मदद कर सकता हूं, तो करूंगा... भारत-पाकिस्तान के बीच हुई खाई को पाटना चाहते हैं ट्रंप! क्या ये है असली समाधान?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि वह दोनों देशों के साथ मिलकर तनाव कम करने के लिए हर संभव मदद करेंगे. ट्रंप ने इसे 'बहुत भयानक' बताया और उम्मीद जताई कि यह संघर्ष जल्दी समाप्त हो. उन्होंने दोनों देशों के साथ अच्छे संबंधों की बात भी की.;

Edited By :  नवनीत कुमार
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भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के बीच अमेरिका ने खुद को एक संभावित मध्यस्थ के रूप में फिर से प्रस्तुत किया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने बयान में इस संघर्ष को 'बहुत भयानक' करार देते हुए भारत-पाक सीमा पर शांति बहाल करने की इच्छा जताई. हालांकि उनकी टिप्पणी संवेदनशीलता के साथ आई, लेकिन इसमें कूटनीतिक संतुलन की झलक भी दिखाई दी, जहां उन्होंने दोनों देशों के साथ अच्छे रिश्तों की बात करते हुए खुद को समाधान का साझेदार बताया.

ट्रंप का यह बयान ऐसे समय में आया जब भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और सीमा पार स्थित नौ आतंकी ठिकानों को ऑपरेशन सिंदूर के तहत निशाना बनाया. यह हमला केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि भारत की नई रणनीतिक सोच का संकेत था. सीमापार कार्रवाई के साथ जवाब देने की खुली नीति. ट्रंप के अनुसार, दोनों पक्षों ने 'जैसे को तैसा' किया है, इसलिए अब उन्हें रुक जाना चाहिए. यह वक्तव्य भारत की जवाबी कार्रवाई की अप्रत्यक्ष स्वीकृति जैसा प्रतीत होता है.

अमेरिकी विदेश मंत्री ने क्या कहा?

इस पूरे घटनाक्रम के बीच अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की प्रतिक्रिया भी अहम रही, जिन्होंने ट्रंप के बयान का समर्थन किया और भारत-पाकिस्तान के बीच संवाद की निरंतरता की उम्मीद जताई. हालांकि, यह बयान वैश्विक समुदाय के लिए अमेरिका की प्राथमिकता को भी दर्शाता है. अमेरिका की यह भूमिका न केवल दक्षिण एशिया में उसकी रणनीतिक पकड़ को बनाए रखने की कोशिश है, बल्कि यह चीन के बढ़ते प्रभाव के विरुद्ध भी एक सामरिक कदम हो सकता है.

दशकों पुराना है संघर्ष

ट्रंप ने इस संघर्ष को दशकों पुराना बताया और कहा कि यह एक ऐतिहासिक टकराव है, जिसे अब विराम मिलना चाहिए. उनके अनुसार, अमेरिका की भूमिका तभी निर्णायक हो सकती है जब दोनों पक्ष उसकी पहल को स्वीकारें. उन्होंने न तो पाकिस्तान की भूमिका की निंदा की और न ही भारत के हमलों को खुलकर समर्थन दिया, बल्कि कूटनीतिक 'तटस्थता' का परिचय देते हुए खुद को शांति के पक्षधर के रूप में पेश किया.

एक समान देखता है अमेरिका

अमेरिका की यह प्रतिक्रियात्मक और सीमित मध्यस्थता की पेशकश, इस ओर संकेत करती है कि वह भारत-पाक तनाव को वैश्विक मंच पर एक संतुलित दृष्टिकोण से देखना चाहता है. हालांकि सवाल यह भी उठता है कि क्या ट्रंप की यह ‘मदद की पेशकश’ वास्तव में व्यावहारिक है या केवल राजनीतिक भाषा में कही गई एक पारंपरिक कूटनीतिक लाइन? खासकर तब, जब भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि वह अपनी सुरक्षा नीति में बाहरी हस्तक्षेप को जगह नहीं देता.

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