो सकते हैं? वह भी उस देश या दिल्ली जैसी किसी देश की उस राजधानी में जहां बेजुबान स्ट्रीग डॉग्स को काबू करने और उनका बंधीकरण करने के नाम पर भी ‘करप्शन’ का बरगद फैला पड़ा हो. कदापि नहीं. हां, अगर सुप्रीम कोर्ट या कोई भी अन्य एजेंसी मुझसे बात करे तो यह काम मैं मात्र अनुमानित एक हजार करोड़ और 2 साल की अवधि में पूरा करवाने की ईमानदार कोशिश कर सकती हूं. जिसकी उम्मीद मुझे तो कम से कम न के बराबर है.





