SCO, G-7, ब्रिक्स जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों के घोषणा पत्र की क्या है औकात? कोई मानता भी है या है सिर्फ 'कोरा कागज'
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जी-7, ब्रिक्स, जी-20 और एससीओ समेत सभी वैश्विक संगठनों का घोषणा पत्र सदस्य देशों के बीच वैचारिक और राजनीतिक सहमति का दस्तावेज माना जाता है. घोषणा पत्र सदस्यों देशों को यह बताता है कि उन्हें संगठन के लक्ष्य को समूह प्रयासों के तहत हासिल करना है. ताकि दुनिया के देशों में आपसी सहयोग और सामूहिक हितों को बढ़ावा मिल है.;
आये दिन मीडिया संस्थानों के जरिए दुनिया भर के मुद्दों और क्षेत्रीय जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग संगठनों के घोषणा पत्र जारी होने की सूचनाएं लोगों को मिलती रहती हैं. इस तरह के संगठनों में से जी-7, जी-20, एससीओ, आसियान, ब्रिक्स, एपेक, बिम्सटेक, अरब लीग, ओआईसी व अन्य की ओर से जारी एक्शन रिपोर्ट ज्यादातर सुर्खियां बनती हैं. इन संगठनों की वजह से आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, सुरक्षा, असमान विकास, गरीबी उन्मूलन जैसे मुद्दे हमेशा छाए रहते हैं. इन समस्याओं से पार पाने के लिए कई कदम भी उठाए जाते हैं. कई बार इसका असर भी देखने को मिलता है.
अगर आतंकवाद और कश्मीर मसले की बात करें तो पाकिस्तान की लगभग सभी मंचों पर फजीहत होती रहती है. खासकर युनाइटेड नेशन, एससीओ, जी-20, ओआईसी, अरब लीग, नाटो एफएटीई जैसे संगठनों की नाराजगी का सामना करना उसे हर बार करना पड़ता है. पूरी दुनिया जानती है कि दुनिया भर में आतंकियों के पनाह कौन देता है. इसके बावजूद कुछ देश ऐसे हैं, जो अपने हितों को पूरा करने के लिए पाकिस्तान का संरक्षण करते हैं.
पाकिस्तान आदत से बाज आने को तैयार नहीं
खासतौर से संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) में 1990 के दशक से पाकिस्तान ने कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश करता रहा है, लेकिन UN इसे भारत- पाक के द्विपक्षीय मसले के रूप में देखकर हर बार खाजिर कर देता है. इसी तरह 2019 (अनुच्छेद 370 हटने के बाद) पाकिस्तान ने कई बार UN सुरक्षा परिषद और मानवाधिकार परिषद में इस मामले को उठाया, लेकिन हर बार उसे ठंडी प्रतिक्रिया मिली.
इसी तरह फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने 2008 से बार-बार आतंकवाद को फंडिंग देने और आतंकी संगठनों पर ढील बरतने के कारण पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट में डाला गया. 2018 से 2022 तक लगातार दबाव और 'डू मोर' कहकर चेतावनी दी. इसके बाद आंशिक ही रही पाकिस्तान को अपनी विदेश नीतियां बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
अमेरिका और पश्चिमी देशों ने 9/11 के बाद पाकिस्तान को आतंकवाद का सुरक्षित ठिकाना माना. इसके आरोपी ओसामा बिन लादेन को 2011 में पाकिस्तान के एबटाबाद में मार गिराया. इससे पाकिस्तान की छवि काफी धूमिल हुई. SCO, G20, OIC जैसे मंचों पर भी पाकिस्तान कश्मीर मुद्दा उठाने की कोशिश करता है, लेकिन कई बार भारत से पहले अन्य देश उसे रोक देते हैं. हाल के वर्षों में इस्लामिक देशों (जैसे सऊदी अरब और यूएई) ने भी पाकिस्तान को कश्मीर पर खुलकर समर्थन नहीं दिया.
ऐसा क्यों करता है पाक?
दरअसल, पाकिस्तान को आतंक और कश्मीर मसले पर दोहरे मापदंड की वजह से फजीहत का सामना करना पड़ता है. चीन के तियानजिन शहर में दो दिन से जारी एससीओ बैठक में पाकिस्तान की फजीहत हुई है. पीएम शहवाज शरीफ बैठक के दौरान अलग-थलग दिखई दिए हैं. पाकिस्तान को इस स्थित का सामना उसके द्वारा प्रायोजित हमले और भारतीय सेना की ओर से सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक (2016, 2019) की वजह से भी सामना करना पड़ा है. पहलगाम हमले के बाद आपरेशन सिंदूर की वजह से भी उसकी बेइज्जती हुई है. पाकिस्तान पर लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के पनाह देने के आरोप लगते रहे है.
इसके बावजूद, पाकिस्तान भारत के खिलाफ हरकत करता रहता है. इसकी वजह है कि पाकिस्तान का अस्तित्व ही भारत विरोध पर टिका है. जिस दिन वह ऐसा करना छोड़ देगा, उसी दिन वहां सेना और सियासी दलों को रवैया बदल जाएगा. फिलहाल, वो ऐसा करने को तैयार नहीं. इसके बदले उन्हें नुकसान ही क्यों हो? पाकिस्तान इन प्रयासों का नतीजा यह निकला कि कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय समर्थन वह खो चुका है और आतंकवाद पर 'डबल गेम' की वजह से उसे डांट और अलगाव झेलना पड़ता है.
जानें वैश्विक संगठनों के घोषणा पत्र में क्या होता है?
वैश्विक संगठनों का घोषणा पत्र लिखित दस्तावेज होता है. यह हर साल अलग-अलग संगठनों के सम्मेलन के अंतिम दिन जारी होता है. इसे सदस्य देशों के बीच का सहमति पत्र माना जाता है. घोषणा पत्र में सभी सदस्य देशों के बीच सहमति वाले मुद्दों का उल्लेख होता है. कभी-कभी असहमति वाले विषयों को भी फुटनोट या अलग बयान के रूप में शामिल किया जाता है.
वैश्विक सस्थाओं के संकल्प पत्र में अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों पर जोर दिया जाता है. इसे आप एक साझा दृष्टिकोण भी मान सकते हैं. जैसे जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, आतंकवाद, व्यापार, तकनीकी विकास, आपदा प्रबंधन, आदि शामिल होते हैं. इसमें संगठन की भविष्य की प्राथमिकताएं और लक्ष्य भी बताए जाते हैं. कुल मिलाकर यह सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग का खाका या मसौदा होता है.
क्या है अहमियत?
अंतरराष्ट्रीय संगठनों के घोषणा पत्रों की अहमियत नीतिगत ज्यादा होता है. यह बताता है कि संगठन या देशों का समूह किस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है. यह पूरी दुनिया को राजनीतिक संदेश देता है कि शक्तिशाली देश किन मुद्दों पर एकमत हैं. कई बार घोषणापत्र में किए गए वादों के आधार पर सदस्य देशों पर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डिप्लोमैटिक दबाव भी बनाया जाता है.
क्या घोषणा पत्र पर अमल होता है?
यह सबसे बड़ा सवाल है, जिसका सही सही जवाब देना आसान नहीं है. घोषणा पत्र कानूनी रूप से बाध्यकारी (legally binding) नहीं होता. यह सदस्य देशों के बीच केवल राजनीतिक प्रतिबद्धता (political commitment) का प्रतीक है. इस पर अमल इस बात पर निर्भर करता है कि सदस्य देशों की राजनीतिक इच्छाशक्ति कितनी है? घोषणा पत्र में लिखी बातें कितनी व्यावहारिक और लागू करने योग्य हैं? क्या उसके लिए संस्थानिक ढांचा और संसाधन उपलब्ध हैं?
पेरिस जलवायु समझौते का जिक्र G20 और UN घोषणाओं में किया गया. बाद में उस पर औपचारिक संधि भी सदस्य देशों के बीच हुई. विकासशील देशों को कर्ज राहत देने की बातें बार-बार घोषणापत्र में आती हैं, लेकिन व्यवहार में कई बार अमल नहीं हो पाता. डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में जलवायु परिवर्तन संधि पर आगे बढ़ने से भी इनकार कर दिया. यहां तक उन्होंने इससे अमेरिका को डिसकनेक्ट भी कर दिया. इसी तरह उन्होंने कोविड-19 महामारी काल में विश्व स्वास्थ्य संगठन से अलग होने की घोषणा कर दी थी. इतना ही नहीं, डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका और ईरान के बीच हुए परमाणु समझौतों को भी अपने पहले कार्यकाल के दौरान अलग होने का एलान कर दिया था.
हाल ही में राजनाथ सिंह ने एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक में दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से 26 जून 2025 को क्यूंगदाओ (चीन) में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की रक्षा मंत्रियों की बैठक में इनकार किया था. इसका प्रमुख कारण था कि संयुक्त बयान में पहलगाम आतंकी हमला (22 अप्रैल 2025 को) का कोई उल्लेख नहीं था. जबकि बलूचिस्तान का जिक्र शामिल किया गया था, जिसे भारत ने पाकिस्तान के पक्ष में नैरेटिव सेट करने का प्रयास माना था.
भारत ने इस बयान को आतंकवाद पर अपने स्पष्ट रुख को प्रतिबिंबित नहीं करने वाला करार दिया. विदेश मंत्रालय (MEA) ने बताया कि भारत चाहता था कि आतंकवाद संबंधी चिंता स्पष्ट रूप से दस्तावेज में हो, लेकिन एक विशेष देश ने इसे मंजूर नहीं किया, जिससे जरूरी सहमति नहीं बन सकी और दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं हो सके.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी इस फैसले का समर्थन करते हुए स्पष्ट किया था कि SCO का मूल उद्देश्य ही आतंकवाद से लड़ना है. जब इसी विषय की बात शामिल नहीं हो, तो उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता. इसी ओआईसी देशों भी पाकिस्तान के पक्ष में और भारतीय हितों के खिलाफ प्रस्ताव पास करते रहते हे, जिसे मानने से भारत अस्वीकार करता आया है.