अब यूपी में होगी किरायेदारों की बल्ले बल्ले! रेंट एग्रीमेंट बनाना हुआ सस्ता, स्टांप ड्यूटी में छूट- 20 पॉइंट्स में जानें A टू Z
उत्तर प्रदेश सरकार ने किरायेदारी व्यवस्था को पारदर्शी और विवाद-मुक्त बनाने के लिए ऐतिहासिक फैसला लिया है. अब 10 वर्ष तक की अवधि वाले रेंट एग्रीमेंट पर स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस में भारी छूट दी जाएगी. नई व्यवस्था में अधिकतम शुल्क की सीमा तय कर दी गई है, जिससे मकान मालिक और किरायेदार बिना आर्थिक बोझ के रजिस्ट्री करा सकेंगे. सरकार का मानना है कि कम शुल्क से लोग मौखिक सौदों से बाहर निकलेंगे और किरायेदारी में पारदर्शिता बढ़ेगी.;
उत्तर प्रदेश सरकार ने किरायेदारी को सरल, सुरक्षित और विवाद-मुक्त बनाने के लिए बड़ा कदम उठाया है. सरकार ने 10 वर्ष तक की अवधि वाले रेंट एग्रीमेंट (किरायानामा विलेख) पर लगने वाले स्टांप शुल्क और रजिस्ट्रेशन फीस में भारी छूट देने का निर्णय लिया है. यह बदलाव इसलिए जरूरी था क्योंकि अब तक अधिकतर किरायानामे बिना रजिस्ट्री के मौखिक समझौतों पर आधारित होते थे, जिससे विवाद बढ़ते थे और सरकारी राजस्व की भी हानि होती थी.
सरकार का उद्देश्य किरायेदारी व्यवस्था को औपचारिक बनाना और घर मालिक-किरायेदार दोनों को कानूनी सुरक्षा देना है. नई व्यवस्था से अब किराया अनुबंध की रजिस्ट्री करना न सिर्फ आसान बल्कि बेहद सस्ता हो जाएगा. इससे लोग बिना किसी डर के किरायेदारी विलेख तैयार कराएंगे और रेंटल मार्केट में पारदर्शिता आएगी.
- यूपी सरकार ने किरायेदारी व्यवस्था को आधुनिक बनाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाया. पहली बार रेंट एग्रीमेंट को पूरी तरह औपचारिक, पारदर्शी और विवाद-मुक्त बनाने पर जोर दिया गया.
- 10 साल तक की अवधि वाले रेंट एग्रीमेंट पर स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस में भारी छूट मंजूर की गई. यह छूट पहले कभी इतने बड़े स्तर पर लागू नहीं हुई थी.
- मकान मालिक और किरायेदार दोनों को लिखित समझौते के लिए प्रोत्साहित करना इसका प्रमुख उद्देश्य है. मौखिक एग्रीमेंट भविष्य में विवादों का सबसे बड़ा कारण बनते थे.
- पहले एक साल से ज्यादा अवधि के एग्रीमेंट की रजिस्ट्री अनिवार्य थी, लेकिन उच्च शुल्क के कारण लोग इससे बचते थे. इससे सरकार को भी राजस्व नुकसान होता था.
- अधिकांश किरायानामे लिखित नहीं होते थे या रजिस्टर्ड नहीं होते थे, जिससे कानूनी सुरक्षा दोनों पक्षों को नहीं मिल पाती थी.
- जीएसटी, बिजली विभाग और अन्य एजेंसियाँ पत्रावलियों में किरायेदारी का पता लगाती थीं. बाद में विभागों को कमी शुल्क की वसूली की कार्रवाई करनी पड़ती थी.
- सरकार ने माना कि भारी शुल्क लोगों के रजिस्ट्री न कराने का मुख्य कारण था. इसलिए शुल्क कम करने का कदम किरायेदारी को औपचारिक बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण है.
- नई व्यवस्था में किरायेदारी अवधि और औसत वार्षिक किराए के आधार पर अधिकतम शुल्क की सीमा तय कर दी गई है. इससे अनावश्यक ज्यादा भुगतान का डर समाप्त होगा.
- औसत वार्षिक किराया तय करते समय 10 लाख रुपये की अधिकतम सीमा निर्धारित की गई है. इससे बड़े किराए वाले आवासीय या छोटे वाणिज्यिक किरायानामे भी कवर हो जाते हैं.
- नई शुल्क नीति में किरायेदारी अवधि के हिसाब से 3 स्लैब बनाए गए हैं. 1 वर्ष, 1–5 वर्ष और 5–10 वर्ष. प्रत्येक पर अलग-अलग अधिकतम स्टांप शुल्क निर्धारित है.
- 2 लाख तक वार्षिक किराए पर शुल्क मात्र ₹500 से ₹2000 तक होगा. जो पहले की तुलना में बहुत कम है.
- 2–6 लाख वार्षिक किराए पर शुल्क ₹1500 से ₹7500 तक तय किया गया. यह छोटे व्यवसायों और परिवारों के लिए बड़ा राहत कदम है.
- 6–10 लाख वार्षिक किराए वाले स्लैब पर अधिकतम फीस ₹10,000 तक सीमित की गई. पहले यह रकम इससे कई गुना अधिक लगती थी.
- नई नीति में टोल पट्टे और खनन पट्टों को छूट से बाहर रखा गया है. क्योंकि इनसे होने वाली संभावित राजस्व हानि बहुत अधिक होती.
- नई व्यवस्था से रेंटल डीड की वैधता बढ़ेगी, क्योंकि लोग अब आसानी से और कम लागत में रजिस्ट्री करा सकेंगे.
- किरायेदारी विलेख की रजिस्ट्री अब अधिक पारदर्शी होगी, जिससे धोखाधड़ी और अवैध कब्जे जैसे मामलों में कमी आएगी.
- रजिस्ट्री होने पर किरायेदार और मकान मालिक दोनों को कानूनी सुरक्षा मिलेगी. किराया विवाद, बेदखली और जमा धन की समस्याएँ कम होंगी.
- इसे किरायेदारी विनियमन विधेयक के प्रभावी क्रियान्वयन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.
- राज्य मंत्री रवींद्र जायसवाल ने कहा कि नई फीस प्रणाली से आम जनता का सीधा लाभ होगा. लोग अब बिना बोझ रजिस्ट्री कराएंगे.
- 20. यह बदलाव रेंटल मार्केट को औपचारिक, सुरक्षित और सुव्यवस्थित बनाएगा, जिससे पूरे राज्य में किरायेदारी व्यवस्था बेहतर होगी.