नेपाल की नई कुमारी देवी: 2 साल की 'आर्यतारा' को मिला जीवित देवी का दर्जा, कैसे होता है चयन? जानें इतिहास

नेपाल में दो साल की बच्ची को कुमारी देवी घोषित करने की सदियों पुरानी परंपरा है. उसी परंपरा के तहत 'आर्यतारा' को नई जीवित देवी घोषित किया गया है. इस परंपरा में छोटी बच्चियों को देवी ‘तलेजू’ का अवतार मानकर पूजा जाता है. आइए जानते हैं कुमारी परंपरा का इतिहास, इसका धार्मिक महत्व और इसके पीछे की मान्यताएं.;

( Image Source:  @Nepali_Comrade / @yajnshri )
By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 1 Oct 2025 6:53 PM IST

नेपाल की सदियों पुरानी परंपरा के मुताबिक जिंदा देवी के रूप में दो साल की एक बच्ची को चुना गया है. बच्ची को 30 सितंबर को देश के सबसे लंबे और महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार के दौरान काठमांडू से उनके घर से मंदिर ले जाया गया. नई 'कुंवारी या कुमारी देवी' चुनी गई बच्ची का नाम 'आर्यतारा शाक्य' है. आर्यतारा की 2 साल और 8 महीने की है. वह उस वर्तमान देवी का स्थान लेंगी, जिन्हें परंपरा के अनुसार यौवन प्राप्त करने के बाद आम मनुष्य मान लिया गया है. अब आर्यतारा अगले कुछ वर्षों तक 'जीवित देवी' के रूप में पूजी जाएंगी और बड़े त्योहारों के दौरान सार्वजनिक रूप से दर्शन देंगी.

कुमारी देवी आमतौर पर 2 से 5 साल की उम्र की बच्चियों में से चुनी जाती हैं और उन्हें देवी की तरह पूजा जाता है. उनका घर मंदिर जैसा होता है और वे केवल विशेष अवसरों जैसे इंद्र यात्रा पर ही सार्वजनिक रूप से बाहर आती हैं.

क्या है कुमारी परंपरा का इतिहास?

कुमारी परंपरा की शुरुआत लगभग 17वीं सदी में मानी जाती है. इसे काठमांडू घाटी के मल्ल राजाओं ने शुरू किया था. मान्यता है कि राजा जय प्रकाश मल्ल देवी तलेजू के भक्त थे. एक बार देवी ने उन्हें स्वप्न में आदेश दिया कि वे एक कन्या को देवी का प्रतीक मानकर पूजा करें. तभी से कुमारी परंपरा शुरू हुई.

यह परंपरा आज भी नेपाल के तीन प्रमुख शहरों (काठमांडू, भक्तपुर और पाटन)  में जीवित है. इनमें काठमांडू की कुमारी को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. देवी चुनी जाने वाली लड़की को हिंदू और बौद्ध धर्म, दोनों के मानने वाले पूजते हैं.

चयन की प्रक्रिया

  • किसी भी बच्ची को कुमारी देवी बनने के लिए कई पारंपरिक मानकों पर परखा जाता है, जिनमें कई अहम पहलू शामिल होते हैं.
  • बच्ची बौद्ध शाक्य या बज्राचार्य समुदाय से हो.
  • 32 शारीरिक गुणों का होना (जैसे आवाज, आंखें, चाल आदि).
  • साहस और निडरता की परीक्षा.
  • विशेष धार्मिक अनुष्ठानों से गुजरना.
  • चयन के बाद बच्ची को कुमारी घर (कुमारी निवास) ले जाया जाता है और वह देवी की तरह पूजा जाती है.

कुमारी देवी की भूमिका और सम्मान

कुमारी देवी को नेपाल की राजकीय देवी माना जाता है. राजा से लेकर आम नागरिक तक, सभी उनके आशीर्वाद लेते हैं. नेपाल के बड़े त्योहारों, खासकर इंद्र जात्रा और दशैं, में उनकी विशेष भूमिका होती है. जब कुमारी का पहला मासिक धर्म आता है, तो उसे देवी का दर्जा छोड़ना पड़ता है और एक नई कुमारी का चयन किया जाता है.

परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन

हाल के वर्षों में कुमारी परंपरा को लेकर बाल अधिकारों और शिक्षा के मुद्दों पर बहस भी हुई है. कई संगठनों का मानना है कि कुमारी बच्चियों को भी आधुनिक शिक्षा और सामाजिक जीवन का अधिकार मिलना चाहिए. अब धीरे-धीरे यह परंपरा आधुनिक जरूरतों के अनुरूप ढल रही है, लेकिन इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व आज भी उतना ही गहरा है.

कुमारी देवी का चयन नेवार समुदाय के शाक्य कुलों से होता है जो काठमांडू घाटी के मूल निवासी हैं. हिंदू और बौद्ध दोनों कुमारी देवी की पूजा करते हैं. जीवित देवी को दो से चार साल की उम्र के बीच की बच्चियों के बीच से किया जाता है. देवी बनने के लिए बच्ची की त्वचा, बाल, आंखें और दांत एकदम साफ और बेदाग होने चाहिए. इसके चयन में एक खास बात ये है कि बच्ची को अंधेरे से डरना नहीं लगना चाहिए. अंधेरे में डर जाने वाली बच्ची देवी नहीं बन सकती है.

'देवी' राष्ट्रपति सहित अन्य भक्तों को कल देंगी आशीष

कुमारी देवी को धार्मिक उत्सवों के दौरान रथ पर घुमाया जाता है, जिसे भक्त खींचते हैं. देवी चुनी गई बच्ची हमेशा लाल वस्त्र पहनती हैं, बालों में चोटी बांधती हैं और उसके माथे पर 'तीसरी आंख' अंकित होती है. मंगलवार को आर्यतारा को देवी चुने जाने के बाद उन्हें मंदिर के महल में प्रवेश कराया गया. जवान होने तक वह इसी में रहेंगी. नई कुमारी बृहस्पतिवार को राष्ट्रपति सहित देश भर से आए भक्तों को आशीर्वाद देंगी.

आर्यतारा तृष्णा शाक्य की जगह देवी बनी हैं. तृष्णा अब 11 वर्ष की हो चुकी हैं. वह 2017 में वह जीवित देवी बनी थीं. करीब आठ साल तक वह इस पद पर रहीं. नेपाल की कुमारी देवियां एकांत जीवन जीती हैं. उनके चुनिंदा सहपाठी होते हैं और साल में कुछ त्योहारों पर ही वह बाहर जा सकती हैं.

देवी चुने जाने वाली बच्चियों को धार्मिक तौर पर काफी महत्व दिया जाता है. हालांकि, उनको अपने जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. एक लंबे समय तक एकांत में रहने के चलते उनको वापस सामान्य जीवन में ढलने और नियमित स्कूल जाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है.

नेपाल में ऐसी बातें प्रचलित हैं कि जो पुरुष पूर्व कुमारी देवियों से विवाह करते हैं, उनकी मृत्यु कम उम्र में हो जाती है. ऐसे में इन लड़कियों की शादी में काफी दिक्कत आती है. नेपाल की सरकार पूर्व कुमारी देवियों को गुजर बसर के लिए मासिक पेंशन देती है.

12 से 15 साल में एक बार कुमारी देवी चुनने की प्रथा

नेपाल में हर बारह से पंद्रह साल में एक नई कुमारी देवी चुनी जाती है, जिसे देवी का साक्षात रूप माना जाता है. इस बार काठमांडू में दो साल की आर्यतारा को कुमारी चुना गया है. यह परंपरा न केवल नेपाल की संस्कृति का अहम हिस्सा है, बल्कि इसके पीछे एक गहरी ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यता भी जुड़ी है. सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी पूरी श्रद्धा और गरिमा के साथ निभाई जाती है.

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