चीन की आजादी में क्या था अमेरिका का रोल? Donald Trump के दावे की क्या है सच्चाई?

चीन का विक्ट्री डे सिर्फ जापान पर जीत का दिन नहीं है, बल्कि उस संघर्ष की याद है जिसमें लाखों चीनी नागरिक और सैनिक मारे गए. साथ ही यह वह दिन भी है जब अमेरिकी सैनिकों के बलिदान को भी याद किया जाना चाहिए. ऐसा हम नहीं बल्कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कह रहे हैं.;

( Image Source:  x-@realDonaldTrump )
Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 3 Sept 2025 1:46 PM IST

3 सितंबर चीन में यह तारीख सिर्फ एक कैलेंडर का दिन नहीं है, बल्कि गौरव और संघर्ष की याद है. हर साल इस दिन चीन अपना विक्ट्री डे मनाता है. 2 सितंबर 1945 को जापान ने आधिकारिक रूप से आत्मसमर्पण किया और अगले ही दिन चीन ने इसे अपने विजय दिवस के रूप में घोषित कर दिया. लेकिन 2025 में यह दिन तब और चर्चा में आ गया जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रूथ पर एक पोस्ट लिखते हुए कहा 'चीन की विजय में अमेरिकियों का भी खून बहा था.'

उन्होंने लिखा कि उम्मीद है 'राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन की आज़ादी में अमेरिकियों के खून का भी जिक्र करेंगे. उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि 'जब आप अमेरिका के खिलाफ साजिश रच रहे हों, तो कृपया पुतिन और किम जोंग उन को मेरा सम्मान पहुंचा देना. यह बयान राजनीतिक व्यंग्य तो है, लेकिन इसमें छुपा तथ्य यह भी है कि अमेरिका ने वास्तव में चीन के लिए बहुत कुछ खोया था. ट्रंप की यह टिप्पणी न केवल वर्तमान राजनीति की झलक देती है, बल्कि इतिहास के पन्नों को भी पलट देती है. यह हमें उस दौर में ले जाती है, जब चीन जापानी आक्रामकता से जूझ रहा था और अमेरिका उसके लिए आसमान से लेकर धरती तक लड़ रहा था.

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जापानी आक्रामकता और चीन का संघर्ष

कहानी की शुरुआत होती 1937 के मार्को पोलो ब्रिज हादसे से होती है, जिसने चीन-जापान युद्ध की चिंगारी को भड़का दिया. जापानी साम्राज्यवाद अपने चरम पर था और चीन उसकी सीधी चोट झेल रहा था. गांव-शहर जलाए गए, नागरिकों का नरसंहार हुआ और लाखों लोग विस्थापित हो गए. सबसे भयावह चेहरा दुनिया ने नानकिंग नरसंहार (1937) में देखा, जब जापानी सैनिकों ने हजारों महिलाओं का बलात्कार किया और लाखों चीनी नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया. चीन के लिए यह युद्ध अस्तित्व की लड़ाई बन चुका था.

पर्ल हार्बर के बाद अमेरिका की एंट्री

शुरुआत में अमेरिका इस संघर्ष को सिर्फ दूर से देख रहा था, लेकिन दिसंबर 1941 की एक सुबह पर्ल हार्बर पर जापानी हमला सबकुछ बदल गया. इस हमले के बाद अमेरिका ने औपचारिक रूप से द्वितीय विश्व युद्ध में कदम रखा. उस वक्त तक चीन पहले ही अमेरिका का सहयोगी (Allied Power) बन चुका था. अब स्थिति यह थी कि अमेरिका सिर्फ सहानुभूति जताने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि हथियारों की आपूर्ति, सैनिकों की मौजूदगी और ठोस युद्ध रणनीतियों के साथ सीधे मैदान में उतर आया.

जब अमेरिका ने भेजे फ्लाइंग टाइगर्स

1941 में अमेरिका ने गुप्त रूप से अपने पायलटों का एक ग्रुप चीन भेजा. इन्हें फ्लाइंग टाइगर्स (Flying Tigers) का नाम मिला. इन अमेरिकी पायलटों ने चीनी आसमान में जापानी विमानों से जमकर टक्कर ली. उनके हवाई जहाजों पर शार्क के दांत बने होते थे, जो दुश्मन के लिए खौफ का प्रतीक थे. कई अमेरिकी पायलट इस मिशन में मारे गए, कई घायल हुए, लेकिन आज भी चीन में उन्हें नायक की तरह याद किया जाता है.

मौत की राह : बर्मा रोड और हिमालयी एयरलिफ्ट

जापान ने जब चीन की समुद्री आपूर्ति लाइन काट दी तो चीन लगभग घिर चुका था. लेकिन अमेरिका ने हार नहीं मानी. उसने चीन तक पहुंचने के लिए बर्मा रोड बनाई और जब वह रास्ता भी अवरुद्ध हुआ, तो अमेरिकी पायलटों ने हिमालय के ऊपर से एयरलिफ्ट मिशन शुरू किया. इसे सैनिक भाषा में “The Hump” कहा जाता था . यानी हिमालय की खतरनाक चोटियों के ऊपर उड़ान. बर्फ़ीली आंधियां, हिमालय की खतरनाक चोटियां और लगातार बदलता मौसम,हर उड़ान मौत के मुंह में जाने जैसी थी. इन खतरनाक हालात में दर्जनों अमेरिकी जहाज़ आसमान से गिरे और अनगिनत सैनिकों ने जान गंवाई. फिर भी यह जोखिम उठाया गया ताकि चीन तक जीवनरक्षक दवाइयां, युद्ध के हथियार और खाना पहुंच सके. यही मिशन आज भी साहस, मित्रता और बलिदान का सबसे जीवंत प्रतीक माना जाता है.

चीन-बर्मा-इंडिया थियेटर: भूला हुआ युद्धक्षेत्र

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एशिया में अमेरिका और उसके मित्र देशों ने मिलकर एक विशाल सैन्य मोर्चा तैयार किया, जिसे चीन-बर्मा-इंडिया थियेटर (CBI Theatre) कहा गया. यह वही रणभूमि थी जहां अमेरिकी सैनिकों ने जापानी फौज से आमने-सामने की जंग लड़ी. इस मोर्चे का नेतृत्व अमेरिका की ओर से जनरल जोसेफ स्टिलवेल ने किया, जो चीन के नेता चियांग काई शेक के साथ कदम से कदम मिलाकर खड़े रहे. इतिहासकार मानते हैं कि इस थियेटर में करीब 20,000 अमेरिकी सैनिकों ने प्राण गंवाए, और इनमें से बड़ी संख्या उन जवानों की थी जिन्होंने चीन की आज़ादी की लड़ाई में बलिदान दिया.

चीन की धरती पर अमेरिकी खून

आज भी चीन की कुछ घाटियों और पहाड़ों में अमेरिकी विमानों के मलबे पड़े हैं.  कुछ जगहों पर युद्ध स्मारक बने हैं, जहां उन अमेरिकी सैनिकों के नाम दर्ज हैं जिन्होंने चीन की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए.  यही वह इतिहास है, जिस पर ट्रंप ने उंगली रखी कि चीन की विजय सिर्फ उसकी नहीं थी, उसमें अमेरिका का भी बलिदान शामिल था.

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