मंगल पांडेय को फांसी देने के लिए कोलकाता से बुलाए गए थे जल्लाद; पढ़ें 'बगावत की धरती के लाल' के किस्से
मंगल पांडे भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत माने जाते हैं. 1857 की क्रांति की चिंगारी उन्हीं की बगावत से भड़की थी. उन्होंने अंग्रेजों द्वारा धर्म विरोधी कारतूस के इस्तेमाल का विरोध किया और 'मारो फिरंगी को' का नारा देकर क्रांति की शुरुआत की. उनकी वीरता और बलिदान ने पूरे देश को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित किया. मंगल पांडे भारतीय स्वाभिमान और साहस का प्रतीक हैं.

1857 की क्रांति को भले ही स्वतंत्रता संग्राम का पहला संगठित प्रयास माना गया हो, लेकिन इसकी नींव एक अकेले सिपाही की बगावत से पड़ी, नाम था मंगल पांडे. ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल इस जवान ने धर्म, आत्मसम्मान और देशभक्ति के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. अंग्रेजों के खिलाफ पहला हथियार उठाने वाला यह जवान आज भी हर भारतीय के दिल में अमर है.
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवां गांव में जन्मे मंगल पांडे की जन्मतिथि को लेकर आज भी संशय है. कुछ लोग इसे 30 जनवरी मानते हैं, तो कुछ सरकारी रिकॉर्ड में 19 जुलाई 1827 दर्ज है. हालांकि, उनकी जयंती पर देशभर में श्रद्धा और गर्व का माहौल होता है, और बलिया के लोग उन्हें ‘बगावत की धरती का लाल’ कहकर याद करते हैं.
एक सैनिक ने सिखाई विद्रोह की भाषा
मंगल पांडे ने 1849 में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती होकर नौकरी शुरू की थी. लेकिन जब धर्म से समझौता करने की बारी आई, उन्होंने बगावत को चुना. नए एनफील्ड राइफल में उपयोग होने वाले कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी मिलने की बात सामने आई तो उन्होंने इसे मुंह से छीलने से इनकार कर दिया. यही उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बन गया.
जब ‘मारो फिरंगी को’ बन गया युद्धघोष
29 मार्च 1857 को जब उन्हें आदेश मिला कि वही कारतूस इस्तेमाल करें, मंगल पांडे ने खुलेआम विद्रोह कर दिया. उन्होंने न केवल आदेश मानने से इनकार किया, बल्कि दो अंग्रेज अधिकारियों को गोली मार दी. उनका नारा ‘मारो फिरंगी को’ देखते ही देखते पूरे देश में क्रांति का स्वर बन गया.
खुद को मारी थी गोली
मंगल पांडे की बहादुरी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश हुआ, तो भारतीय सैनिकों ने इनकार कर दिया. इसके बाद उन्होंने खुद को गोली मारकर घायक लिया था, इसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया था. ब्रिटिश सरकार के लिए यह घटना इतनी भयावह थी कि उन्होंने तत्काल कोर्ट मार्शल कर उन्हें मृत्युदंड दे दिया.
बदल दी गई थी फांसी की तारीख
मंगल पांडे को 18 अप्रैल 1857 को फांसी दी जानी थी, लेकिन अंग्रेज इतने भयभीत थे कि उन्हें 10 दिन पहले 8 अप्रैल को ही फांसी दे दी गई. स्थानीय जल्लादों ने उन्हें फांसी देने से इनकार कर दिया, इसलिए कोलकाता से जल्लाद बुलवाए गए. यह दर्शाता है कि मंगल पांडे का प्रभाव कितना व्यापक और प्रेरणादायक था.
एक चिंगारी, जिसने आग बना ली
उनकी बगावत की आग जल्दी नहीं बुझी. एक महीने बाद ही मेरठ से लेकर झांसी, कानपुर और दिल्ली तक स्वतंत्रता की लहर फैल गई. मंगल पांडे का बलिदान पहला पन्ना बना उस संघर्ष का, जिसने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी और भारत को जागृत कर दिया. 1984 में भारत सरकार ने उनके नाम का डाक टिकट जारी किया और फिल्मों, कविताओं व लोकगीतों में उन्हें अमर कर दिया गया.