80 JCB, 60 डंपर और 2000 पुलिसवालों की घेराबंदी, लाला बिहारी के अवैध साम्राज्य पर ऐसे चला बुलडोजर
अहमदाबाद में चंदोला झील के पास ‘ऑपरेशन क्लीन’ के तहत अवैध बस्तियों पर बुलडोजर चल गया. प्रशासन ने बांग्लादेशी घुसपैठियों की आड़ में सैकड़ों गरीब परिवारों की झोपड़ियां ढहा दीं. बिना वैकल्पिक व्यवस्था के की गई इस कार्रवाई से महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग खुले आसमान के नीचे आ गए. हाईकोर्ट से राहत न मिलने पर मामला अब मानवीय संकट बनता जा रहा है.

गुजरात के अहमदाबाद में 'ऑपरेशन क्लीन' के तहत जो बुलडोजर चला, उसने केवल ईंट-पत्थर नहीं तोड़े, बल्कि कई ज़िंदगियों की नींव भी हिला दी. चंदोला झील के किनारे स्थित बस्तियों को अवैध बताकर ध्वस्त कर दिया गया, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई केवल अतिक्रमण हटाने तक सीमित थी, या इसके पीछे गहरी सामाजिक और राजनीतिक परतें छुपी थीं?
इस पूरे अभियान की शुरुआत पुलिस और नगर निगम की ओर से मिली सूचना पर हुई, जिसमें कहा गया कि यहां बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक अवैध रूप से रह रहे हैं. इस आधार पर पूरे क्षेत्र में कार्रवाई की गई, जिसमें हजारों घर, झुग्गियां और एक फार्महाउस तक जमींदोज कर दिया गया. लेकिन क्या बिना अदालत के अंतिम फैसले के, नागरिकों को सिर्फ पहचान के शक में बेघर कर देना उचित है?
पहले नहीं दी गई सूचना
कई निवासियों का कहना है कि उन्हें कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी. बिजली पहले ही काट दी गई थी और रात में पुलिस ने घर खाली करा लिए थे. जिनके पास दस्तावेज़ थे, उन्हें भी अपनी बात रखने का मौका नहीं मिला. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या यह डिमोलिशन संविधान की प्रक्रिया का पालन करते हुए किया गया?
'ऑपरेशन क्लीन' दिया गया नाम
इस अभियान को सरकारी एजेंसियों ने 'ऑपरेशन क्लीन' नाम दिया है, लेकिन यह नाम उन लोगों के लिए कितना तंजभरा है जिनकी ज़िंदगी की सारी पूंजी इस 'सफाई' में नष्ट हो गई. इसमें एक व्यक्ति महमूद पठान यानी लाला बिहारी को मुख्य आरोपी बताया गया, जो कथित रूप से बांग्लादेशियों को शरण देता था और खुद भी अवैध निर्माण में लिप्त था. उस पर पुलिस पर हमले का भी आरोप है, लेकिन क्या एक आरोपी के कृत्य की सजा पूरी बस्ती को दी जा सकती है?
इतिहास का सबसे बड़ा बुलडोजर एक्शन
इस बीच सरकार ने इसे ‘इतिहास का सबसे बड़ा बुलडोजर एक्शन’ बताया है. सोशल मीडिया पर इसे 'मिनी बांग्लादेश' के खिलाफ कार्रवाई का नाम दिया जा रहा है. मगर यह लेबलिंग नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों के लिहाज़ से कितनी उचित है? क्या केवल धर्म और राष्ट्रीयता के आधार पर पूरे समुदाय को निशाना बनाया जा सकता है?
80 जेसीबी से तोड़ा गया घर
इस अभियान के तहत करीब 80 जेसीबी और 60 डंपर, 2000 से अधिक पुलिसकर्मी की तैनाती और ड्रोन से निगरानी, यह सब एक बस्ती के डिमोलिशन के लिए लगाया गया. यह मात्र अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई नहीं, बल्कि एक प्रकार का शक्ति प्रदर्शन भी लगता है. क्या प्रशासन अब संवेदनशीलता से अधिक शक्ति और नियंत्रण को प्राथमिकता दे रहा है?
हाईकोर्ट ने याचिका की ख़ारिज
गुजरात हाईकोर्ट ने डिमोलिशन पर रोक की याचिका को खारिज कर दिया है, लेकिन यह बहस अब भी जीवित है कि जब एक लोकतांत्रिक समाज में इंसान की पहचान ही संदिग्ध हो जाए, तो कानून और न्याय किसका पक्ष लेंगे? यह केवल 'ऑपरेशन क्लीन' नहीं था, यह एक सामाजिक मोड़ पर लिया गया फैसला था, जिसका असर आने वाले वर्षों तक महसूस किया जाएगा.