Iran Israel War: सीजफायर पर कितना भरोसा? ट्रंप, नेतन्याहू और खामेनेई के सामने सबसे बड़ा सवाल
ईरान और अमेरिका के बीच 2015 में परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. समझौते के तहत कुछ प्रतिबंधों में राहत के बदले ईरान को अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के लिए कहा गया था. ओबामा प्रशासन के तहत पेश की गई व्यापक कार्य योजना पर अमेरिका और अन्य वैश्विक शक्तियों चीन, रूस, जर्मनी, फ्रांस और यूके ने हस्ताक्षर किए थे, जिसे ट्रंप प्रशासन ने अपने पहले कार्यकाल में रद्द कर दिया था.;
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को ईरान और इजरायल के बीच सीजफायर का ऐलान किया था. हालांकि, इसके कुछ देर बार ही उनके इस एलान के उलट एक-दूसरे पर हमला बोला था. इसके बावजूद दोनों के बीच सीजफायर पर सहमति बन गई है. अब ईरान परमाणु समझौते को फिर से शुरू करने से लेकर ट्रंप की शांति दूत की भूमिका और ईरान-इजरायल युद्ध विराम के बाद आगे क्या होगा, पर सबकी नजर है. लोग जानना चाहते हैं कि आगे क्या होगा?
क्या टेबल टॉक के लिए राजी होगा?
डोनाल्ड ट्रंप के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ के अनुसार सीजफायर के बाद अगला कदम ईरान को संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के लिए बातचीत की मेज पर वापस लाना है. उन्होंने फॉक्स न्यूज से कहा, "अब समय आ गया है कि ईरानियों के साथ बैठकर व्यापक शांति समझौते तक पहुंचे." लेकिन ईरान जिस दौर से गुजर रहा है, उसमें टेबल पर बातचीत के लिए उसे मनाना इतना आसान है क्या?
क्या है 2015 का परमाणु समझौता?
ईरान और अमेरिका ने साल 2015 में एक महत्वपूर्ण परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें प्रतिबंधों में राहत के बदले ईरान को अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के लिए कहा गया था. ओबामा प्रशासन के तहत पेश की गई व्यापक कार्य योजना (JCPOA) पर अमेरिका और अन्य वैश्विक शक्तियों चीन, रूस, जर्मनी, फ्रांस और यूके ने हस्ताक्षर किए थे.
इस समझौते को साल 2018 में ट्रंप ने इसे "भयानक, एकतरफा सौदा" बताते हुए अमेरिका को इससे बाहर करने का एलान किया था. अब ट्रंप ईरान को "बेहतर" परमाणु समझौते पर बातचीत करने के लिए 2025 में राजी करने की योजना पर काम कर रहे हैं.
यहां पर इस बात का भी जिक्र कर दें कि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान जब परमाणु समझौते से अमेरिका को अलग कर लिया, IAEA के अनुसार उस समय तक ईरान लगभग 60 प्रतिशत यूरेनियम संवर्धन क्षमता हासिल कर लिया था. इसके बावजूद दोनों देश इसको लेकर तनाव के बावजूद बातचीत कर रहे थे.
ईरान इजरायल के बीच अचानक क्यों शुरू हो गया
दरअसल, ईरान-इजरायल के बीच 12 दिवसीय युद्ध के पीछे एक मुख्य कारण नेतन्याहू का यह दावा था कि ईरान परमाणु बम विकसित करने से मात्र 'कुछ सप्ताह दूर' है. नेतन्याहू के इस दावे ने अमेरिका पर दबाव बढ़ा दिया. जबकि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने कहा था कि तेहरान परमाणु बम बनाने से 'सालों दूर' है.
ईरान का अभी बातचीत के मेज पर आना मुश्किल
अब युद्ध विराम लागू होने के बाद विटकॉफ ने फॉक्स न्यूज से कहा कि अमेरिका "भरोसा" है, क्योंकि वह ईरान के साथ उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर बातचीत जारी है. विदेश विभाग के पूर्व अधिकारी और काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के वरिष्ठ फेलो रे टेकेह का मानना है कि ईरान का नेतृत्व अव्यवस्था के दौर से गुजर रहा है, जिससे बातचीत की मेज पर वापस आना मुश्किल हो गया है.
ट्रंप रख पाएंगे शांति निर्माता की भूमिका जारी!
ईरान और इजरायल के बीच ट्रंप शांति निर्माता के रूप में अपनी भूमिका जारी रख पाएंगे. ईरान और इजरायल इसके लिए सहमत होंगे. हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति पहले ही दावा कर चुके हैं कि उन्होंने मई 2025 में भारत-पाकिस्तान संघर्ष को समाप्त कर दिया. रूस और यूक्रेन के साथ इजरायल और गाजा के बीच युद्ध विराम समझौते की दिशा में काम कर रहे हैं. अगर ईरान और इजरायल के बीच युद्ध विराम जारी रहता है, तो उम्मीद है कि ट्रंप परमाणु समझौते को लेकर बातचीत को आगे बढ़ा पाएंगे.