Begin typing your search...

अब सिर्फ 1 साल की नौकरी पर मिलेगी ग्रेच्युटी: सरकार का बड़ा लेबर रिफॉर्म, कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को मिली स्थायी जैसी सुविधाएं

Gratuity New Rules: केंद्र सरकार ने लेबर कानूनों में बड़ा बदलाव करते हुए फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों के लिए ग्रेच्युटी पात्रता अवधि 5 साल से घटाकर 1 साल कर दी है. 29 श्रम कानूनों को मिलाकर बने नए लेबर कोड्स के तहत अब फिक्स्ड-टर्म वर्कर्स को स्थायी कर्मचारियों जैसी वेतन संरचना, मेडिकल सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा मिलेगी. सरकार का कहना है कि यह सुधार कॉन्ट्रैक्ट रोजगार पर निर्भरता कम करेगा और बेहतर व पारदर्शी भर्ती को बढ़ावा देगा.

अब सिर्फ 1 साल की नौकरी पर मिलेगी ग्रेच्युटी: सरकार का बड़ा लेबर रिफॉर्म, कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को मिली स्थायी जैसी सुविधाएं
X
( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 22 Nov 2025 8:56 AM

Gratuity New Rules: केंद्र सरकार ने देश के श्रम ढांचे में एक बड़ा बदलाव करते हुए शुक्रवार को नए लेबर कोड्स का ऐलान किया है. इसके तहत अब फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों को ग्रेच्युटी पाने के लिए 5 साल का इंतजार नहीं करना होगा. नई व्यवस्था में सिर्फ 1 साल की नौकरी पूरी करने पर भी ग्रेच्युटी मिलने लगेगी. यह बदलाव भारत के श्रम कानूनों में दशकों बाद आए सबसे महत्वपूर्ण सुधारों में से एक माना जा रहा है. सरकार ने 29 अलग-अलग श्रम कानूनों को हटाकर उन्हें चार सरल लेबर कोड्स में एकीकृत किया है.

सरकार के अनुसार इस सुधार का मकसद मजदूरों को बेहतर मजदूरी, अधिक सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य-सुरक्षा प्रदान करना है. यह कदम उन सभी सेक्टरों को प्रभावित करेगा जहां बड़ी संख्या में कर्मचारी कॉन्ट्रैक्ट या फिक्स्ड-टर्म आधार पर काम करते हैं. नए नियम गिग वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्कर्स, प्रवासी मजदूरों और महिला कर्मियों तक भी पहुंचते हैं.

1 साल की सर्विस पर ग्रेच्युटी: बदलाव कितना बड़ा?

पहले Payment of Gratuity Act के तहत किसी भी कर्मचारी को ग्रेच्युटी पाने के लिए कम से कम 5 साल की निरंतर सेवा अनिवार्य थी. यह नियम भारत के उद्योगों में दशकों से लागू है. लेकिन नए लेबर कोड लागू होने के बाद सरकार ने इस अवधि को फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों के लिए सिर्फ 1 साल कर दिया है. इसका मतलब यह है कि जो कर्मचारी किसी प्रोजेक्ट या निश्चित समय के कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं, वे अब एक साल पूरा होते ही ग्रेच्युटी के हकदार होंगे. मंत्रालय का कहना है कि उद्देश्य फिक्स्ड-टर्म वर्कर्स को स्थायी कर्मचारियों के बराबर लाना है, ताकि कंपनियां इन्हें भी समान सुविधाएं दें.

नए नियमों के तहत फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों को अब स्थायी कर्मचारियों की तरह ही वेतन संरचना, मेडिकल सुविधाएं, अवकाश, और सामाजिक सुरक्षा मिलेगी. सरकार को उम्मीद है कि इससे कंपनियां ठेके पर कर्मचारियों की अनावश्यक भर्ती कम करेंगी और अधिक पारदर्शी, सीधे रोजगार को बढ़ावा मिलेगा.

ग्रेच्युटी क्या होती है?

ग्रेच्युटी वह राशि है जो नियोक्ता कर्मचारी को उसके लंबे समय तक संस्थान में योगदान देने के बदले में देता है. यह एक तरह का “थैंक-यू अमाउंट” होता है, जिसे नौकरी छोड़ने, रिटायरमेंट या सेवा समाप्त होने की स्थिति में दिया जाता है. पहले यह लाभ पाने के लिए कम से कम पांच साल नौकरी करना जरूरी था, लेकिन नई व्यवस्था फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों के लिए इसे सिर्फ एक वर्ष कर देती है. इससे नौकरी बदलने की स्थितियों में भी कर्मचारियों को आर्थिक सुरक्षा मिलेगी. ग्रेच्युटी कानून फैक्ट्रियों, खदानों, ऑयल फील्ड, पोर्ट, रेलवे जैसे बड़े क्षेत्रों पर लागू होता है. पहले यह अनुमान था कि सरकार ग्रेच्युटी पात्रता अवधि को 3 वर्ष तक ला सकती है, लेकिन अब इसे 1 वर्ष कर देने से लाभ और व्यापक हो गया है.

अपनी ग्रेच्युटी कैसे निकालें?

ग्रेच्युटी निकालने का एक तय फॉर्मूला है:

Last Drawn Salary × (15/26) × सेवा के कुल वर्ष. यहां Last Drawn Salary में बेसिक पे और डीए (महंगाई भत्ता) शामिल होता है. उदाहरण के लिए

अगर किसी कर्मचारी ने 5 साल की नौकरी की है और उसकी अंतिम बेसिक+DA ₹50,000 है, तो - 50,000 × (15/26) × 5 = ₹1,44,230.

नई पॉलिसी से कर्मचारियों को बड़ी राहत मिलेगी. जिन सेक्टरों में कर्मचारी अक्सर अल्पकालिक कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं, उन्हें स्थायी कर्मचारियों जैसी सुरक्षा मिल पाएगी. वहीं कंपनियों के लिए यह बदलाव कार्यस्थल स्थिरता और बेहतर HR प्रथाओं को बढ़ावा देगा.

क्यों महत्वपूर्ण है यह सुधार?

भारत में लाखों नौकरियां फिक्स्ड टर्म, कॉन्ट्रैक्ट और प्रोजेक्ट-आधारित होती जा रही हैं. ऐसे कर्मचारियों के पास पहले ग्रेच्युटी जैसी दीर्घकालिक सुविधा नहीं थी, क्योंकि उनका कॉन्ट्रैक्ट 5 साल पूरा होने से पहले ही खत्म हो जाता था. अब 1 साल के बाद ग्रेच्युटी मिलने से नौकरी बदलने के दौरान वित्तीय तनाव कम होगा, कर्मचारियों के अधिकार मजबूत होंगे, कंपनियों में पारदर्शिता बढ़ेगी और दीर्घकालिक सामाजिक सुरक्षा की दिशा में बड़ा कदम होगा. सरकार इसे “नया सामाजिक सुरक्षा युग” बता रही है, जिसमें कामगारों को अधिक अधिकार और सुरक्षा मिलेगी.

काम की खबर
अगला लेख