खतरे में पंच केदार में से एक तुंगनाथ! एक तरफ झुक गया मंदिर, चट्टानों में दरारें आने का क्या है कारण?
तुंगनाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और पौराणिक विरासत का जीवंत प्रतीक है. यह मंदिर पंच केदारों में तीसरे केदार के रूप में मान्यता प्राप्त है. माना जाता है कि इस स्थान का संबंध महाभारत के पांडवों से है.;
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व वाला तुंगनाथ मंदिर आज गंभीर खतरे का सामना कर रहा है. यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह दुनिया का सबसे ऊँचाई पर स्थित शिव मंदिर भी है. यह मंदिर अब प्राकृतिक और भूगर्भीय समस्याओं से जूझ रहा है, जिससे इसके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं.
हाल ही में तुंगनाथ मंदिर की चट्टानों में दरारें देखी गई हैं. बारिश के समय इन दरारों से पानी गर्भगृह (मंदिर के सबसे पवित्र भाग) में रिसने लगता है, जो मंदिर की संरचना और धार्मिक पवित्रता दोनों के लिए गंभीर चिंता का विषय है. चट्टानों के बीच गैप बढ़ने का मुख्य कारण माना जा रहा है – क्षेत्र में हो रहा भू-धसाव (land subsidence). लगातार मौसम बदलाव और भौगोलिक हलचलों की वजह से मंदिर की नींव कमजोर पड़ रही है.
पत्र लिखकर सीएम से मांग
मंदिर की इस बिगड़ती स्थिति को देखते हुए, श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के पूर्व अध्यक्ष अजेन्द्र अजय ने राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को एक पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है. उन्होंने पत्र में अनुरोध किया है कि तुंगनाथ जैसे ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिर के संरक्षण के लिए शीघ्र मरम्मत और सुदृढ़ीकरण कार्य शुरू किए जाएं.
मरम्मत की तयारी पूरी
तुंगनाथ मंदिर की हालत को समझने और उसकी सुरक्षा के लिए तीन बड़ी संस्थाओं ने मिलकर जांच की है- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI), केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (CBRI), रुड़की इन संस्थाओं ने मंदिर और उसके आसपास के इलाके की तकनीकी रूप से अच्छी तरह से जांच की है. अब पर्यटन और धर्मस्व विभाग (पहले जिसे धर्मस्व और संस्कृति विभाग कहा जाता था) ने CBRI को मंदिर की मरम्मत और मजबूत बनाने की ज़िम्मेदारी दी है। CBRI इस काम के लिए डिज़ाइन, नक्शा और पूरी योजना तैयार कर चुका है. श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के वर्तमान अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी ने बताया है कि मंदिर की मरम्मत के लिए सारी तैयारी पूरी हो गई है काम जल्द ही शुरू होगा. यह मरम्मत न सिर्फ मंदिर को और मज़बूत बनाएगी, बल्कि यह काम मंदिर को भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रखने में मदद करेगा.
पौराणिक विरासत है ये मंदिर
तुंगनाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और पौराणिक विरासत का जीवंत प्रतीक है. यह मंदिर पंच केदारों में तीसरे केदार के रूप में मान्यता प्राप्त है. माना जाता है कि इस स्थान का संबंध महाभारत के पांडवों से है, जिन्होंने अपने पापों से मुक्ति के लिए भगवान शिव की खोज की थी. मंदिर के पास स्थित चंद्रशिला चोटी से हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियाँ दिखाई देती हैं, जो इसे ट्रैकिंग प्रेमियों और प्रकृति प्रेमियों के लिए भी खास बनाता है. यहां तक पहुंचने के लिए चोपता से 3.5 किलोमीटर की चढ़ाई करनी होती है, जो एक लोकप्रिय ट्रैकिंग रूट भी है.