‘बिद्रोही कवि’ के साथ ‘बिप्लोबी नेता’! ढाका यूनिवर्सिटी के फैसले पर बवाल, काज़ी नज़रुल इस्लाम के बगल में उस्मान हादी की कब्र क्यों?

‘बिद्रोही कवि’ के साथ ‘बिप्लोबी नेता’? ढाका यूनिवर्सिटी के फैसले पर बवाल, काज़ी नज़रुल इस्लाम के बगल में उस्मान हादी की कब्र क्यों?;

( Image Source:  x.com/Top_Shadow21/shahinheartless )
Edited By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 20 Dec 2025 11:22 PM IST

Osman Hadi burial controversy, Kazi Nazrul Islam grave, Bangladesh Violence news: बांग्लादेश की राजनीति और समाज इन दिनों शरीफ उस्मान हादी की हत्या और उसके अंतिम संस्कार को लेकर गहरे उथल-पुथल से गुजर रहे हैं. करीब 50 साल बाद ऐसा दृश्य देखने को मिला, जब ढाका यूनिवर्सिटी मस्जिद परिसर में, जहां 1976 में बांग्लादेश के राष्ट्रीय कवि काज़ी नज़रुल इस्लाम को दफनाया गया था, वहीं अब इंक़िलाब मंच के नेता शरीफ उस्मान हादी को भी सुपुर्द-ए-ख़ाक किया गया. शनिवार को हादी के जनाज़े के दौरान ढाका मानो जनसैलाब में बदल गया. लाखों लोग सड़कों पर उतर आए, आसपास के शहरों और कस्बों से हजारों लोग राजधानी पहुंचे और पूरा ढाका ठहर-सा गया.

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हादी को ‘बिद्रोही कवि’ काजी नज़रुल इस्लाम के बगल में दफनाए जाने को लेकर बांग्लादेश में भावनात्मक प्रतिक्रियाओं के साथ-साथ तीखी बहस भी छिड़ गई है. हादी के समर्थक उन्हें आधुनिक दौर का ‘बिप्लोबी’ बता रहे हैं, जबकि आलोचक इसे राजनीतिक एजेंडे से जुड़ा फैसला मान रहे हैं.

रैलियों और भाषणों में नज़रुल की मशहूर कविता ‘बिद्रोही’ की पंक्तियां पढ़ता था हादी

हादी अपने भाषणों और रैलियों में अक्सर नज़रुल की मशहूर कविता ‘बिद्रोही’ की पंक्तियां पढ़ते थे. सोशल मीडिया पर वायरल रील्स और शॉर्ट्स में भी वे नज़रुल की कविताओं को अपनी ‘राजनीतिक हथियार’ की तरह इस्तेमाल करते नजर आते थे. इसी वजह से उनके समर्थक उन्हें नज़रुल की विचारधारा का उत्तराधिकारी बताने लगे हैं.

ढाका हाई अलर्ट पर, जनाज़े ने शहर को थाम दिया

32 वर्षीय शरीफ उस्मान हादी एंटी-शेख हसीना आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक थे. वह ‘इंक़िलाब मंच’ के प्रवक्ता थे, जो जुलाई-अगस्त 2024 के आंदोलन के दौरान उभरा और बाद में शेख हसीना सरकार के पतन का प्रतीक बन गया. हादी खुलकर अवामी लीग और भारत के प्रभाव के खिलाफ बयान देते थे. वे फरवरी 2026 में होने वाले आम चुनाव में ढाका-8 सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने की तैयारी में थे.

12 दिसंबर को ढाका में हादी को मारी गई गोली

12 दिसंबर को ढाका में बैटरी-चालित रिक्शा से यात्रा के दौरान अज्ञात हमलावरों ने उन्हें गोली मार दी. गंभीर रूप से घायल हादी को इलाज के लिए सिंगापुर ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई. उनकी हत्या चुनाव आयोग द्वारा आम चुनाव की तारीख घोषित किए जाने से ठीक एक दिन पहले हुई, जिसने पूरे घटनाक्रम को और संवेदनशील बना दिया.

हादी की मौत के बाद ढाका की सड़कों पर  भड़क उठी हिंसा

हादी की मौत के बाद ढाका की सड़कों पर हिंसा भड़क उठी. भीड़ में इस्लामिस्ट तत्वों की घुसपैठ के आरोप लगे. सांस्कृतिक संस्थानों में तोड़फोड़ हुई, शेख मुजीबुर रहमान के घर के अवशेषों पर फिर हमला किया गया और भारतीय दूतावासों को भी निशाना बनाया गया. मीडिया संस्थानों, प्रोथोम आलो और द डेली स्टार, के दफ्तरों तक को आगजनी का सामना करना पड़ा.

स्थिति को देखते हुए सुरक्षा एजेंसियों को हाई अलर्ट पर रखा गया. पुलिस, रैपिड एक्शन बटालियन (RAB), अंसार और सेना की टुकड़ियां जनाज़े और दफन स्थल के आसपास तैनात की गईं. शाहबाग चौराहे पर जुटी भीड़ ने हादी के हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग की और 'दिल्ली ना ढाका, ढाका-ढाका' जैसे नारे लगाए, जो हाल के दिनों में बांग्लादेश में भारत विरोधी प्रदर्शनों का मुख्य नारा बन चुका है. इंक़िलाब मंच ने शाहबाग चौराहे का नाम ‘शहीद हादी’ रखने की मांग भी की.

काज़ी नज़रुल इस्लाम के बगल में दफन: फैसला और विवाद

शुक्रवार देर रात ढाका यूनिवर्सिटी सिंडिकेट की आपात ऑनलाइन बैठक में यह निर्णय लिया गया कि हादी को काज़ी नज़रुल इस्लाम की कब्र के बगल में दफनाया जाएगा. यूनिवर्सिटी प्रशासन के अनुसार, यह फैसला कैबिनेट डिविजन और ढाका यूनिवर्सिटी सेंट्रल स्टूडेंट्स यूनियन (DUCSU) की ओर से आए आवेदनों के बाद लिया गया. गौरतलब है कि DUCSU इस समय जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा इस्लामी छात्र शिबिर के नेतृत्व में है.

हालांकि, इस निर्णय पर देशभर में बहस छिड़ गई है. अवामी लीग समर्थकों और सेक्युलर तबकों का कहना है कि काज़ी नज़रुल इस्लाम सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक थे, जबकि हादी पर कट्टर और पहचान आधारित राजनीति को बढ़ावा देने के आरोप हैं. वहीं, हादी के समर्थक उन्हें ‘आधुनिक दौर का शहीद’ और ‘एंटी-हेजेमनी का प्रतीक’ बता रहे हैं.

कौन थे शरीफ उस्मान हादी?

1993 में झालोकाठी जिले में जन्मे हादी की राजनीतिक यात्रा ढाका यूनिवर्सिटी से शुरू हुई. छात्र राजनीति और आंदोलनकारी मंचों पर उनकी तेजतर्रार भाषण शैली ने उन्हें जल्द ही लोकप्रिय बना दिया. जुलाई-अगस्त 2024 के विरोध प्रदर्शनों के दौरान वे मंच से नज़रुल की ‘बिद्रोही’ कविता पढ़ते हुए भीड़ में जोश भरते थे.

आज वही ढाका यूनिवर्सिटी परिसर, जहां कभी काज़ी नज़रुल इस्लाम को दफनाया गया था, हादी की अंतिम विश्राम स्थली बन गया है. एक ओर उनके समर्थक उन्हें राष्ट्रीय कवि के समान दर्जा देने की कोशिश कर रहे हैं, तो दूसरी ओर समाज का बड़ा वर्ग सवाल उठा रहा है कि क्या यह तुलना और यह स्थान वाकई उचित है. हादी की कब्र अब सिर्फ एक अंतिम संस्कार स्थल नहीं, बल्कि बांग्लादेश की बदलती राजनीति, पहचान की लड़ाई और भविष्य की दिशा पर चल रही बहस का प्रतीक बन चुकी है.

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