नेपाल का बवाल और गोरखा राजा की कहानी, कैसे पृथ्वी नारायण शाह ने बनाया आज का नेपाल

नेपाल की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल में है, और इसी बवाल के बीच इतिहास की गूंज सुनाई देती है. 18वीं सदी में गोरखा राजा पृथ्वी नारायण शाह ने छोटे-छोटे बिखरे राज्यों को एकजुट कर आधुनिक नेपाल की नींव रखी. काठमांडू घाटी पर कब्ज़ा, अंग्रेजों से दूरी और "नेपाल दो पाटों की बीच की याल है" जैसी दूरदर्शिता ने उन्हें जननायक बनाया, जिनकी विरासत आज भी प्रासंगिक है.;

नेपाल की राजनीति आज फिर उबाल पर है. काठमांडू की गलियों में धधकते आंदोलन, गिरे हुए सरकारें और उठते नए चेहरे…. Gen-Z की मांग है कि भ्रष्ट नेताओं की राजनीति खत्म हो और देश को एक ईमानदार, निष्पक्ष हाथ मिले. पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का नाम सामने आना इस बात का संकेत है कि नेपाल की जनता अब बदलाव चाहती है. लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब नेपाल इतनी बड़ी राजनीतिक हलचल से गुज़र रहा है. सदियों पहले भी जब देश बिखरा हुआ था, अलग-अलग रियासतों में बंटा हुआ था, तब एक योद्धा उभरा जिसने पूरे नेपाल को एक सूत्र में बांध दिया. वह योद्धा थे गोरखा राजा पृथ्वी नारायण शाह.

उनकी कहानी सिर्फ नेपाल के इतिहास का अध्याय नहीं है, बल्कि एक ऐसा किस्सा है जिसने हिमालय की तलहटी में बसे इस छोटे से देश की पहचान हमेशा के लिए बदल दी. आइए बवाल की इस पृष्ठभूमि में चलते हैं 18वीं सदी की ओर, और जानते हैं कैसे पृथ्वी नारायण शाह ने छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर "आधुनिक नेपाल" की नींव रखी.

कौन थे पृथ्वी नारायण शाह?

पृथ्वी नारायण शाह का जन्म 11 जनवरी 1723 को गोरखा में हुआ था. उनके पिता राजा नरभूपाल शाह थे और माता कौसलावती देवी. गोरखा उस समय एक छोटा-सा राज्य था, लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति बेहद खास थी. एक तरफ काठमांडू घाटी की समृद्धि और दूसरी तरफ हिमालय की ऊंचाइयां – गोरखा की सीमाओं से होकर व्यापार और राजनीति दोनों की राहें गुजरती थीं. बचपन से ही पृथ्वी नारायण शाह ने युद्धकला, राजनीति और रणनीति की शिक्षा ली. कहते हैं कि वे बचपन से ही एक अलग ही सोच रखते थे – उनका सपना था कि बिखरे हुए नेपाल को एक झंडे के नीचे लाया जाए.

नेपाल तब कैसा था?

आज का नेपाल एकजुट देश है, लेकिन 18वीं सदी में हालात बिल्कुल अलग थे. उस समय नेपाल दर्जनों छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था, जिन्हें बाईसी (22 रियासतें) और चौबिसी (24 रियासतें) कहा जाता था. इन रियासतों में आपसी लड़ाई-झगड़े चलते रहते थे. काठमांडू घाटी-जिसमें तीन बड़े नगर-राज्य (काठमांडू, पाटन और भक्तपुर) आते थे – समृद्ध और व्यापारिक केंद्र माना जाता था. तिब्बत और भारत के बीच का व्यापार यहीं से गुजरता था. गोरखा एक छोटा-सा राज्य होने के बावजूद अपने साहसी गोरखा सैनिकों के लिए जाना जाता था.

सत्ता संभालते ही युद्ध का बिगुल

पृथ्वी नारायण शाह ने 1743 ई. में अपने पिता की मृत्यु के बाद गोरखा की गद्दी संभाली. लेकिन जैसे ही वे राजा बने, उनका ध्यान गोरखा की सीमाओं से बाहर की ओर गया. उन्हें समझ में आ गया था कि अगर नेपाल को विदेशी ताकतों-खासकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी – से बचाना है तो पहले देश को अंदर से मजबूत बनाना होगा.

उन्होंने तय किया कि छोटे-छोटे राज्यों को एक-एक कर जीतकर नेपाल को एकजुट किया जाएगा. इसके लिए उन्होंने काठमांडू घाटी पर नज़र गड़ा दी, क्योंकि घाटी पर कब्ज़ा करने का मतलब था नेपाल का आर्थिक और राजनीतिक दिल अपने हाथों में लेना.

काठमांडू घाटी की घेराबंदी- सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक

1744 में पृथ्वी नारायण शाह ने पहली बड़ी जीत हासिल की जब उन्होंने नुवाकोट किले पर कब्ज़ा किया. यह किला काठमांडू घाटी के दरवाजे जैसा था. इस जीत से उनका आत्मविश्वास और बढ़ा. इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे काठमांडू, पाटन और भक्तपुर को घेरना शुरू किया. काठमांडू घाटी के शासक शुरू में उन्हें हल्के में लेते रहे, लेकिन गोरखा सैनिकों की अनुशासन और बहादुरी ने उन्हें हैरान कर दिया. 1769 में लंबी लड़ाई और रणनीतिक घेराबंदी के बाद पृथ्वी नारायण शाह ने काठमांडू घाटी पर कब्जा कर लिया. यही वह क्षण था जब नेपाल पहली बार एकीकृत हुआ और आधुनिक नेपाल की नींव रखी गई.

'नेपाल दो पाटों की बीच की याल है'

पृथ्वी नारायण शाह का सबसे मशहूर कथन है कि “नेपाल दो पाटों की बीच की याल है”. इसका मतलब यह था कि नेपाल भारत और चीन जैसे दो बड़े देशों के बीच स्थित है, और अगर नेपाल को अपनी संप्रभुता बचानी है तो उसे सावधानी और रणनीति से चलना होगा. यह सोच आज भी नेपाल की विदेश नीति की रीढ़ मानी जाती है. भारत और चीन के बीच नेपाल का संतुलन साधना, पृथ्वी नारायण शाह की दूरदर्शिता का ही नतीजा है.

अंग्रेजों से दूरी बनाए रखना

जब भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी जड़ें जमा रही थी, उस समय पृथ्वी नारायण शाह ने साफ आदेश दिया कि अंग्रेजों से दूर रहना ही नेपाल की सुरक्षा की गारंटी है. उन्होंने ब्रिटिश व्यापारियों को नेपाल में प्रवेश की अनुमति नहीं दी. यह कदम उनके समय में बहुत ही दूरदर्शी साबित हुआ, क्योंकि इससे नेपाल लंबे समय तक औपनिवेशिक दखल से बचा रहा.

जनता के राजा- समाज सुधारक भी

पृथ्वी नारायण शाह सिर्फ योद्धा ही नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी शासक भी थे. उन्होंने कई सामाजिक और आर्थिक सुधार किए. उन्होंने स्थानीय व्यापार को बढ़ावा दिया. विदेशी प्रभाव को कम किया. किसानों और सैनिकों के जीवनस्तर को बेहतर बनाने की कोशिश की. धार्मिक सहिष्णुता का संदेश दिया और नेपाल को “चार जात, छत्तीस वर्ण को फूलबारी” (चार जातियों और 36 वर्णों का बगीचा) बताया. यह विचार नेपाल की सामाजिक संरचना में गहराई से बैठ गया.

मृत्यु और विरासत

पृथ्वी नारायण शाह का निधन 11 जनवरी 1775 को हुआ. वे ज्यादा समय तक शासन नहीं कर पाए, लेकिन जो नींव उन्होंने रखी, उसी पर नेपाल का आधुनिक इतिहास खड़ा है. उनके बाद उनके वंशजों ने नेपाल की सत्ता संभाली और गोरखा साम्राज्य का विस्तार किया.

क्यों हैं आज भी प्रासंगिक?

आज जब नेपाल फिर से राजनीतिक संकट से गुजर रहा है, भ्रष्टाचार और अस्थिरता से जूझ रहा है, तब जनता बार-बार पृथ्वी नारायण शाह की ओर देखती है. वह शख्स जिसने बिखरे हुए नेपाल को एक झंडे के नीचे लाकर दुनिया के सामने पेश किया. उनकी रणनीति, उनकी दूरदर्शिता और उनकी निडरता – यह सब आज भी नेपाली युवाओं को प्रेरित करती है.

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