कौन हैं मणिकर्णिका दत्ता, जिन्हें ब्रिटेन से करना पड़ रहा निर्वासन का सामना? वजह जान चौंक जाएंगे आप

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा और प्रतिष्ठित इतिहासकार मणिकार्णिका दत्ता को ब्रिटेन से निर्वासन का सामना करना पड़ रहा है. यूके गृह कार्यालय ने उन्हें 'इंडेफिनिट लीव टू रिमेन' (ILR) देने से इनकार कर दिया है. गृह कार्यालय के नियमों के अनुसार, ILR आवेदक 10 साल की अवधि में अधिकतम 548 दिन यूके से बाहर बिता सकते हैं, लेकिन दत्ता ने यह सीमा 143 दिनों से पार कर ली. मणिकार्णिका वर्तमान में यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन में सहायक प्रोफेसर हैं.;

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By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 17 March 2025 12:09 AM IST

Manikarnika Dutta Deportation: ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा और प्रसिद्ध इतिहासकार मणिकार्णिका दत्ता को ब्रिटेन से निर्वासन का सामना करना पड़ रहा है. इसका कारण यह है कि यूके गृह कार्यालय ने उन्हें 'इंडेफिनिट लीव टू रिमेन' (ILR) देने से इनकार कर दिया है. मणिकार्णिका ने 2012 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अपनी मास्टर डिग्री शुरू की थी और बाद में वहीं से डॉक्टरेट भी किया. वर्तमान में, वह यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं.

बता दें कि मणिकर्णिका का शोध भारत से जुड़ा हुआ है, जिसके लिए उन्हें बार-बार भारत की यात्रा करनी पड़ी, लेकिन ब्रिटिश आव्रजन नियमों के अनुसार, ILR के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति को पिछले 10 वर्षों में अधिकतम 548 दिन ही ब्रिटेन से बाहर रहने की अनुमति होती है. दत्ता ने यह सीमा 143 दिनों से पार कर दी, जिस कारण उनका आवेदन अस्वीकार कर दिया गया.

गृह कार्यालय ने अपनाया सख्त रुख

ब्रिटेन के गृह कार्यालय ने यह नियम लागू करते हुए मणिकर्णिका दत्ता के आवेदन को खारिज कर दिया, जबकि उनके पति डॉ. सौविक नाहा, जो यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो में वरिष्ठ व्याख्याता हैं, को ILR प्रदान कर दिया गया. मणिकर्णिका ने जब यह निर्णय सुना तो वह स्तब्ध रह गईं. उन्होंने कहा, "मैंने अपना पूरा वयस्क जीवन ब्रिटेन में बिताया है, मुझे कभी नहीं लगा था कि मेरे साथ ऐसा होगा."

मणिकर्णिका ने फैसले को दी चुनौती

मणिकर्णिका के वकील नागा कंदैया ने इस फैसले को कानूनी रूप से चुनौती दी है. उन्होंने तर्क दिया कि उनकी यात्राएं व्यक्तिगत नहीं, बल्कि अनुसंधान कार्य के लिए थीं. यह मामला अकादमिक समुदाय के लिए चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं को ब्रिटेन में शोध करने में दिक्कतें आ सकती हैं.

अब क्या होगा आगे?

फिलहाल, ब्रिटेन का गृह कार्यालय उनके मामले की दोबारा समीक्षा करने पर सहमत हुआ है, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि मणिकार्णिका दत्ता ब्रिटेन में अपना करियर जारी रख पाएंगी या उन्हें एक दशक से अधिक समय तक बसे इस देश को छोड़ना पड़ेगा.

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