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सौतेला भाई या दोस्त... रोहित बल की वसीयत का क्‍या है मामला, कौन होगा उनकी करोड़ों की प्रॉपर्टी का वारिस?

रोहित बल की वसीयत उनके पुराने दोस्त ललित तेहलान और उनके सौतेले भाई राजीव बल के परिवार के बीच विवाद का विषय बन गया है. अब देखना यह होगा कि आखिरकार किसे मिलेगी डिजाइनर के करोड़ों रूपये की प्रॉपर्टी.

सौतेला भाई या दोस्त... रोहित बल की वसीयत का क्‍या है मामला, कौन होगा उनकी करोड़ों की प्रॉपर्टी का वारिस?
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( Image Source:  Instagram/rohitbalofficial )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 18 Dec 2024 3:37 PM IST

हाल ही में रोहित बल की मौत ने उनके दोस्त और फैमिली को डिजाइनर की आखिरी वसीयत को लेकर कंफ्यूजन में डाल दिया है. काफी लंबे समय से रोहित के दोस्त और मॉडल रह चुके ललित तेहलान ने दावा किया है कि उनके पास डिजाइनर की वसीयत है, जिसके चलते वह फैशन एम्पायर के वारिस बन गए हैं.

साथ ही, ललित ने ब्रांड और प्रॉपर्टी के वारिस के रूप में अपना हक जताया है, जिसमें डिफेंस कॉलोनी में दो मंजिलें, नोएडा में एक फैक्ट्री, कुछ जमीन, आर्टवर्क्स और आर्टिफैक्ट्स शामिल हैं. हालांकि, रोहित के सौतेले भाई और बिजनेस पार्टनर राजीव बल ने इन दावों को विवादित बताया है. जबकि राजीव बल ने ऐसी वसीयत के होने के कंफर्म नहीं किया है. साथ ही, इस बात को नकारा भी नहीं है.

राजीव बल ने क्या कहा?

राजीव ने इस महीने की शुरुआत में द इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक इंटरव्यू में इस मुद्दे को लेकर बात की थी. जहां उन्होंने कहा कि ललित तेहलान ने दावा किया है कि उनके पास एक डॉक्यूमेंट है, जिसे अभी तक किसी ने नहीं देखा है. उन्हें इसे सबके सामने पेश करने दें और फिर हम कानूनी सहारा लेंगे. जहां तक ​​मेरा सवाल है, वे परिवार के लिए अजनबी हैं.

ललित तेहलान का दावा

ललित तेहलान का दावा है कि वसीयत पूरी तरह से सेफ है. रोहित बल ने इसे तब बनाया था जब उनका दिमाग ठीक था. इतना ही नहीं, इसे गवाहों ने वैरिफाई भी किया था. साथ ही, उन्होंने यह भी दावा किया है कि उनके पास साइन के फोटोग्राफिक सबूत हैं.

ललित तेहलान के वकील ने क्या कहा?

ललित तेहलान के वकील गुरमुख चौधरी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्होंने फोटो तो नहीं देखी हैं, लेकिन उन्होंने साइन डॉक्यूमेंट देखा है और यह वैलिड लगता है. कथित तौर पर वसीयत में फैशन डिजाइन काउंसिल ऑफ इंडिया (FDCI) के चेयरमैन सुनील सेठी को एग्जीक्यूटर के रूप में डेसिग्नेटेड किया गया है.

सुनील सेठी ने दिया बयान

सुनील सेठी ने इस मामले में इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि रोहित बल की वसीयत का एग्जीक्यूटर उन्हें सौंपा गया है, जब तक कि ललित और उनके वकील ने उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी. इसके आगे उन्होंने कहा कि मैंने अभी तक वसीयत नहीं देखी है, क्योंकि कुछ पर्सनल बात थी, लेकिन मुझे कहना होगा कि ललित और उनके वकील इसे मुझे दिखाने के लिए बहुत इच्छुक थे. अगर रोहित ने वास्तव में मुझे वसीयत का एग्जीक्यूटर बनाने का इरादा किया था, तो मैं कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने और उनकी इच्छा का सम्मान करने के लिए प्रतिबद्ध हूं."

क्या है वसियत के लिए एक्ट?

जब मृतक अपनी अंतिम इच्छाओं के बारे में बताते हुए वसीयत छोड़ जाता है, तो प्रॉपर्टी का डिविजन भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 (ISA) द्वारा शासित होता है. ISA के तहत “नाबालिग न होने पर भी हेल्दी माइंड वाला हर व्यक्ति अपनी प्रॉपर्टी का निपटान वसीयत (धारा 59) द्वारा कर सकता है. यह 1 जनवरी, 1927 के बाद सभी हिंदुओं, सिखों, बौद्धों और जैनियों द्वारा की गई वसीयत पर लागू होगा.

ISA वसीयत बनाने वाले को इसे किसी भी समय कैंसिल करने या बदलने की अनुमति देता है, जब तक कि वे धारा 59 के तहत वसीयत बनाने के लिए सक्षम हों. यदि एक ही व्यक्ति द्वारा लिखी गई कई वैलिड वसीयतें हैं, तो जो अंतिम रूप से एग्जीक्यूट की गई थी, वही वैध मानी जाएगी.

रोहित बल की वसियत का क्या होगा?

रोहित बल की कथित वसीयत को ISA की धारा 63 के तहत ‘अनप्रिविलेज्ड विल’ (किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा बनाई गई वसीयत जो सक्रिय सैनिक, एरयरमैन या मेरिनर न हो) के लिए आवश्यक शर्तों को भी पूरा करना होगा. इसमें मेकर या टेस्टेटर (या वसीयतकर्ता के निर्देश पर कोई अन्य व्यक्ति) के साइन होने चाहिए. साथ ही, इसे टेस्टेटर की मौजूदगी में दो गवाहों द्वारा वेरिफाई और साइन किया जाना चाहिए.

इसके अलावा प्रत्येक गवाह ने टेस्टेटर को वसीयत पर साइन करते या अपना निशान लगाते देखा होगा. इसके अलावा, वसीयतकर्ता की मौजूदगी में और उसके कहने पर किसी अन्य व्यक्ति को वसीयत पर साइन करते देखा होगा.

यदि पूरी वसीयत या उसका कोई पार्ट धोखाधड़ी या जबरदस्ती के अलावा ऐसी जिद से बनाया गया था, जो वसीयतकर्ता की फ्री एजेंसी को छीन लेती है, तो उस हिस्से को ब्लैंक बना दिया जाएगा - ऐसा माना जाएगा जैसे कि वह कभी अस्तित्व में ही न हो.

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