ढाका के बंद दरवाजों के पीछे क्या चल रहा है, शेख हसीना के तख्तापलट के बाद की टाइमलाइन किस ओर कर रही इशारा?
शेख हसीना सरकार के पतन के बाद पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने बांग्लादेश में दोबारा सक्रिय दखल बढ़ा दिया था. ढाका में ISI के विशेष ‘सेल’ की स्थापना, सैन्य–खुफिया सहयोग, वीज़ा नियमों में ढील और आर्थिक संपर्कों के जरिए पाकिस्तान–बांग्लादेश नजदीकियां तेजी से बढ़ी. विशेषज्ञ इसे भारत की पूर्वी सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए गंभीर खतरा मान रहे हैं.;
दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में एक बार फिर स्याह परछाईं गहराने लगी है. बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद से जो घटनाक्रम सामने आ रहा है, वह सिर्फ ढाका की आंतरिक राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर भारत की सुरक्षा, पूर्वी सीमाओं और पड़ोसी पहले यानी ‘Neighbourhood First’ नीति पर पड़ता दिख रहा है. खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट बताती हैं कि करीब 15 साल बाद पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी ISI (Inter-Services Intelligence) ने बांग्लादेश में दोबारा संगठित एंट्री कर ली है.
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न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार शेख हसीना सरकार के अगस्त 2024 में पतन के बाद शुरू हुआ तथाकथित “डिप्लोमैटिक थॉ” अब एक पूरी रणनीतिक साझेदारी में तब्दील हो चुका है. दिल्ली में बैठे रणनीतिकार इसे महज संयोग नहीं, बल्कि एक सुनियोजित ‘ईस्टर्न फ्रंट’ री-लॉन्च मान रहे हैं.
‘ढाका सेल’: ISI की सबसे खतरनाक वापसी
क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज से सबसे चिंताजनक पहलू है - ढाका में ISI का स्पेशल सेल. अक्टूबर 2025 के अंत में सबसे पहले इस सेल का खुलासा हुआ था. खुफिया सूत्रों के मुताबिक यह सेल पाकिस्तान हाई कमीशन, ढाका के भीतर ही काम कर रहा है और इसमें ISI तथा पाकिस्तानी सेना के वरिष्ठ अधिकारी तैनात हैं. सूत्रों के अनुसार इस सेल की शुरुआती संरचना में 1 ब्रिगेडियऱ 2 कर्नल, 4 मेजर और पाकिस्तान नेवी और एयरफोर्स के कई अधिकारी शामिल हैं. यह कोई सामान्य डिप्लोमैटिक सेटअप नहीं, बल्कि एक ऑपरेशनल इंटेलिजेंस हब है, जिसे खास तौर पर भारत के खिलाफ एक्टिव किया गया है.
पाक जनरल की ढाका यात्रा और ‘क्लोज़्ड डोर मीटिंग्स’
इस पूरे ढांचे को औपचारिक रूप अक्टूबर 2025 में मिला, जब पाकिस्तान के चेयरमैन ज्वाइंट चीफ्स और स्टाफ कमेटी (Chairman Joint Chiefs of Staff Committee), जनरल साहिर शमशाद मिर्ज़ा चार दिन के दौरे पर ढाका पहुंचे. इस दौरान बांग्लादेश की नेशनल सिक्योरिटी इंटेलीजेंस (NSI) और डायरेक्टरेट जनरल ऑफ फोर्सेस इंटेलीजेंस (DGFI) के साथ कई बंद कमरे (closed-door) बैठकों का आयोजन हुआ. आधिकारिक तौर पर इन बैठकों का एजेंडा बंगाल की खाड़ी में निगारानी बताया गया, लेकिन भारतीय खुफिया एजेंसियों का मानना है कि इसका असली मकसद भारत की पूर्वी सीमा और नॉर्थ-ईस्ट पर नजर रखना और इंटेलिजेंस शेयरिंग के नाम पर ISI की गहरी पैठ बनाना है.
ढाका–इस्लामाबाद की बढ़ती नजदीकियां: रिकॉर्ड स्पीड में गठजोड़
अगस्त 2024 के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश के रिश्तों में जो तेजी आई है, वह अभूतपूर्व मानी जा रही है.
कुछ अहम कदम जिन्होंने भारत की चिंता बढ़ाई:
- वीज़ा फ्री एंट्री (23 जुलाई 2025) : राजनयिकों और सरकारी पासपोर्ट धारकों - जिनमें सैन्य अधिकारी भी शामिल हैं - को वीज़ा-फ्री एंट्री. यह ISI ऑपरेटिव्स के लिए फ्री मूवमेंट का रास्ता खोलता है.
- रक्षा सहयोग का ‘थॉ’: बांग्लादेश के QMG का रावलपिंडी दौरा और पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल तबस्सुम हबीब का ढाका आगमन, इन दौरों ने साफ संकेत दिया कि रक्षा सहयोग अब सतही नहीं रहा.
- आर्थिक और लॉजिस्टिक कवर : कराची–चटगांव डायरेक्ट शिपिंग रूट और जल्द शुरू होने वाली डायरेक्ट फ्लाइट्स, इनके जरिए इंटेलिजेंस मूवमेंट को आर्थिक सहयोग की आड़ मिल रही है.
ISI का असली एजेंडा: कट्टरपंथ और ‘हाइब्रिड रेजीम’
खुफिया विश्लेषकों के अनुसार ISI का मुख्य मिशन सिर्फ भारत विरोध नहीं, बल्कि बांग्लादेश की सामाजिक संरचना को अंदर से बदलना है. उसका मुख्य एजेंडा युवाओं का कट्टरपंथीकरण, जमात-ए-इस्लामी और इंकलाब मंच जैसे संगठनों को मजबूत करना और एक ऐसी हाइब्रिड रिजीम तैयार करना, जो पाकिस्तान की तरह सेना–कट्टरपंथ–राजनीति के त्रिकोण पर खड़ी हो.
छात्र नेता की मौत और ‘मैनेज्ड अराजकता’
18 दिसंबर को छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद जो हिंसा भड़की, उसे कई सुरक्षा विशेषज्ञ ‘Managed Crisis’ मान रहे हैं. इस दौरान ढाका में भारतीय उच्चायोग पर हमला किया गया, चटगांव में असिस्टेंट हाई कमीशन को निशाना बनाया गया और The Daily Star जैसे मीडिया संस्थानों के दफ्तर जला दिए गए.
इस अराजकता का सबसे बड़ा फायदा किसे?
- फरवरी 12 के प्रस्तावित चुनाव टल सकते हैं
- सड़कों पर कट्टरपंथी ताकतों की पकड़ मजबूत
- अंतरिम सरकार की कमजोरी उजागर
अगस्त 2024 के बाद पाकिस्तान–बांग्लादेश टाइमलाइन
- 07 अगस्त 2024: हसीना सरकार के पतन पर पाकिस्तान की ‘एकजुटता’
- 25 सितंबर 2024: UNGA के दौरान शहबाज़ शरीफ–यूनुस मुलाकात
- 14 जनवरी 2025: बांग्लादेशी जनरल की रावलपिंडी यात्रा
- 19 जून 2024: चीन–पाक–बांग्लादेश त्रिपक्षीय बैठक (कुनमिंग)
- 23 जुलाई 2025: वीज़ा नियमों में ढील
- 22 अगस्त 2025: इशाक़ डार का ढाका दौरा, हाई कमीशन स्टाफ दोगुना
- 25–28 अक्टूबर 2025: पाक जनरल साहिर शमशाद मिर्ज़ा का चार दिवसीय दौरा
भारत की कूटनीतिक चेतावनी
भारत चुप नहीं बैठा है. 19 नवंबर 2025, नई दिल्ली में Colombo Security Conclave Summit के दौरान NSA अजीत डोभाल ने सीधे तौर पर ‘ISI Cell in Dhaka’ का मुद्दा उठाया. भारत का संदेश साफ है: बांग्लादेश की जनता के साथ खड़े हैं, लेकिन ISI की वापसी रेड लाइन है.
क्या बांग्लादेश नया मोर्चा बनता जा रहा है?
जो तस्वीर उभर रही है, वह डराने वाली है. ढाका में सत्ता के गलियारों से लेकर सड़कों तक, पाकिस्तान की ISI की मौजूदगी सिर्फ भारत विरोध नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए खतरा बनती दिख रही है. अगर यह सिलसिला यूं ही चलता रहा, तो बांग्लादेश - जो कभी भारत की ‘Neighbourhood First’ नीति का अहम स्तंभ था - एक नया रणनीतिक संकट केंद्र बन सकता है. और यही है वह ‘लॉन्ग शैडो’, जिसकी आहट अब साफ सुनाई देने लगी है.