मिली थी फांसी की सजा, अब सुप्रीम कोर्ट ने शख्स को किया बरी; जानें किस आरोप में 10 साल से जेल में था बंद
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल से झूठे रेप के आरोप में सजा काट रहे व्यक्ति को बरी कर दिया और उसके ऊपर लगे आरोपों को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने जबरन उस व्यक्ति से जुर्म कबूल करवाया और दावा किया कि उसने अपने पहने हुए कपड़े एक बैग में रखे थे और उन्हें फेंकने जा रहा था, लेकिन उससे पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

Supreme Court: उत्तराखंड के एक बच्चे के साथ हुए रेप और मर्डर केस में पुलिस की लापरवाही और झूठे सबूतों के चलते एक निर्दोष व्यक्ति को फांसी की सजा दे दी गई थी. लेकिन करीब 10 साल जेल में बिताने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उस व्यक्ति को पूरी तरह बरी कर दिया और उसकी सजा को खत्म कर दिया.
इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की बेंच ने की. कोर्ट ने सबूतों की गहराई से जांच की और पाया कि उस व्यक्ति के खिलाफ एक भी ठोस सबूत नहीं था. कोर्ट ने राज्य की पुलिस और ट्रायल कोर्ट की कार्यशैली पर कड़ी टिप्पणी की और कहा कि केस की जांच और सुनवाई ठीक से नहीं हुई.
क्या है मामला?
जून 2016 में उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में एक जागरण के दौरान एक बच्ची गायब हो गई थी और फिर उसका शव पास के खेत में मिला. अगले ही दिन पुलिस ने उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया, जो जागरण में साउंड और लाइट का काम देख रहा था. एफआईआर दर्ज होने के समय किसी भी गवाह ने नहीं कहा कि उन्होंने बच्ची को उस व्यक्ति के साथ देखा था, लेकिन बाद में पुलिस के कहने पर उन्होंने ऐसा बयान दिया.
मेडिकल जांच में भी गड़बड़ी
कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्ची की जांच करने वाले डॉक्टर से क्रॉस एग्जामिनेशन नहीं की गई और उन्होंने यह भी नहीं बताया कि उन्होंने सबूत किन पुलिसवालों को सौंपे और क्या वो सील करके सुरक्षित हालत में दिए गए थे. कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने जबरन उस व्यक्ति से जुर्म कबूल करवाया और दावा किया कि उसने अपने पहने हुए कपड़े एक बैग में रखे थे और उन्हें फेंकने जा रहा था, लेकिन उससे पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया.
झूठे आरोप में सजा
कोर्ट ने इस कहानी को पूरी तरह यकीन न करने वाला बताया और कहा कि अगर वो व्यक्ति सच में दोषी होता, तो उसके पास कपड़े नष्ट करने का पूरा समय था. ऐसे में दो दिन तक उन्हें संभाल कर रखना असंभव है. इससे साफ है कि पुलिस ने ये कपड़े खुद रखे और बाद में बरामद दिखाया.
कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी स्तर पर यह नहीं बताया गया कि बच्ची से लिए गए सैंपल और आरोपी से लिए गए सैंपल सुरक्षित रखे गए थे या नहीं. ऐसे में पूरी संभावना है कि पुलिस ने एफएसएल रिपोर्ट में अपने मुताबिक नतीजे लाने के लिए सैंपल्स से छेड़छाड़ की हो. कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की कार्यशैली पर भी सवाल उठाया और कहा कि आरोपी को ठीक से वकील तक नहीं मिला, जिससे साफ है कि मुकदमा निष्पक्ष तरीके से नहीं चला. कोर्ट ने कहा कि इस तरीके से ट्रायल चलाना पूरी तरह गैरकानूनी है.