उत्तराखंड में चमत्कार! भीषण बाढ़ और बादल फटने से भागीरथी नदी का बदला मार्ग, जानें फिर क्या हुआ

Bhagirathi News Uttarakhand: उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पूर्व कार्यकारी निदेशक पीयूष रौतेला के मुताबिक खीरगाड के बाएं किनारे पर भागीरथी के साथ संगम के ठीक ऊपर एक त्रिकोणीय मलबे के आकार का पंखा दिखाई दे रहा है. मलबे का यह भंडार विनाशकारी बाढ़ के दौरान बना था, जिसने उस समय खीरगाड के मार्ग को मोड़ दिया.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 11 Aug 2025 9:06 AM IST

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की उपग्रह तस्वीरों से पता चला है कि इस सप्ताह की शुरुआत में उत्तराखंड के धराली में आई भीषण बाढ़ के बीच बादल फटने से भागीरथी नदी का मार्ग बदल गया. इस बदलाव से नदी के मार्ग चौड़े हो गए और नदी की आकृति भी बदल गई. बाढ़ ने धराली गांव के ठीक ऊपर स्थित भागीरथी की एक सहायक नदी खीरगाड पर मलबे के एक पंख को कटाव कर दिया, जिससे नदी अपने पुराने मार्ग पर वापस आ गई. अब भागीरथी नदी अपने दाहिने किनारे की ओर बढ़ गई है.

इसरो के कार्टोसैट-2एस से प्राप्त उपग्रह तस्वीर के अनुसार जून 2024 और इस वर्ष 7 अगस्त के आंकड़ों की तुलना करने पर इसका खुलासा हुआ हे. धराली के ठीक ऊपर खीरगाड और भागीरथी के संगम पर लगभग 20 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले एक विशाल पंखे के आकार के मलबे के भंडार का खुलासा किया है, जिसका आकार लगभग 750 मीटर गुणा 450 मीटर है. इन चित्रों में नदी के जलमार्गों में व्यापक परिवर्तन, जलमग्न या दबी हुई इमारतें और बड़े स्थलाकृतिक बदलाव दिखाई दे रहे हैं.

इस घटना के बाद बदला मार्ग

टीओआई ने वरिष्ठ भूवैज्ञानिक और उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पूर्व कार्यकारी निदेशक पीयूष रौतेला के हवाले से कहा कि आपदा से पहले की तस्वीरों में खीरगाड के बाएं किनारे पर, भागीरथी के साथ इसके संगम के ठीक ऊपर, एक त्रिकोणीय मलबे के आकार का पंखा दिखाई दे रहा है. यह भंडार पिछली विनाशकारी ढलान वाली हलचल के दौरान बना था, जिसने उस समय खीरगाड के मार्ग को मोड़ दिया था.

परंपरागत रूप से ऐसे भंडारों का उपयोग केवल कृषि के लिए किया जाता था. बादल फटने, भूस्खलन और बाढ़ के जोखिम से बचने के लिए ऊंची, स्थिर भूमि पर घर बनाए जाते थे. उन्होंने आगे कहा कि पिछले दशक में पर्यटन में तेजी से वृद्धि और तीर्थयात्रियों की आमद और सड़क के पास व्यावसायिक गतिविधियों ने जलोढ़ क्षेत्र पर बस्तियों को बढ़ावा दिया है.

बाढ़ जलोढ़ को बर्बाद

उन्होंने कहा, "अचानक आई बाढ़ ने पूरे जलोढ़ क्षेत्र को नष्ट कर दिया और खीरगाड ने अपना पुराना रास्ता फिर से पा लिया. वर्तमान में, मलबे ने भागीरथी के प्रवाह को दाहिने किनारे की ओर धकेल दिया है, लेकिन समय के साथ यह इस जलोढ़ क्षेत्र को भी नष्ट कर देगा."

जल वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इस तरह के अचानक भू-आकृतिक परिवर्तनों का दूर तक व्यापक प्रभाव पड़ सकता है. नदी के बदले हुए मार्ग प्रवाह वेग को बढ़ा सकते हैं, तलछट परिवहन को बदल सकते हैं और बाढ़ स्थल से कई किलोमीटर दूर तटों को अस्थिर कर सकते हैं. समय के साथ इससे नए कटाव स्थल बन सकते हैं, पुलों को खतरा हो सकता है. इससे जलोढ़ क्षेत्र में बाढ़ के मैदान में तब्दील होने की आशंका है.

पर्यावरण वैज्ञानिक की चेतावनी

बेंगलुरू स्थित भारतीय मानव बस्ती संस्थान के पर्यावरण एवं स्थायित्व स्कूल के डीन डॉ. जगदीश कृष्णस्वामी जो एक पारिस्थितिकी जलविज्ञानी और भूदृश्य पारिस्थितिकीविद् हैं, ने कहा कि हिमालय का भूविज्ञान और जलवायु उन्हें ऐसे बदलावों के लिए काबिल बनाते हैं. उन्होंने कहा, "हिमालय दुनिया के सबसे युवा पर्वत है. ग्लेशियरों का प्राकृतिक और तापमान वृद्धि के कारण भारी मात्रा में मलबा निकलता है, जो भारी वर्षा के कारण हिमस्खलन और भूस्खलन में बदल सकता है. यह तलछट नदी के मार्ग को खासकर जहां निचली ढलानों या संकरी घाटियों में ढीले जमाव मौजूद हों, उसके स्वरूप को बदल सकता है."

उन्होंने आगाह किया कि जब बुनियादी ढांचे और घर अस्थिर जमीन पर बनाए जाते हैं, तो तटबंध और अवरोधक दीवारें अक्सर "सुरक्षा का झूठा एहसास" देती हैं. उन्होंने कहा, "हिमालय की गतिशील भू-आकृति विज्ञान और वर्षा की बढ़ती तीव्रता को देखते हुए, किसी भी बुनियादी ढांचे को डिजाइन करने और उसकी स्थापना में अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है. अन्यथा, हम लोगों और संपत्तियों को अस्वीकार्य रूप से उच्च जोखिम में डाल रहे हैं."

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