फिर से चाहिए 'नोबेल'! म्यांमार की हेल्प कर बांग्लादेश को खतरे में क्यों डालना चाहते हैं मुहम्मद यूनुस?
मुहम्मद यूनुस दो बड़ी चुनौतियों के बीच फंसे हैं. चुनावी दबाव के साथ-साथ म्यांमार के रखाइन क्षेत्र में राहत पहुंचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र का मानवीय गलियारे का प्रस्ताव बांग्लादेश में विवाद पैदा कर रहा है. सुरक्षा चिंताओं और राजनीतिक अस्थिरता के बीच बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इस मुद्दे पर स्पष्ट फैसला नहीं कर पा रही है.;
बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस, जो नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित हैं, इस समय एक बहुत बड़ी दुविधा में हैं. एक तरफ उनके देश बांग्लादेश में चुनाव को लेकर राजनीतिक दबाव बढ़ रहा है. जिसके बाद उन्होंने इस्तीफे तक की बात कह दी. दूसरी तरफ म्यांमार के रखाइन क्षेत्र में मानवीय मदद पहुंचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने एक खास रास्ते यानी मानवीय गलियारे का प्रस्ताव रखा है. लेकिन इस प्रस्ताव पर देश में विवाद है. यूनुस न तो इस प्रस्ताव को ठुकरा सकते हैं और न ही देश के खिलाफ जाकर सहमति दे सकते हैं, जिससे वे एक बड़े राजनीतिक संकट में फंसे हुए हैं.
बांग्लादेश के लिए यह मानवीय गलियारा एक बड़ी चुनौती है. वहां पहले से लाखों रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे हैं, जिनकी संख्या बढ़ने से देश की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था पर दबाव है. अगर यह गलियारा खुला, तो न सिर्फ और अधिक लोग अंदर आ सकते हैं, बल्कि यह रास्ता हथियार और विद्रोही समूहों के लिए भी इस्तेमाल हो सकता है. इससे सीमा सुरक्षा पर गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा. सेना और कई राजनैतिक दल इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा मानते हैं.
मानवीय गलियारा क्या होता है?
जब किसी देश या इलाके में युद्ध, दंगा या प्राकृतिक आपदा हो जाती है, तब वहां फंसे लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाने के लिए एक सुरक्षित रास्ते की जरूरत होती है. इसे मानवीय गलियारा कहा जाता है. इस रास्ते से केवल राहत सामग्री जैसे खाना, दवा और कपड़े भेजे जाते हैं. लड़ाई में शामिल सभी पक्ष इस रास्ते को सुरक्षित रखने का वादा करते हैं ताकि जरूरतमंदों तक मदद पहुंच सके. इस बार यूएन ने म्यांमार के रखाइन राज्य में राहत पहुंचाने के लिए बांग्लादेश की सीमा से होकर एक ऐसा गलियारा बनाने का प्रस्ताव दिया है.
म्यांमार का हाल और रोहिंग्या संकट
म्यांमार में काफी लंबे समय से राजनीतिक और सैनिक संघर्ष चल रहा है. वहां की सेना ने 2017 में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हिंसा शुरू की, जिससे लाखों लोग देश छोड़कर बांग्लादेश भाग गए. इन लोगों के लिए बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में दुनिया का सबसे बड़ा अस्थायी शिविर बना है. म्यांमार की आंग सान सू की की सरकार ने इस मुद्दे पर कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी, जिससे अंतरराष्ट्रीय आलोचना भी हुई. 2021 में म्यांमार की सेना ने फिर से सत्ता संभाली, और वहां हालात और खराब हो गए हैं.
सेना और राजनीतिक दलों का विरोध
बांग्लादेश की सेना ने साफ कह दिया है कि कोई भी अंतरिम सरकार, जो चुनाव से पहले बनी होती है, इतना बड़ा निर्णय नहीं ले सकती. यह काम केवल चुनी हुई सरकार का अधिकार है. विपक्षी दल भी इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि बिना संसद की सहमति के ऐसे संवेदनशील मामले में कोई फैसला नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे देश की सुरक्षा पर सवाल उठते हैं. राजनीतिक अस्थिरता के इस दौर में सरकार के लिए एक साथ इस विवाद को संभालना मुश्किल हो रहा है.
यूनुस की मुश्किल स्थिति
मुहम्मद यूनुस की छवि दुनिया में एक शांति दूत और मददगार नेता की है. अगर वे इस मानवीय गलियारे के पक्ष में खड़े होंगे, तो देश में उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ेगा. वहीं अगर वे पीछे हटेंगे तो उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा को नुकसान होगा. इसलिए वे इस मसले पर काफी सावधानी से कदम उठा रहे हैं. उनकी भूमिका को लेकर राजनीतिक और मीडिया में भी बहस चल रही है.
बड़ी ताकतों की दिलचस्पी
म्यांमार के रखाइन क्षेत्र में खनिज और प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है, जिसपर अमेरिका, चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों की नजर है. ये देश म्यांमार में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं. संयुक्त राष्ट्र का मानवीय गलियारा बनने का प्रस्ताव इन देशों की राजनीति से जुड़ा हुआ है. अगर यह गलियारा बनता है तो क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय ताकतें इस संकट में सीधे शामिल हो जाएंगी. इस कारण बांग्लादेश के लिए यह फैसला बेहद नाजुक है.
भविष्य क्या हो सकता है?
अभी तक कोई ठोस फैसला नहीं हुआ है. संयुक्त राष्ट्र, बांग्लादेश की सरकार और म्यांमार के दोनों पक्षों को एक साथ मिलकर इस मसले पर सहमति बनानी होगी. लेकिन राजनीतिक मतभेद, सुरक्षा चिंताएं और बड़े देशों की राजनीति ने इस मुद्दे को और पेचीदा बना दिया है. ऐसे में मुहम्मद यूनुस सहित बांग्लादेश की सरकार को देश की सुरक्षा और मानवीय जिम्मेदारी के बीच सही संतुलन बनाना होगा, जो आसान नहीं होगा.