50-100 रुपये का फीस चेक 8 लाख के बजट में बनी फिल्म, Satish Shah ने ऐसे की थी Jaane Bhi Do Yaaro की शूटिंग
'जाने भी दो यारो' सतीश शाह के करियर में एक टर्निंग पॉइंट साबित हुई. उस समय वे भारतीय फिल्म एवं टेलीविज़न संस्थान (FTII) से हाल ही में ग्रेजुएट हुए थे और इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे थे.
भारतीय सिनेमा के दिग्गज स्टार सतीश शाह अब हमारे बीच नहीं रहे. शनिवार को 74 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके निधन की खबर ने पूरे फिल्म जगत और उनके चाहने वालों को गहरे दुख में डाल दिया है. सतीश शाह को भारतीय टेलीविज़न और सिनेमा में एक बेहतरीन कॉमेडी कलाकार और मल्टी एक्टर के रूप में जाना जाता था. जहां टीवी के दर्शकों के दिलों में उन्होंने 'साराभाई वर्सेस साराभाई' में निभाए गए इंद्रवदन साराभाई के किरदार से जगह बनाई. वहीं फिल्म प्रेमियों के लिए उनका नाम हमेशा कुंदन शाह की चर्चित फिल्म 'जाने भी दो यारो' से जुड़ा रहेगा.
यह फिल्म हिंदी सिनेमा की सबसे अनोखी और कॉमेडी फिल्मों में से एक मानी जाती है. इस फिल्म ने सतीश शाह के करियर को एक नई दिशा दी और उन्हें उस दौर में भी एक अलग पहचान दिलाई जब फिल्में उस समय में रोमांस या ऐक्शन पर आधारित हुआ करती थी. एक पुराने इंटरव्यू में, सतीश शाह ने इस फिल्म से जुड़ी कई दिलचस्प यादें शेयर की थी. उन्होंने मशहूर फिल्म एनालिस्ट कोमल नाहटा के चैट शो 'और एक कहानी' में बताया कि उस समय यह फिल्म सिर्फ 8 लाख रुपये के मामूली बजट में बनाई गई थी.
मिलता था 50 और 100 रुपये का चेक
सतीश ने मुस्कुराते हुए कहा था, 'उन दिनों फिल्मों का बजट बहुत कम होता था. 'जाने भी दो यारो' का बजट लगभग 8 लाख रुपये था, तो आप सोच सकते हैं कि मुझे कितनी रकम मिली होगी. मुझे 50 और 100 रुपये के चेक मिलते थे वो भी किश्तों में.' उन्होंने यह भी बताया कि फिल्म की सफलता के पीछे सिर्फ़ मेहनत नहीं, बल्कि ईश्वर की कृपा और भाग्य का साथ भी था. उन्होंने कहा, 'हम सबने अपना दिल लगाकर काम किया, लेकिन सच्चाई यह है कि इस फिल्म को जो पहचान मिली, वह किस्मत से मिली. इस फिल्म के निर्माण के दौरान इतने उतार-चढ़ाव आए कि उस पर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है.'
शूटिंग के दौरान किसी को नहीं हंसी आई
एक और बातचीत में, जो उन्होंने बॉलीवुड हंगामा के साथ की थी, सतीश शाह ने फिल्म के शूटिंग अनुभव का एक मजेदार लेकिन चौंकाने वाला किस्सा बताया. उन्होंने कहा कि उन्हें और उनके सह-कलाकारों नसीरुद्दीन शाह, रवि बासवानी, ओम पुरी, पंकज कपूर, सतीश कौशिक, भक्ति बर्वे और नीना गुप्ता को यह फिल्म शूटिंग के समय बिलकुल भी मज़ेदार नहीं लगी. उन्होंने हंसते हुए कहा था, 'हमें यह फिल्म बनाते वक्त ज़रा भी हंसी नहीं आई. किसी को समझ नहीं आ रहा था कि हम कर क्या रहे हैं. बस कुंदन शाह को यह सब बेहद मजेदार लगता था, और हम सबने उनकी बात मान ली.'
खुद खरीदी थी टिकट
फिल्म पूरी तरह कम बजट की थी, इसलिए निर्माताओं के पास प्रीमियर के लिए भी पैसे नहीं थे. सतीश ने बताया कि निर्देशक कुंदन शाह ने कलाकारों से खुद प्रीमियर के टिकट खरीदने को कहा था. उन्होंने कहा, 'फिल्म का बजट बहुत छोटा था, लेकिन उसका भाग्य बड़ा था. हमें खुद अपनी फिल्म देखने के लिए टिकट खरीदनी पड़ी पर आज वही फिल्म इतिहास बन गई.'
सतीश शाह के करियर का टर्निंग पॉइंट
'जाने भी दो यारो' सतीश शाह के करियर में एक टर्निंग पॉइंट साबित हुई. उस समय वे भारतीय फिल्म एवं टेलीविज़न संस्थान (FTII) से हाल ही में ग्रेजुएट हुए थे और इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे थे. इस फिल्म ने उनकी कॉमेडी टैलेंट, डॉयलाग डिलीवरी और एक्सप्रेशन को दर्शकों के सामने लाकर रख दिया. इसके बाद वे जल्दी ही टेलीविज़न के जाने-माने चेहरे बन गए. 1984 में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले लोकप्रिय सिटकॉम 'ये जो है ज़िंदगी' में उन्होंने एक अलग ही छवि बनाई. उनका नेचुरल ह्यूमर, चेहरे के हावभाव और डॉयलाग की प्रेजेंटेशन ने दर्शकों को उनका दीवाना बना दिया. धीरे-धीरे सतीश शाह भारत के सबसे प्रिय और सम्मानित कॉमेडियंस में शामिल हो गए. उन्होंने सिनेमा और टीवी दोनों में ऐसे किरदार निभाए जिन्हें आने वाली जनरेशन भी याद रखेंगी.
यादों में सतीश शाह
आज जब सतीश शाह हमारे बीच नहीं हैं, तो उनके चाहने वाले उन्हें सिर्फ़ एक एक्टर के रूप में नहीं, बल्कि एक सच्चे कलाकार और इंसान के रूप में याद कर रहे हैं. उनके साथियों का कहना है कि वे हमेशा खुशमिज़ाज, मददगार और जिंदादिल व्यक्ति थे, जो हर सेट पर सकारात्मक माहौल बना देते थे. उनकी सबसे बड़ी विरासत वह हंसी और सादगी है, जो उन्होंने दर्शकों को दी. उनका जाना एक युग के अंत जैसा है- लेकिन उनके किरदार, उनके संवाद और उनकी मुस्कान हमेशा ज़िंदा रहेंगे.





