10 साल का संगठन, 36 साल का नौजवान: कैसे 'हामी नेपाल' ने नेपाल सरकार को घुटनों पर ला दिया? जानें इसके बारे में

नेपाल की सड़कों पर सोशल मीडिया बैन के खिलाफ भड़का गुस्सा अब हिंसक आंदोलन में बदल चुका है. इस पूरे आंदोलन के पीछे एक नाम सबसे आगे है- 'हामी नेपाल' और इसके 36 वर्षीय संस्थापक सुदन गुरुंग. महज 10 साल पुराने इस NGO ने युवाओं को एकजुट कर नेपाल सरकार की नींव हिला दी. संसद भवन से लेकर कई शहरों में हिंसक प्रदर्शन हुए, जिनमें 20 लोगों की मौत और सैकड़ों घायल हुए. सवाल उठ रहा है कि क्या यह आंदोलन सिर्फ सोशल मीडिया बैन का परिणाम है या इसके पीछे चीन-अमेरिका की खींचतान भी छिपी है?;

( Image Source:  instagram/sudangrg_haminepal )
Curated By :  नवनीत कुमार
Updated On : 9 Sept 2025 1:32 PM IST

नेपाल इस समय अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा है. सोशल मीडिया बैन के फैसले ने देश की राजनीति और समाज को हिला दिया है. लाखों युवा सड़कों पर उतर आए हैं, प्रदर्शन हिंसक हो चुके हैं और सरकार पर इस्तीफे का दबाव बढ़ता जा रहा है. लेकिन इस आंदोलन के पीछे सिर्फ गुस्से से ज्यादा कुछ और भी है. इस जनक्रांति जैसी स्थिति को हवा देने वाले संगठन का नाम है – 'हामी नेपाल' (Hami Nepal).

यह संगठन महज 10 साल पुराना है, लेकिन इसके मुखिया 36 वर्षीय सुदन गुरुंग ने अपने आह्वान पर पूरे देश के युवाओं को एकजुट कर दिया. सवाल उठता है कि आखिर 'हामी नेपाल' क्या है, किसने इसे बनाया और कैसे यह संगठन नेपाल को आग में झोंकने का कारण बन गया?

नेपाल को आग में झोंकने वाला संगठन कौन?

नेपाल के मौजूदा आंदोलन में 'हामी नेपाल' का नाम सबसे आगे है. यह संगठन खुद को गैर-लाभकारी और समाजसेवी संस्था बताता है, लेकिन हाल की घटनाओं ने इसे एक राजनीतिक आंदोलनकारी शक्ति के रूप में पेश कर दिया है. सरकार मान रही है कि इस एनजीओ की रणनीति ने ही देश के युवाओं को सड़क पर उतारा और स्थिति को काबू से बाहर कर दिया.

क्या है 'हामी नेपाल'?

'हामी नेपाल' की स्थापना 2015 में हुई थी. उस समय यह संगठन नेपाल में आए भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्यों से चर्चा में आया. बाद में यह युवाओं से जुड़ा और भ्रष्टाचार व सिस्टम की खामियों के खिलाफ आवाज उठाने लगा. शुरुआत में यह एनजीओ केवल मानवीय सहायता तक सीमित था, लेकिन अब यह नेपाल में सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन की मांग करने वाला मंच बन चुका है. 

कब बना था संगठन?

2015 के भूकंप ने नेपाल की तस्वीर बदल दी थी. उसी दौरान 'हामी नेपाल' की नींव रखी गई. हालांकि इसका आधिकारिक रजिस्ट्रेशन 2020 में हुआ. इस संगठन ने नेपाल की सेना के साथ भी कई प्रोजेक्ट किए, जिनमें फ्लड रेस्क्यू ट्रेनिंग और राहत कार्य शामिल थे. धीरे-धीरे 'हामी नेपाल' ने आपदा प्रबंधन से आगे बढ़कर युवाओं की आवाज बनने का काम शुरू कर दिया.

कौन है इसका मुखिया सुदन गुरुंग?

'हामी नेपाल' के संस्थापक और मुखिया सुदन गुरुंग की उम्र 36 साल है. वे पहले इवेंट मैनेजमेंट का काम करते थे और उनकी दुनिया पार्टियों और शोबिज़ के इर्द-गिर्द घूमती थी. लेकिन 2015 का भूकंप उनकी जिंदगी बदल गया. उन्होंने राहत कार्यों में खुद को झोंक दिया और धीरे-धीरे एक एक्टिविस्ट के रूप में पहचाने जाने लगे.

सुदन गुरुंग ने कैसे एकजुट किए लोग?

गुरुंग ने सोशल मीडिया का हथियार बनाकर युवाओं को जोड़ा. इंस्टाग्राम, डिस्कॉर्ड और अन्य प्लेटफॉर्म पर उन्होंने युवाओं से संवाद किया. 8 सितंबर के आंदोलन से पहले उन्होंने इंस्टाग्राम पर लिखा – “अब काफी हो चुका है, यह हमारी लड़ाई है और हमें इसे जीतना है.” इस पोस्ट ने लाखों युवाओं को प्रभावित किया और देखते ही देखते पूरा आंदोलन भड़क उठा.

कैसे एकजुट हुए Gen-Z?

नेपाल की 43% आबादी युवा है और उनमें से ज्यादातर Gen-Z वर्ग से आते हैं. सोशल मीडिया पर बैन ने उनकी सबसे बड़ी आजादी छीन ली. यह आक्रोश पहले से ही मौजूद भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और भाई-भतीजावाद के खिलाफ गुस्से में मिलकर आग बन गया. 'हामी नेपाल' ने इन्हें एक मंच पर ला दिया और VPN जैसे टूल्स से कोऑर्डिनेशन किया.

हिंसा और जनहानि

काठमांडू में हालात सबसे ज्यादा बिगड़े. संसद भवन पर धावा बोला गया, सरकारी संपत्तियों में आग लगाई गई और सुरक्षाबलों को गोली चलानी पड़ी. अब तक 20 लोगों की मौत और 300 से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं. सेना को तैनात करना पड़ा और कई शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया.

किन शहरों में सबसे ज्यादा असर?

काठमांडू, पोखरा, लुंबिनी, विराटनगर, जनकपुर, बुटवल और धरान समेत कई बड़े शहर आंदोलन की चपेट में हैं. यहां युवाओं ने न सिर्फ प्रदर्शन किया बल्कि कई जगह सरकारी दफ्तरों और मंत्रियों के आवास को निशाना बनाया. आंदोलन की लहर हर घंटे और तेज हो रही है.

क्या है अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन?

नेपाल सरकार पर आरोप है कि उसने अमेरिकी सोशल मीडिया ऐप्स को बैन करके चीन के लिए रास्ता साफ किया. चीन से लौटने के बाद पीएम केपी शर्मा ओली ने ये फैसला लिया. वहीं, आंदोलन के पीछे अमेरिकी मदद की आशंका भी जताई जा रही है. इसीलिए 'हामी नेपाल' के आंदोलन को केवल घरेलू गुस्से का नतीजा नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय खींचतान का हिस्सा भी माना जा रहा है.

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