नए साल पर बना रहे उत्तराखंड घूमने का प्लान, तो जान लें किस चीज के लिए देना पड़ेगा एक्सट्रा चार्ज
पहाड़, जंगल और नदियों से सजा उत्तराखंड लंबे समय से पर्यावरणीय दबाव और सड़कों पर बढ़ते ट्रैफिक की चुनौती झेल रहा है. राज्य सरकार ने ग्रीन सेस लागू करने का ऐलान कर साफ संकेत दिया है कि विकास के साथ-साथ प्रकृति की रक्षा भी उसकी प्राथमिकता है. 1 जनवरी 2026 से लागू होने वाला यह कदम पर्यावरण संरक्षण और सड़क सुधार की दिशा में एक मजबूत पहल माना जा रहा है.;
अगर आप नए साल में उत्तराखंड घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो सफर पर निकलने से पहले यह जरूरी जानकारी जान लेना आपके लिए फायदेमंद होगा. पहाड़ों की खूबसूरती और सुकून का आनंद लेने जाने वाले पर्यटकों को अब यात्रा के दौरान एक अतिरिक्त शुल्क देना पड़ सकता है.
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राज्य सरकार ने पर्यावरण संरक्षण और सड़कों के बेहतर रखरखाव के लिए एक नया नियम लागू करने का फैसला लिया है, जिसका असर खासतौर पर राज्य के बाहर से आने वाले वाहनों पर पड़ेगा. ऐसे में ट्रिप प्लान करते समय इस एक्सट्रा चार्ज को ध्यान में रखना जरूरी होगा, ताकि यात्रा के दौरान कोई परेशानी न हो.
क्या है ग्रीन सेस नियम?
उत्तराखंड पहाड़ों से घिरा एक हिमालयी राज्य है. यहां भारी गाड़ियों की ज्यादा आवाजाही से सड़कों के साथ-साथ हवा, जंगल और पहाड़ी ढांचे को भी नुकसान होता है. सरकार ने इस समस्या को समझते हुए ग्रीन सेस लागू करने का फैसला लिया है. इस सेस से मिलने वाला पैसा सड़कें सुधारने, पेड़ लगाने, प्रदूषण कम करने और पर्यावरण की सुरक्षा जैसे जरूरी कामों में खर्च किया जाएगा. यह कदम बताता है कि सरकार का मकसद सिर्फ पैसा जुटाना नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रकृति को सुरक्षित रखना भी है.
बाहरी वाहनों पर लगेगा चार्ज
ग्रीन सेस की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसका असर ज़्यादातर उन गाड़ियों पर पड़ेगा जो दूसरे राज्यों से उत्तराखंड में आती हैं. राज्य में रजिस्टर्ड गाड़ियों को इस चार्ज से बाहर रखा गया है, ताकि यहां के लोगों और स्थानीय कारोबार पर कोई अतिरिक्त बोझ न पड़े. इससे साफ होता है कि सरकार ने यह फैसला सोच-समझकर लिया है और इसमें स्थानीय हितों को पूरी प्राथमिकता दी गई है.
गाड़ी के हिसाब से तय होगा शुल्क
सरकार ने ग्रीन सेस की राशि वाहनों के प्रकार और उनके वजन को ध्यान में रखकर तय की है. छोटे और हल्के वाहनों से कम शुल्क लिया जाएगा, जबकि भारी ट्रक और बड़ी बसों को ज्यादा सेस देना होगा. इसका मकसद यह है कि जो वाहन सड़कों और पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं, उनकी जिम्मेदारी भी ज्यादा तय हो. ग्रीन सेस की रकम करीब 80 रुपये से शुरू होकर 700 रुपये तक रखी गई है, ताकि पर्यावरण संरक्षण और यातायात के बीच संतुलन बना रहे.
इन गाड़ियों को छूट
सरकार ने इंसानियत और पर्यावरण दोनों को ध्यान में रखते हुए कई तरह की गाड़ियों को ग्रीन सेस से बाहर रखा है. एंबुलेंस, शव वाहन, फायर ब्रिगेड, सेना और सरकारी वाहनों पर यह शुल्क नहीं लगेगा, ताकि जरूरी सेवाओं पर कोई असर न पड़े. इसके अलावा खेती में इस्तेमाल होने वाले ट्रैक्टर और अन्य कृषि उपकरणों को भी राहत दी गई है. वहीं इलेक्ट्रिक, सीएनजी और सोलर हाइब्रिड वाहनों को छूट देकर सरकार ने साफ मैसेज दिया है कि वह साफ-सुथरे और पर्यावरण के अनुकूल परिवहन को बढ़ावा देना चाहती है.
डिजिटल सिस्टम से पारदर्शी
ग्रीन सेस वसूलने के लिए सरकार राज्य की सीमाओं पर चेक पोस्ट और आधुनिक डिजिटल सिस्टम लगाएगी. इससे पूरी प्रक्रिया साफ-सुथरी और पारदर्शी रहेगी और पैसे की कोई गड़बड़ी होने की आशंका कम होगी. यह साफ संकेत है कि सरकार इस नियम को लागू करने से पहले सभी तकनीकी और प्रशासनिक इंतज़ाम पूरी तरह से दुरुस्त कर रही है.
पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन की मिसाल
कुल मिलाकर देखा जाए तो ग्रीन सेस उत्तराखंड सरकार की दूरदर्शी सोच को दर्शाता है. इस फैसले से साफ होता है कि सरकार विकास और पर्यावरण को अलग-अलग नहीं, बल्कि एक साथ लेकर चलना चाहती है. अगर इस योजना को सही तरीके से लागू किया गया, तो यह पहल राज्य को साफ-सुथरा, सुरक्षित और लंबे समय तक टिकाऊ विकास की राह पर आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएगी.