पहले बेटी, फिर बेटा... अब तीसरी बार उजड़ी मां की कोख, तीन बच्चों की मौत से टूटा लखनऊ का परिवार, हादसों में गई सबकी जान
लखनऊ के एक परिवार के तीन बच्चों की जान सड़क हादसे में चली गई. अभी माता-पिता दूसरे बच्चे की मौत के गम से उबरे भी नहीं थे कि तीसरी बार एक मां को अर्थी देखनी पड़ी. लखनऊ की जया की जान रोड एक्सीडेंट में गई.;
शनिवार की रात राजस्थान के बारां जिले में गजनपुरा हाईवे पर एक सफर ने ऐसी करवट ली कि दो लखनऊ के परिवारों की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई. एक कार, जो कोटा की ओर जा रही थी, तेज रफ्तार में एक पिकअप से जा भिड़ी. टक्कर इतनी भीषण थी कि कार के परखच्चे उड़ गए. हादसे में लखनऊ के नमन चतुर्वेदी, दिल्ली के राहुल प्रकाश, गोरखपुर की अंशिका मिश्रा और लखनऊ की जया शर्मा की मौत हो गई.
जया के घर में मातमा का ऐसा माहौल, जिसने सभी को तोड़ दिया. एक मां की तीसरी बार कोख उजड़ गई थी. जिस मां ने नौ महीने अपनी कोख में रखा, लोरी गाकर सुलाया, चलना सिखाया. वही मां अगर एक-एक करके तीन बच्चों को खो दे, तो उसकी सांसें तो चलती हैं, पर ज़िंदगी नहीं बचती है. ज़रा सोचिए, एक बार नहीं, तीन बार वही अर्थी वही अंतिम विदाई, वही टूटती उम्मीदें.
जया की मां की चीखें
जब जया का शव लखनऊ के अमीनाबाद स्थित घर पहुंचा, तो जैसे पूरा मोहल्ला रो पड़ा. बहन पिंकी जैसे ही जया के शव के साथ घर में दाखिल हुई, मां मंजू शर्मा की चीख गूंज उठी. पहले सोनाली, फिर अभिषेक और अब तू भी जया... भगवान, बेटी की जगह मुझे उठा लेता..." मंजू बेहोश हो गईं. पिता विनोद शर्मा, जो अमीनाबाद में एक छोटी सी कॉस्मेटिक दुकान चलाते हैं, शव को देखते ही फूट-फूटकर रो पड़े.
सड़क हादसे में गई तीनों बच्चों की जान
एक ऐसा परिवार जिसने पहले 2014 में बेटी सोनाली को, फिर 2022 में इकलौते बेटे अभिषेक को और अब 2024 में बेटी जया को सड़क हादसे में खो दिया. पांच बच्चों वाला ये परिवार अब दो बच्चों तक सिमट गया है. पिंकी और हर्षित.
भैंसाकुंड में अंतिम विदाई
एक पिता ने तीसरी बार दी अग्नि, दूसरे ने इकलौते बेटे को विदा किया. रविवार दोपहर, लखनऊ के भैंसाकुंड श्मशान घाट पर दो चिताएं एक साथ जल रही थीं. एक ओर विनोद शर्मा अपनी तीसरी संतान जया को मुखाग्नि दे रहे थे, दूसरी ओर राम कुमार चतुर्वेदी अपने इकलौते बेटे नमन को अंतिम विदाई दे रहे थे. वहां मौजूद हर शख़्स की आंखें नम थीं.
यह सिर्फ एक हादसे की खबर नहीं, ये उन माता-पिता की चीख है, जो हर सुबह बच्चों की तस्वीर देख कर दिन काटते हैं. ये कहानी पूछती है कि क्या सड़क पर रफ्तार ज़िंदगी से ज़्यादा ज़रूरी हो गई है? क्या हमारे ट्रैफिक सिस्टम, हेलमेट, सीटबेल्ट और नियम बस दिखावे हैं? ये हादसा हम सबके लिए एक चेतावनी है. सड़क सिर्फ रास्ता नहीं, कभी-कभी वो मोड़ भी होती है, जहां ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल जाती है.