17 के बाद खतरा? भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले खालिदा जिया के बेटे तारिक रिटर्न्स- क्या बदलेंगे हालात
बांग्लादेश की पूर्व पीएम रहीं खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान की आज अपने वतन वापस लौटेंगे, लेकिन राजनीति में उनकी वापसी आसान नहीं मानी जा रही है. जानिए क्यों उन्हें भारत-विरोधी और पाकिस्तान-चीन समर्थक नेता माना जाता है. उन पर लगे आरोप क्या थे, कैसे उनका राजनीतिक अतीत भारत-बांग्लादेश रिश्तों को प्रभावित करता रहा है.;
बांग्लादेश की सियासत में एक बार फिर तारिक रहमान का नाम चर्चा में है. पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे और बीएनपी (BNP) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान लंबे समय से देश से बाहर हैं. 17 साल तक विदेश में रहने के बाद वह अपने देश लौटे हैं. सत्ता परिवर्तन की संभावनाओं के बीच माना जा रहा है कि उनकी बांग्लादेश वापसी और राजनीतिक पुनर्स्थापना की राह आसान नहीं होगी. इसकी बड़ी वजह उनकी भारत-विरोधी छवि, आतंकी संगठनों से जुड़े आरोप और वह दौर है. जब BNP शासन के दौरान भारत-बांग्लादेश संबंधों में भारी तनाव देखा गया था.
स्टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्सक्राइब करने के लिए क्लिक करें
58 वर्षीय रहमान पिछले 17 साल से लंदन में रहे हैं. माना जा रहा है कि अगर बीएनपी चुनाव जीतती है तो वह बांग्लादेश के प्रधानमंत्री बनेंगे. दरअसल, अवामी लीग पार्टी के चुनाव लड़ने पर रोक है. यही वजह है कि बीएनपी की जीत की अटकलें लगाई जा रही हैं. दूसरी ओर अंतरिम सरकार के कार्यवाहक अध्यक्ष मुहम्मद यूनुस ने कहा है कि चुनाव अगले साल फरवरी तक होंगे. बांग्लादेश में हो रहे इन सभी घटनाक्रमों पर भारत की भी पैनी नजर है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) ने 25 दिसंबर को सुबह 11:45 बजे ढाका में एक्सप्रेसवे और हजरत शाहजलाल इंटरनेशनल एयरपोर्ट से गुलशन तक के रास्तों पर एक बड़ी सभा करने का प्लान बनाया है. यह सभा एक्टिंग चेयरपर्सन तारिक रहमान की वापसी के मौके पर होगी.
आजादी के जंग के सबसे छोटे कैदी
20 नवंबर 1965 को जन्में तारिक रहमान कार्यकारी चेयरमैन से पहले पार्टी में सीनियर वाइस-चेयरमैन और सीनियर जॉइंट सेक्रेटरी से जैसे अहम पदों पर रहे. 1971 में जब बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्त करवाने के लिए जंग जारी थी तो तारिक रहमान, उनकी मां खालिदा जिया और उनके भाई को परिवार के अन्य सदस्यों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था. बीएनपी तारिक रहमान को बांग्लादेश की आजादी की जंग में सबसे कम उम्र का कैदी बताती है.
रहमान का रहा है आपराधिक इतिहास
तारिक रहमान को साल 2007 में सेना के समर्थन से चल रही अंतरिम सरकार के सत्ता में रहने के वक्त भ्रष्टाचार-विरोधी अभियान में गिफ्तार किया गया था. बीएनपी यह दावा करती है कि हिरासत में रखने के दौरान तारिक रहमान को प्रताड़ित किया गया और वह बीमार पड़ गए. साल 2008 में उन्हें बेल मिली और इलाज के लिए उन्हें लंदन जाने की इजाजत मिली थी. रहमान तबसे लंदन में ही थे और वहीं से बीएनपी की राजनीति में केंद्र भूमिका निभा रहे थे. अक्तूबर 2018 में साल 2004 के ग्रेनेड हमले से जुड़े केस में तारिक रहमान और 18 अन्य लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी.
भारत विरोधी क्यों?
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान लंबे समय से लंदन में निर्वासन जैसा जीवन जी रहे हैं. शेख हसीना सरकार के पतन के बाद भले ही BNP को नई ऊर्जा मिली हो, लेकिन तारिक रहमान की बांग्लादेश वापसी और सत्ता की राह आसान नहीं मानी जा रही. इसके पीछे सिर्फ कानूनी या सियासी अड़चनें नहीं, बल्कि उनका भारत-विरोधी चेहरा भी एक बड़ी वजह माना जाता है.
2001-06 का दौर वो समय है, जब बांग्लादेश में भारत-विरोध चरम पर था. 2001 से 2006 के बीच, जब BNP-जमात गठबंधन सत्ता में था, उस समय तारिक रहमान को सत्ता का 'अदृश्य केंद्र' माना जाता था. उसी समय पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादी संगठनों को बांग्लादेश में शरण मिलने के आरोप लगे थे. सीमा पार आतंकी नेटवर्क मजबूत हुए थे और भारत के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण थे. चटगांव के सीयूएफएल जेटी पर दस ट्रक हथियार मिलने के बाद भारत ने 2004 में इस मामले पर चिंता जताई थी. इसके पीछे भी तारिक रहमान का हाथ माना गया था.
भारत ने कहा था कि ये हथियार पूर्वोत्तर में सक्रिय अलगाववादी समूहों के लिए थे. भारत में यह धारणा बनी कि BNP शासन भारत की सुरक्षा चिंताओं की परवाह नहीं करती. भारत कई बार यह आरोप लगाता रहा है कि असम के ULFA जैसे संगठनों को बांग्लादेश में सुरक्षित ठिकाने मिले. हथियारों की तस्करी और ट्रेनिंग कैंप्स को राजनीतिक संरक्षण मिला. हालांकि, BNP ने इन आरोपों को नकारा, लेकिन तारिक रहमान का नाम पर्दे के पीछे के ताकतवर खिलाड़ी के रूप में उछलता रहा.
2004 का ग्रेनेड हमला
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना पर 2004 में हुए ग्रेनेड हमले ने तारिक रहमान की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया. अदालत ने उन्हें इस मामले में दोषी ठहराया. रहमान पर आतंकी नेटवर्क के संरक्षण के आरोप मजबूत हुए. यही वजह है कि भारत समेत कई देशों में उन्हें कट्टर राजनीति से जुड़ा नेता माना जाता है.
चीन-पाकिस्तान झुकाव, भारत से दूरी
तारिक रहमान को पाकिस्तान पाकिस्तान समर्थक और चीन के साथ रणनीतिक नजदीक का पैरोकार माना जाता है. उनके भाषणों और पार्टी लाइन में भारत पर दखलअंदाजी का आरोप रहा है. समान दूरी की नीति की बात अक्सर दिखती है, जो नई दिल्ली को असहज करती है.
बांग्लादेश में क्यों मुश्किल है उनकी वापसी?
भ्रष्टाचार और आतंकी मामलों में सजा. उनके पास सेना और प्रशासन का पूरा भरोसा नहीं. अच्छी नहीं है रहमान की अंतरराष्ट्रीय छवि. भारत की चिंताएं, जो क्षेत्रीय राजनीति में अहम हैं. यह भी माना जाता है कि बांग्लादेश की स्थिरता चाहने वाली शक्तियां तारिक रहमान के बजाय किसी सॉफ्ट फेस को आगे देखना चाहती हैं.
क्या बदल सकती है छवि?
बांग्लादेश के सियासी विश्लेषकों का मानना है कि अगर BNP को सत्ता में लौटना है, तो उसे भारत से रिश्तों पर नई भाषा और नीति लानी होगी. तारिक रहमान को खुद को कट्टर और टकराव वाली छवि से बाहर निकालना पड़ेगा, लेकिन अब तक उनके बयानों और राजनीतिक इतिहास ने यह राह आसान नहीं की है.
भारतीय अफसरों का कहना है कि शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद बांग्लादेश के साथ संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि स्थिति चाहे जो भी हो, ढाका के साथ बातचीत जारी रहनी चाहिए और दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाना होगा. हालांकि, बांग्लादेश में इस समय जो हालात हैं, उसे देखते हुए भारत के लिए बीएनपी के साथ बातचीत करना एक अच्छा विकल्प होगा.
इस सोच के तहत शेख हसीना के निष्कासन के बाद से बीएनपी नेता और भारतीय अधिकारियों के बीच अलग-अलग स्तरों पर बैठकें हुई हैं. पिछले सितंबर में बीएनपी महासचिव फखरुल इस्लाम आलमगीर और भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी. हालांकि, बीएनपी के भीतर कई लोगों ने शेख हसीना के सत्ता में रहते हुए भारत और बांग्लादेश के संबंधों को लेकर चिंताएं व्यक्त की थीं. हालांकि जो हालात हैं, उसमें भारत अब भी एक ज्यादा विश्वसनीय साझेदार है.