बर्फ का बड़ा टुकड़ा साइट पर गिरा और... चमोली हादसे में बचकर निकले शख्स ने बताई रूह कंपा देने वाली कहानी

हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों में भीषण हिमस्खलन हुआ, जिससे कई मज़दूर और इंजीनियर बर्फ के नीचे दब गए. विपन कुमार ने घंटों की जद्दोजहद के बाद खुद को बचाया, लेकिन कई लोग अब भी लापता हैं. सेना और बचाव दल राहत अभियान चला रहे हैं. ठंड, अंधेरा और भय के बीच यह जीवित रहने की एक अद्भुत कहानी बन गई.;

Edited By :  नवनीत कुमार
Updated On : 2 March 2025 7:29 AM IST

उत्तराखंड के माणा गांव में हुए हादसे के बाद सुरक्षित निकले लोगों ने अपनी आपबीती बताई है. लोगों ने बताया कि हम मौत के मुंह से बचकर निकले हैं. इस हादसे में बचे विपिन ने बताया कि चमोली की जमी हुई पहाड़ियों में भारी मशीनरी चलाने के बाद मैंने लंबी शिफ्ट पूरी की थी. मैं कंटेनर के अंदर आराम कर रहा था, जिसे दूरदराज के इलाकों में काम करने वाले मज़दूर अस्थायी आवास के रूप में इस्तेमाल करते हैं.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए विपिन ने बताया कि हमें रिएक्ट करने का मौका नहीं मिला और देखते ही देखते उसकी पूरी दुनिया बर्फ में तब्दील हो गई. मैंने एक तेज गर्जना सुनी, जैसे कोई जोरदार गड़गड़ाहट हो, इससे पहले कि मैं कुछ कर पाता, सब कुछ अंधेरा हो गया. बर्फ का बड़ा टुकड़ा एक झटके के साथ साइट पर गिरा, जिससे वह और उसके सहकर्मी मोटी बर्फ की परत के नीचे दब गए. चारों ओर सन्नाटा छा गया.

काफी मशक्कत के बाद बची जान

मैं हिलने-डुलने में असमर्थ था और मेरे सहयोगी का शरीर बर्फ और भय से जकड़ गया. मुझे लगा कि यही अंत है. मैं हिल भी नहीं सकता था, कुछ भी नहीं देख सकता था. लेकिन मेरे भीतर जीवित रहने की इच्छा जागी. मैंने सांस लेने के लिए हांफना शुरू किया, अपने शरीर को मोड़ा और अपने ऊपर पड़े भारी वजन को हटाने की कोशिश की. इस प्रक्रिया में उसे कई घंटे लग गए, लेकिन आखिरकार, उसने खुद को मुक्त किया और लड़खड़ाते हुए पास के आर्मी बेस की ओर बढ़ा.

दर्द से ज्यादा जान बचाना जरूरी

जहां विपन दबा था, उससे कुछ ही दूरी पर दर्जनों मज़दूर कंटेनरों में सो रहे थे. एवलांचे के प्रचंड बल ने इन भारी ढांचों को उछाल दिया, जैसे टिन के डिब्बे हों. कुछ कंटेनर बर्फ़ से ढकी सड़क पर गिर पड़े और पूरी तरह से कुचल गए. पतली धातु की दीवारें कागज़ की तरह फट गईं. एक अन्य जीवित बचे व्यक्ति ने बताया कि कंटेनर लुढ़क गए, दो तो सीधा बर्फ़ से ढकी सड़क पर जा गिरे. हम किसी तरह रेंगकर बाहर निकले और नंगे पैर ही भागे. कुछ के पास ठीक से कपड़े तक नहीं थे. ठंड असहनीय थी, लेकिन उस समय दर्द से ज्यादा जान बचाना ज़रूरी था.

परिवार को नहीं बता सका हालात

विपन, जो अब भी पीठ के गंभीर दर्द से जूझ रहा था, अस्पताल के एक कोने में चुपचाप बैठा था. उसके हाथ में उसका फोन था, लेकिन वह उसे इस्तेमाल नहीं कर पा रहा था. चंबा में उसके घर पर उसकी पत्नी, माता-पिता और बड़ा भाई इंतज़ार कर रहे थे. वे अब भी यह नहीं जानते थे कि विपन मौत के मुंह से लौट आया था. विपिन ने बताया कि हिमस्खलन से कुछ मिनट पहले मैंने अपनी पत्नी से आखिरी बार शुक्रवार सुबह 5 बजे बात की थी. आज, जब मेरे परिवार ने फिर से कॉल किया, तो मैं उन्हें कुछ भी नहीं बता सका. यह कहते हुए उसकी आवाज़ भर्रा गई.

देहरादून का शख्स है लापता

इन कंटेनरों में केवल मज़दूर ही नहीं, बल्कि सिविल इंजीनियर, मैकेनिक, रसोइया और मशीन ऑपरेटर भी थे. वे माणा दर्रे की सड़क से बर्फ हटाने के लिए भेजे गए थे. एक ऐसा मार्ग जो बर्फीली सीमा पर तैनात भारतीय सैनिकों के लिए जीवनरेखा की तरह है. लेकिन अब, उन्हें खुद बचाए जाने की ज़रूरत थी. कुछ मज़दूर मामूली चोटों के साथ भागने में सफल रहे, लेकिन कुछ की किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी. बिहार के रहने वाले प्रोजेक्ट मैनेजर को हिमस्खलन के दौरान कंटेनर से बाहर फेंक दिया गया, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया और उसके घाव भरने के लिए 29 टांके लगाने पड़े. हालांकि, एक अन्य कर्मचारी अब भी लापता है. सैन्य अस्पताल के एक अधिकारी ने बताया, "उस कंटेनर से गिरने वाला व्यक्ति देहरादून का रहने वाला है. उसे खोजने के प्रयास जारी हैं." शनिवार तक, बचे हुए लोग ज्योतिर्मठ पहुंचे, जहां सेना के डॉक्टरों ने घायलों की जांच की.

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