धार्मिक कट्टरपंथ और महिलाओं पर हमले... कैसे यूनुस के राज में बांग्लादेश में महिलाओं का जीना हुआ मुहाल
धार्मिक कट्टरपंथ के बढ़ते प्रभाव और महिलाओं पर हो रहे लगातार हमलों ने यूनुस के शासन में बांग्लादेश की सच्चाई को बेनकाब कर दिया है. जिस बदलाव को लोकतंत्र और आज़ादी की नई शुरुआत माना जा रहा था, वही महिलाओं के लिए डर, असुरक्षा और पाबंदियों का दौर बनता जा रहा है. सड़कों से लेकर विश्वविद्यालयों तक, राजनीति से लेकर सामाजिक जीवन तक-हर जगह महिलाओं की आज़ादी सिमटती दिख रही है.;
कल्पना कीजिए, एक ऐसी युवती की आवाज जो कभी क्रांति की उम्मीदों से भरी थी, आज निराशा और डर से कांप रही है. ढाका की सड़कों पर चलते हुए वह फोन पर कहती है, "मैं इस देश को छोड़कर जा रही हूं. बस, अब और नहीं." यह यूएस-रिटर्न बांग्लादेशी जर्नलिस्ट थी, जिसने अगस्त 2024 में शेख हसीना की सत्ता गिरने पर जश्न मनाया था.
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मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में नई सुबह का सपना देखा था. लेकिन 16 महीने बाद, वही सपना चूर-चूर हो चुका. बांग्लादेश, जहां महिलाएं कभी कामकाजी दुनिया की मिसाल थीं, आज कट्टरवाद के साए में सिहर रही हैं. आइए जानते हैं हसीना राज से यूनुस युग तक महिलाओं का सफर कैसे नर्क बन गया.
हसीना का शासन बनाम यूनुस का 'नया युग'
टेलीग्राफ इंडिया ऑनलाइन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त 2024 में हसीना सरकार के पतन का जश्न मनाने वाली यह युवती अब बांग्लादेश में महिलाओं की बढ़ती असुरक्षा पर सवाल उठा रही है. हसीना के 15 वर्षों के तानाशाही शासन में, समाज के हर हिस्से में डर और तानाशाही का प्रभुत्व था. यूनुस के अंतरिम शासन ने उम्मीद दी थी कि महिलाएं और छात्र सुरक्षित रहेंगे, लेकिन पिछले 16 महीनों ने दिखा दिया कि महिलाओं के लिए हालात कहीं ज्यादा भयावह हो गए हैं.
कट्टरता की चुपचाप बढ़ती जड़ें
लेकिन समय के साथ तस्वीर बदलती चली गई. पाकिस्तान समर्थक सोच, जमात-ए-इस्लामी का बढ़ता प्रभाव और धार्मिक नैतिकता के नाम पर सामाजिक नियंत्रण अब रोजमर्रा की सच्चाई बन गए. दिसंबर 2025 तक हालात यह हो गए कि महिलाएं अपनी पसंद के कपड़े पहनने से डरने लगीं. घर से बाहर निकलने से पहले परिवार सोचने लगा कि कोई पुरुष साथ हो.
बड़े पद पर बैठी महिलाओं को बनाया निशाना
यूनुस सरकार के दौर में महिलाओं पर हमले बढ़े, लेकिन दोषियों पर कार्रवाई नहीं हुई. वरिष्ठ महिला राजनेताओं, शिक्षिकाओं और प्रोफेसरों पर हमले हुए, पर कानून का डर नहीं दिखा. इस दंडहीनता ने कट्टरपंथियों के हौसले और बुलंद कर दिए.
राजनीति में महिलाओं की सिमटती जगह
महिलाओं की हताशा सिर्फ सामाजिक स्तर तक सीमित नहीं है, राजनीति में भी उनके लिए दरवाजे बंद होते दिख रहे हैं. छात्र आंदोलन से उभरी नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) में अग्रणी रहीं तसनीम जारा और ताजनुवा जबीन ने पार्टी छोड़ दी. वजह जमात-ए-इस्लामी के साथ गठबंधन. इन नेताओं का आरोप है कि चुनावी प्रक्रिया जानबूझकर देर से पूरी की गई ताकि महिलाएं न तो पार्टी से और न ही स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ सकें. इससे पहले भी कई महिला नेता पार्टी में न्याय और सुरक्षा के अभाव का हवाला देकर अलग हो चुकी थीं.
जमात की सोच और महिलाओं का भविष्य
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह सब अप्रत्याशित नहीं था. NCP के कई नेता जमात की छात्र शाखा से जुड़े रहे हैं. जमात प्रमुख का यह बयान कि महिलाएं सत्ता में आने पर सिर्फ पांच घंटे काम करेंगी, इस सोच को उजागर करता है. ऐसी मानसिकता में महिलाओं के समान अधिकार की कल्पना ही बेमानी है.
महिला श्रम शक्ति में आगे देश बना उन्ही का दुश्मन
पहले बांग्लादेश महिलाओं की श्रम शक्ति में दुनिया में सबसे आगे था, 2023 में लगभग 44% महिलाएं आर्थिक रूप से सक्रिय थीं. अब वही देश महिलाओं के खिलाफ हिंसा, नैतिक पुलिसिंग और सार्वजनिक उपद्रव की वजह से खबरों में आ रहा है. यूनुस की वैश्विक ख्याति और माइक्रोक्रेडिट कार्यक्रमों के बावजूद, उनका शासन महिलाओं के लिए खतरे का कारण बन गया.
यूनुस की विरासत: महिलाओं का काला अध्याय
माइक्रोक्रेडिट के ज़रिए महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने वाले यूनुस के नाम से आज वही महिलाएं सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रही हैं. उनकी सरकार ने जिन ताकतों को खुली छूट दी, उन्होंने महिलाओं के अधिकारों को पीछे धकेल दिया.
हसीना शासन में महिलाओं की स्थिति पर सवाल थे, लेकिन यूनुस के दौर में डर और असुरक्षा नई पहचान बन गई है. यह केवल सत्ता परिवर्तन की कहानी नहीं, बल्कि उस सवाल की कहानी है कि क्या बांग्लादेश का भविष्य महिलाओं को साथ लेकर आगे बढ़ेगा या उन्हें पीछे छोड़ देगा.