आम लोगों की तरह दिखने वाले OGW के बारे में जानते हैं आप? फुल फॉर्म से लेकर हर डिटेल है यहां
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले की जांच में NIA ने अत्याधुनिक 3D मैपिंग का उपयोग किया है जिससे आतंकियों की घुसपैठ के रास्तों की सटीक जानकारी मिल सके. जांच में OGW यानी ओवर ग्राउंड वर्कर की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है. ये लोग सीधे आतंकी नहीं होते लेकिन छिपकर उन्हें रसद, सूचना और पनाह देते हैं. OGW का नेटवर्क काफी संगठित और खतरनाक होता है.
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले की जांच में नई तकनीक का सहारा लिया है. एजेंसी ने हमले वाली जगह, बैसरन घाटी, की 3D मैपिंग की है ताकि हमलावरों की आवाजाही के हर रूट की सटीक जानकारी मिल सके. यह आधुनिक तकनीक न केवल घटना की पुनर्रचना में मदद करेगी, बल्कि यह भी उजागर करेगी कि आतंकी कैसे इतनी गहराई तक घुसपैठ कर सके.
इस हमले में बार-बार एक शब्द सामने आ रहा है. OGW यानी ओवर ग्राउंड वर्कर. OGW कोई बंदूकधारी आतंकी नहीं होता, लेकिन वह उतना ही खतरनाक होता है क्योंकि वह आतंकियों के लिए जमीन तैयार करता है. जैसे ठिकाने उपलब्ध कराना, हथियार छुपाना या स्थानीय जानकारी देना. OGW की भूमिका इस हमले में इसलिए संदिग्ध मानी जा रही है क्योंकि आतंकी जिस सटीकता और तैयारी के साथ आए, वह बिना स्थानीय मदद के संभव नहीं लगता. आइए जानते हैं कि आखिर OGW क्या है?
OGW का फुल फॉर्म क्या है?
OGW का मतलब होता है Over Ground Worker. यह एक सैन्य और खुफिया शब्दावली है जिसका उपयोग भारत की सुरक्षा एजेंसियाँ विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर, नक्सल प्रभावित क्षेत्र और पूर्वोत्तर भारत में करती हैं. OGW वे लोग होते हैं जो सीधे तौर पर आतंकवादी या उग्रवादी गतिविधियों में शामिल नहीं होते, लेकिन गुप्त रूप से आतंकियों की मदद करते हैं. ये आम नागरिकों की तरह दिखते हैं, लेकिन इनके संपर्क आतंकवादियों के साथ होते हैं.
OGW कैसे काम करते हैं?
OGW, यानी Over Ground Workers, आतंकवादियों के स्थानीय समर्थन तंत्र की तरह काम करते हैं. इनका कार्य कई तरह का होता है:
- सुरक्षा बलों की मूवमेंट की जानकारी देना
- आतंकियों को शरण, खाना, कपड़े और दवाइयाँ उपलब्ध कराना
- हथियार और गोला-बारूद की तस्करी में मदद करना
- हवाला चैनल, फंडिंग, जबरन वसूली या विदेश से पैसे जुटाना
- सोशल मीडिया पर आतंकवाद का प्रचार करना और युवाओं को भड़काना
- रूट प्लान करना और आतंकियों को सुरक्षित मार्ग प्रदान करना
OGW का नेटवर्क बेहद संगठित होता है और ये समाज में छिपकर काम करते हैं जिससे इन्हें पहचानना मुश्किल होता है.
OGW का इतिहास?
- 1989 के बाद, जब जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का उभार हुआ, तो कई स्थानीय लोगों ने आतंकियों की सहायता शुरू कर दी. ये लोग खुद हथियार नहीं उठाते थे लेकिन Backbone की तरह आतंकवादियों का साथ देते थे.
- 1990–2000: नेटवर्क का विस्तार- इस दौर में ISI और पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों ने OGW नेटवर्क को और मज़बूत किया. अब OGW प्रशिक्षित और संगठित नेटवर्क का हिस्सा बन चुके थे.
- 2010 के बाद: डिजिटल युग में OGW की नई भूमिका- अब OGW में आईटी एक्सपर्ट्स, कॉलेज स्टूडेंट्स, NGO वर्कर, पत्रकार और सोशल मीडिया यूज़र्स तक शामिल हो चुके हैं. ये डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आतंकियों का प्रचार करते हैं और उन्हें नायक (hero) के रूप में प्रस्तुत करते हैं.
OGW पर कानून और प्रावधान
OGW को भारत में UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) और Public Safety Act (PSA) कानून के तहत अरेस्ट किया जा सकता है. OGW पर NIA (National Investigation Agency), IB (Intelligence Bureau), RAW (Research and Analysis Wing) और स्थानीय पुलिस और सेना निगरानी रखने और उन्हें पकड़ने का काम करती है. इनकी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि OGW के पास आमतौर पर हथियार नहीं होते, जिससे उनके खिलाफ सबूत जुटाना कठिन होता है.
चुनौतियां और नेटवर्क क्यों ख़तरनाक?
OGW अब सिर्फ आतंकवाद तक सीमित नहीं हैं. ये अन्य अवैध गतिविधियों में भी शामिल हैं, जैसे- ड्रग्स तस्करी, हवाला लेनदेन, नकली करेंसी वितरण, धार्मिक कट्टरपंथ और भड़काऊ प्रचार. कई बार स्थानीय नेता या राजनीतिक पार्टियाँ भी इनका समर्थन करती हैं, जिससे सुरक्षा एजेंसियों के लिए स्थिति और कठिन हो जाती है.





