डाकू मानसिंह से लेकर श्रीकांत तिवारी तक: Manoj Bajpayee की एक्टिंग की क्लासिक गैलरी से दमदार किरदार
अमिताभ बच्चन की फिल्म ज़ंजीर ने उनके भीतर एक्टर बनने की चिंगारी जला दी थी. महज 9 साल की उम्र में उन्होंने ठान लिया था - मुझे एक्टर बनना है और तब से लेकर आज तक, उनका यही सपना उनके जीवन की दिशा बन गया.

मनोज बाजपेयी की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. एक छोटे से गांव से निकलकर भारतीय सिनेमा के ऊंचे मुकाम तक पहुंचने का उनका सफर संघर्ष, हौसले और जुनून का अनोखा मेल है. 23 अप्रैल 1969 को बिहार के पश्चिम चंपारण ज़िले के बेलवा गांव में एक किसान पिता और गृहिणी मां के घर जन्मे मनोज, बेहद साधारण माहौल में बड़े हुए.
बचपन की पढ़ाई उन्होंने एक ऐसी स्कूल में की जिसे लोग "झोपड़ी वाला स्कूल" कहा करते थे. छुट्टियों में खेतों में काम करना आम बात थी, लेकिन उनके सपनों की उड़ान बहुत ऊंची थी. अमिताभ बच्चन की फिल्म ज़ंजीर ने उनके भीतर एक्टर बनने की चिंगारी जला दी थी. महज 9 साल की उम्र में उन्होंने ठान लिया था - मुझे एक्टर बनना है और तब से लेकर आज तक, उनका यही सपना उनके जीवन की दिशा बन गया. यह सफर सिर्फ एक छोटे गांव के लड़के का नहीं, बल्कि उस जिद और डेडिकेशन का था जो हर बाधा को पार कर अपनी मंज़िल तक पहुंचता है.
दमदार किरदार
मनोज बाजपेयी के ये तमाम किरदार उनकी शानदार एक्टिंग कैपेबिलिटी की झलक हैं—कभी डराने वाले गैंगस्टर, तो कभी ईमानदार पुलिस अफसर, कभी संवेदनशील आम इंसान, तो कभी समाज से लड़ता हुआ अकेला किरदार निभाया है. उनकी सबसे बड़ी खासियत यही है कि वे हर रोल को इस तरह जीते हैं कि वह महज किरदार नहीं रह जाता, बल्कि ज़िंदगी का हिस्सा बन जाता है. आइये नजर डाले उनके दमदार किरदार पर.
बैंडिट क्वीन - डाकू मानसिंह (1994)
बाजपेयी ने मानसिंह नाम के डकैत का किरदार निभाया था। यह उनका शुरुआती करियर का एक छोटा लेकिन बेहद असरदार रोल था. मानसिंह एक ऐसा डकैत था जो फूलन देवी के गैंग का हिस्सा बनता है और बाद में उसका भरोसेमंद साथी भी बनता है. यह किरदार ज्यादा लंबा नहीं था, लेकिन उनके इस रोल ने इंडस्ट्री के लोगों का ध्यान मनोज की ओर खींचा और बाद में उन्हें 'सत्या' जैसी बड़ी फिल्म मिली.
भिखु माहात्रे - सत्या (1998)
इस गैंगस्टर की भूमिका ने बाजपेयी को रातोंरात स्टार बना दिया. भिखु का गुस्सा, दोस्ती, और ट्रैजिक अंत दर्शकों को इमोशनल कर गया. उनकी डायलॉग डिलीवरी (मुंबई का किंग कौन? भिखु माहात्रे!) और मेथड एक्टिंग ने इसे अमर कर दिया. बाजपेयी को इसके लिए बेस्ट सपोर्टिव एक्टर के लिए नेशनल अवार्ड पुरस्कार और फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवॉर्ड मिला था.
समर प्रताप - शूल (1999)
एक ईमानदार पुलिसवाले की भूमिका में बाजपेयी ने भ्रष्टाचार और व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई को दमदार तरीके से दिखाया. उनका गुस्सा और नैतिकता किरदार को यादगार बनाती है. इस फिल्म में उनके साथ रवीना टंडन भी नजर आई थी.
पिंजर - रशीद खान (2003)
पिंजर में मनोज बाजपेयी ने रशीद का किरदार निभाया था. एक ऐसा शख्स जो शुरुआत में खलनायक जैसा लगता है, लेकिन धीरे-धीरे उसकी इंसानियत और जज़्बात सामने आते हैं. रशीद एक मुस्लिम युवक है जिसे एक पुराना खानदानी बदला पूरा करना होता है. वो पूरो (उर्मिला मातोंडकर) का अपहरण करता है, लेकिन समय के साथ उसे उससे मोहब्बत हो जाती है.
वीर-ज़ारा - रज़ा शरजील (2004)
वीर-ज़ारा में मनोज ने रज़ा शरजील का किरदार निभाया था. ज़ारा (प्रीति ज़िंटा) का मंगेतर और एक प्रभावशाली, मगर सख्त सोच वाला पाकिस्तानी युवक. रज़ा एक ऐसा इंसान है जो परंपरा, सामाजिक प्रतिष्ठा और अपने अहम को सबसे ऊपर रखता है. एक भारतीय निर्दोष को जासूस बताकर ताउम्र पाकिस्तान की सलाखों के पीछे डाल देता है.
सरदार खान - गैंग्स ऑफ वासेपुर (2012)
अनुराग कश्यप की इस कल्ट फिल्म में सरदार खान का किरदार एक बदले की आग में जलता, थोड़ी कॉमेडी और क्रूरता से भरा हुआ है. बाजपेयी का किरदार गुस्सैल, मजाकिया, और करिश्माई है. इस फिल्म से 'हजरात-हजरात' और 'बाप का, बेटे का, भाई का, सबका बदला लेगा रे तेरा फैजल" जैसे डायलॉग्स आज भी फेमस हैं.
प्रो. रामचंद्र सिरस - अलीगढ़ (2015)
समलैंगिक प्रोफेसर के किरदार में मनोज बाजपेयी ने समाज की सोच और एक अकेले इंसान की भावनाओं को बहुत ही सादगी और गहराई से दिखाया. उनका शांत और इमोशनल एक्टिंग दिल को छू जाता है. उनकी आंखों और चुप्पी से भावनाओं का व्यक्त होना मास्टरक्लास है.
अविनाश राठौर (टाइगर) - बाघी 2 (2018)
इस मसाला एक्शन फिल्म में मनोज बाजपेयी ने एक खलनायक की भूमिका निभाई जो शांत, चालाक और बेहद खतरनाक था। भले ही उनका स्क्रीन टाइम कम था, लेकिन उन्होंने अपनी दमदार मौजूदगी से दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ी। उनकी मुस्कान और डायलॉग्स ने इस किरदार को और भी यादगार बना दिया.
श्रीकांत तिवारी - द फैमिली मैन (2019)
इस वेब सीरीज में बाजपेयी एक मिडिल क्लास फैमली से है लेकिन एक खुफिया अधिकारी हैं, जो देश और परिवार के बीच बैंलस बनाने की कोशिश करता हैं. उनका किरदार रिलेटेबल, कॉमेडी, और इमोशनली है. बाजपेयी की इस सीरीज में उनकी एक्टिंग और कॉमिक टाइमिंग इसे आम आदमी का हीरो बनाता है.
वकील पी.सी. सोलंकी - सिर्फ एक बंदा काफी है (2023)
एक वकील के तौर पर मनोज बाजपेयी ने एक आम इंसान की खास लड़ाई को बखूबी ज़िंदा किया, जो एक बाबा के खिलाफ अदालत में इंसाफ की लड़ाई लड़ता है. उनका किरदार भरोसेमंद लगता है और लोगों को प्रेरणा देता है. कोर्टरूम के सीन में उनकी डायलॉग बोलने की स्टाइल और भावनाओं की गहराई बहुत असरदार है.