'नंगा होकर आऊंगा..' Nana Patekar की Vidhu Vinod से हुई थी हाथापाई, सबके सामने फाड़ दिया था कुर्ता
नाना पाटेकर इंडस्ट्री उन स्टार्स में हैं जिन्हें उनकी दमदार एक्टिंग के अलावा उनके गुस्सैल स्वाभाव के बारें में भी जाना जाता है. जिसकी वजह से उन्हें कई डायरेक्टर्स फिल्मों में कास्ट करने से झिझकते थे. जिसमें एक किस्सा है परिंदा के सेट का जब नाना और विधु विनोद चोपड़ा के बीच हाथापाई हो गई थी.

आज भले ही नाना पाटेकर को भारतीय सिनेमा के सबसे बेहतरीन और प्रभावशाली स्टार्स में गिना जाता है, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब उनकी छवि ही उनके लिए सबसे बड़ी रुकावट बन गई थी. ये वो दौर था जब उन्होंने 1989 में आई फिल्म 'परिंदा' में एक विस्फोटक परफॉरमेंस से सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था. लेकिन स्क्रीन पर उनकी गुस्सैल स्वाभाव और ऑफ-स्क्रीन की अफवाहें मिलकर एक ऐसी इमेज बन चुकी थीं, जिससे उन्हें कई फिल्ममेकर्स कास्ट करने से झिझकने लगे थे.
1990 में जब एक्टर-निर्देशक अमोल पालेकर अपनी फिल्म थोड़ा सा रूमानी हो जाए की तैयारी कर रहे थे, तो उन्हें एक ऐसे किरदार के लिए एक्टर की तलाश थी जो सेंसटिव, शांत और भीतर से कवि हो. नाना पाटेकर का नाम सामने आया तो अमोल तुरंत झिझक गए. उनके शब्दों में मैंने उन्हें उनके गुस्सैल स्वभाव के कारण अस्वीकार कर दिया था. वह किरदार बहुत सॉफ्ट था, उसमें नर्मी और एक अंदरूनी भावना थी और मुझे नाना की स्क्रीन और ऑफ-स्क्रीन इमेज को देखकर नहीं लगा कि वह इसे निभा पाएंगे.'
खुद को कर दिया था अमोल के हवाले
पर नाना पाटेकर हार मानने वालों में से नहीं थे, उन्होंने अमोल पालेकर को मनाने की ठान ली. नाना ने न तो गुस्से का सहारा लिया, न ही अपने स्टारडम का रौब दिखाया. बल्कि वे बार-बार हम्बल नेचर के साथ अमोल से मिलने जाते रहे और उनसे एक ही बात कहते रहे - मैं खुद को आपके हवाले कर देता हूं, जैसे चाहें मुझे गढ़ लें.'
10 दिन में खुद को ऐसे बदल लिया था
अमोल पालेकर ने अंत में नाना को एक मौका दिया 10 दिनों की रिहर्सल का. इन 10 दिनों में नाना ने अपनी भावनाओं को, अपने हाव-भाव को, अपनी आवाज़ की तीव्रता तक को कंट्रोल करना सीखा. अमोल ने बताया, 'वो मेरे पास एकदम निर्वस्त्र आत्मा के साथ आए. उन्होंने कहा, 'आप जैसा चाहें मुझे बना सकते हैं और सच में, उन 10 दिनों में मैं एक नया नाना पाटेकर देख रहा था. एकदम शांत, सेंसटिव और उस किरदार के बिल्कुल करीब.' पूरी शूटिंग के दौरान नाना ने खुद को पूरी तरह बदल लिया. अमोल कहते हैं, 'हमारे बीच न तो कोई बहस हुई, न ही कोई बहाव. मैं हैरान था कि वही व्यक्ति है, जिसकी अग्रेसिव नेचर की कहानियां इंडस्ट्री में मशहूर थीं.'
जब निर्देशक से हो गई हाथापाई
दरअसल, नाना की अग्रेसिव नेचर केवल अफवाहों पर आधारित नहीं थी. परिंदा के निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने खुद एक रियलिटी शो (सा रे गा मा पा) पर इस बात की पुष्टि की थी कि नाना और उनके बीच एक बार शूटिंग के दौरान गंभीर झगड़ा हो गया था. उन्होंने बताया, 'एक सीन में नाना की पत्नी की मौत होती है, और वह पूछते हैं, 'क्या मेरी आंखों में आंसू हैं?’ हमने पूरा दिन उसी सीन की शूटिंग में निकाल दिया. शाम तक नाना थक चुके थे और उन्होंने कहा कि अब वे घर जा रहे हैं. मैंने उनसे कहा, ‘ज़रूर जाइए, लेकिन ओवरहेड्स का पैसा आप दीजिए.’ बस, इसके बाद तू-तू मैं-मैं गालियों में बदली, और फिर हाथापाई में. मैंने गुस्से में उनका कुर्ता तक फाड़ दिया. सेट पर मौजूद पुलिसकर्मी भी हैरान थे. बोले- 'हम आपकी सेफ्टी करने आए हैं, और आप खुद एक-दूसरे से लड़ रहे हो.'
नाना ने किया खुद को साबित
इन सब घटनाओं के बावजूद, नाना पाटेकर ने यह साबित कर दिया कि एक एक्टर की वैल्यू उसके पास्ट से नहीं, बल्कि उसकी कला, डेडिकेशन और बदलने की कैपेसिटी से होता है. थोड़ा सा रूमानी हो जाए जैसी सॉफ्ट फिल्म में उन्होंने जिस सेंसिटिविटी के साथ किरदार निभाया, उसने न केवल अमोल पालेकर को, बल्कि पूरी इंडस्ट्री को चौंका दिया.