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Pahalgam Terror Attack: पहलगाम में हमारे ‘स्लीपर-सेल’ सोते रहे, उनके काम कर गए: EXCLUSIVE

22 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम में हुए भयावह आतंकी हमले ने देश को झकझोर दिया. रिटायर्ड डीसीपी एल. एन. राव ने बताया कि इस नरसंहार के पीछे छिपे थे देशद्रोही 'स्लीपर सेल', जो आतंकियों को शरण, संसाधन और जानकारी मुहैया कराते हैं. सरकारी एजेंसियों के ‘स्लीपर सेल’ इस बार विफल रहे, जिससे 26-28 निर्दोषों की जान चली गई.

Pahalgam Terror Attack: पहलगाम में हमारे ‘स्लीपर-सेल’ सोते रहे, उनके काम कर गए: EXCLUSIVE
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संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 24 April 2025 6:24 AM IST

मंगलवार यानी 22 अप्रैल 2025 को दोपहर बाद दिन-दहाड़े करीब 3 बजे कश्मीर घाटी के पहलगाम में, जिस तरह की खूनी होली खेली गई. उसे देखकर केवल भारत ही नहीं दुनिया थर्रा उठी है. इस लोमहर्षक घटना ने साबित कर दिया है कि दहशतगर्दों-आतंकवादियों का कोई ईमान-धर्म-कौम नहीं होती है. यह सिर्फ नंबर-1 के छिछोरे-क्रूर और खूनी और लालची दिमाग वाले होते हैं. चंद कौड़ियों के बदले यह खुद को किसी भी हद से नीचे ले जाकर गिरा सकते हैं.

इस श्रेणी के ही खूंखारों को दुनिया भर की खुफिया और जांच एजेंसियां “स्लीपर-सेल” (Sleeper Cell) कहती हैं. भारत में मौजूद इन ‘स्लीपर-सेलों’ को अगर ढूंढकर मार डाला जाए, तो फिर पहलगाम और पुलवामा को खूनी होने से बचाया जा सकता है. पहलगाम सी खूनी घटनाओं को अंजाम देने वाले गद्दार तो दुश्मन देश से आए हुए भाड़े के होते हैं. स्लीपर सेल तो हमारे अपने ही पैदा किए पाले-पोसे अपने ही ‘गद्दार’ होते हैं.

स्लीपर सेल गंदे बजबजाते कीड़ों की कौम

दरअसल, पुलिस और जांच व खुफिया एजेंसियों की भाषा में स्लीपर सेल उस गंदी कौम के बजबजाते हुए कीड़े होते हैं, जो हम इंसानों की ही भीड़ में से पैदा होकर हमारे ही बीच सोते, जागते, रहते, खाते-पीते-कमाते हैं. “स्लीपर सेल” समूह में भी होते हैं और अकेले-अकेले भी. यह स्लीपर सेल उस खास जगह पर हमारे बीच में ही छिपकर रहते हैं, जहां इन्हें आतंकवादियों से हमला करवाना होता है. यानी कि टारगेटिड गांव, शहर या फिर देश. आतंकवादियों का काम तो सिर्फ और सिर्फ दुश्मन देश में बेकसूरों को गोलियों-बमों से हमला करके मार डालने भर का होता.

स्लीपर सेल मतलब हमारे अपने ही गद्दार

बाकी उससे पहले के पूरे षडयंत्र का तानाबाना तो हमारे अपने ही बीच के गद्दार ‘स्लीपर-सेल’ के रूप में करते हैं. उदाहरण के लिए पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए खूनी हमले को ही लें. इसमें गोलीबारी करने वाले दहशतगर्द बेशक पाकिस्तानी हैं. इन पाकिस्तानी आतंकवादियों को मगर, पहलगाम या उसके आसपास, हथियार, शरण का इंतजाम तो न स्लीपर सेलों ने ही किया होता है. विदेशी आतंकवादियों को लोकल में (टारगेट किलिंग वाली जगह) में के बारे में अंदर की कोई जानकारी नहीं होती है.

आतंकवादियों के मददगार ‘स्लीपर सेल’

करीब 37 साल तक दिल्ली पुलिस की नौकरी कर चुके, दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के रिटायर्ड डीसीपी एल एन राव से स्टेट मिरर हिंदी ने ‘स्लीपर-सेल’ को लेकर लंबी एक्सक्लूसिव बात की. क्योंकि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की नौकरी में उनका पाला 200 से भी ज्यादा ‘स्लीपर सेल’ से पड़ चुका है. उनके मुताबिक, “पहलगाम लोमहर्षक नरसंहार में सब कुछ असली और जमीनी काम तो स्लीपर सेलों का ही किया धरा है. स्लीपर सेल उस स्थानीय इलाके के ही इंसानों (समुदाय) के बीच पले-बढ़े, पीढ़ियों से रहते आने वाले गद्दार होते हैं, जो विदेशी आतंकवादियों या टारगेट किलिंग करने वालों के असली मददगार होते हैं.

स्लीपर सेल आतंकवादियों के भी ‘बाप’ हैं

दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल (Delhi Police Special Cell) के रिटायर्ड डीसीपी एल एन राव (DCP L N Rao) स्लीपर सेल के बारे में एक से बढ़कर एक चौंकाने वाला खुलासा करते हैं. उनके मुताबिक, “स्लीपर सेल वो देश की गद्दार कौम है जो किसी भी देश में आतंकवादी (Pahalgam Terrorist Attack) घटना को अंजाम दिए जाने तक सुप्तावस्था (सोए हुए यानी एकदम शांत-खामोश) में पड़े रहते हैं. क्योंकि स्लीपर-सेल ही अगर शोर मचाएंगे तो फिर वे स्लीपर सेल वाले खतरनाक काम को अंजाम ही नहीं दे पाएंगे. स्लीपर-सेल ही उन आतंकवादियों (Pahalgam Attack) को लोकल इलाके में यानी वहां सभी सुविधाएं जैसे रास्ते बताना, आतंकवादियों (Terrorist Attack)के लिए पैसों का इंतजाम, उन्हें टारगेट वाली जगह के एकदम करीब बेहद सुरक्षित जगह पर छिपाने के लिए गुप्त स्थान का इंतजाम आदि करते हैं...”

आतंकवादी सिर्फ ‘टारगेट’ ध्वस्त करेगा

दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के पूर्व डीसीपी के मुताबिक, ‘जैसे ही आतंकवादी टारगेट को अंजाम दे देते हैं. यह स्लीपर सेल गायब हो जाते हैं. यह स्लीपर सेल दिन-महीनों की बात छोड़िए. कई-कई साल तक सोई हुई अवस्था में पड़े रहकर, आतंकवादियों के लिए तब तक सुरक्षित रखने के इंतजामों में जुटे रहते हैं. जब तक कि वे (जिन आतंकवादियों को खून खराबे को अंजाम देना है) अपने टारगेट को बर्बाद न कर लें. स्लीपर सेल के बिना बड़े से बड़ा कोई आतंकवादी दुनिया में कहीं भी किसी भी (पहलगाम-पुलवामा) विध्वंसक कार्यवाही को अंजाम ही नहीं दे सकता है. क्योंकि उसे टारगेट के आसपास छिपने की ट्रेनिंग नहीं दी जाती है. उसे तो टारगेट को फिनिश करने की ट्रेनिंग दी जाती है. कोई भी तुर्रमखां आतंकवादी टारगेट किलिंग या टारगेट शहर, गांव, कस्बा, इमारत के आसपास खुद को कतई छिपा पाने की काबिलियत नहीं रखता है. यह सब खूबियां सिर्फ और सिर्फ लोकल हमारे आपके बीच छिपे बैठे अपने ही गद्दार ‘स्लीपर-सेल’ की होती है.’

स्लीपर सेल के बिना आतंकवादी ‘नपुंसक’

आतंकवादी लंबे समय तक आम-अनजान भीड़ के बीच खुद को छिपाने का हुनरमंद नहीं होता है. यह खूबी भी सिर्फ ‘स्लीपर सेल’ में ही होती है. क्योंकि उसकी बाप-दादों से लेकर खुद की पीढ़ी तक के बीच अपने आप को छिपाए रखने की कुव्वत होती है. उस पर कोई शक नहीं कर सकता है. जब तक कि वो आतंकवादी से उसका टारगेट ध्वस्त न करवा ले.

‘स्लीपर सेल’ जनता के बीच सजग ‘गद्दार’ हैं

अगर आतंकवादी द्वारा टारगेट ध्वस्त करने से पहले ही, इन्हीं गद्दार स्लीपर सेल या स्लीपर सेलों को दबोच या मार डाला जाए तो, आतंकवादी अपने टारगेट पर गोलियां बरसाने की नौबत तक ही नहीं पहुंच सकते हैं. स्लीपर सेल दरअसल किसी भी आतंकवादी या आतंकवादी गुट का, ‘लोकल के बीच छिपा मुखबर’ होता है. स्लीपर सेल, आतंकवादियों की तुलना में कहीं ज्यादा खुराफाती दिमाग और शांत चित्त-प्रकृति के सोई हुई अवस्था में भी, बेहद सजग ‘गद्दार’ होते हैं.

पहलगाम में सरकारी ‘स्लीपर सेल’ फेल

“भारतीय एजेंसियों जैसे कि रॉ, आईबी, जम्मू कश्मीर पुलिस और उसके लोकल इंटेलीजेंस यूनिट, एनआईए, भारतीय मिलिट्री खुफिया एजेंसी के भी अपने अपने ‘स्लीपर सेल’ होते हैं. यह सब भी आम-पब्लिक के बीच उसी तरह से छिपकर काम करते हैं, जैसे कि आतंकवादियों के स्लीपर सेल. पहलगाम खूनी कांड से पहले मगर भारतीय सरकारी एजेंसियों, मिलिट्री और जम्मू कश्मीर पुलिस के स्लीपर सेल गहरी नींद में ही सोते रह गए. और वे पता नहीं लगा सके कि पाकिस्तानी आतंकवादी उनकी नाक के नीचे ही पहलगाम में 26-28 निर्दोषों को गोलियों से भून कर जिंदा भाग जाएंगे. मतलब, आतंकवादियों के स्लीपर सेल के सामने इस बार भारतीय एजेंसियों के स्लीपर सेल सोते ही रह गए. जोकि घोर लापरवाही और अक्षम्य अपराध का द्योतक है.” दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल की लंबी नौकरी के अनुभव से पूर्व डीसीपी एल एन राव बताते हैं.

आतंकी हमला
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