फतेहपुर मकबरे तक कैसे पहुंची भीड़? 6 दिन तक हुई जांच, कमिश्नर-आईजी की 80 पन्नों की रिपोर्ट में क्या-क्या हुआ खुलासा?

विवाद सिर्फ मकबरे तक सीमित नहीं था बल्कि उसके आसपास की जमीन पर भी कई तरह के कानूनी और धार्मिक विवाद सालों से चले आ रहे हैं. मकबरे की जमीन गाटा संख्या 753 में दर्ज है, जिसे राष्ट्रीय संपत्ति माना गया है.;

( Image Source:  X : @mukeshkrd )
Edited By :  रूपाली राय
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यह घटना उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले से जुड़ी है, जहां हाल ही में एक मकबरे को लेकर बड़ा बवाल हुआ था. इस पूरे मामले की तह तक जाने और जिम्मेदारी तय करने के लिए शासन ने विशेष जांच करवाई. इसके तहत प्रयागराज के कमिश्नर विजय विश्वास पंत और प्रयागराज आईजी अजय मिश्रा को मौके पर भेजा गया. दोनों वरिष्ठ अधिकारियों ने लगभग छह दिनों तक फतेहपुर में डेरा डालकर हालात की बारीकी से जांच-पड़ताल की और फिर 80 पन्नों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर सरकार को भेज दी. 

रिपोर्ट में सबसे अहम खुलासा यह किया गया है कि आखिर डाक बंगले से निकली भीड़ बिना किसी रोक-टोक के मकबरे तक कैसे पहुंच गई? जांच में पाया गया कि फतेहपुर पुलिस प्रशासन ने उस दौरान कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई थी न तो रास्ते में प्रभावी बैरिकेडिंग की गई और न ही किसी स्तर पर भीड़ को रोकने की कोशिश हुई. भीड़ ने आसानी से बैरिकेडिंग तोड़ दी और मकबरे तक पहुंच गई. इस दौरान मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारी और जवान पूरी तरह निष्क्रिय रहे.

विवादित जमीन का मुद्दा

रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि विवाद सिर्फ मकबरे तक सीमित नहीं था बल्कि उसके आसपास की जमीन पर भी कई तरह के कानूनी और धार्मिक विवाद सालों से चले आ रहे हैं. मकबरे की जमीन गाटा संख्या 753 में दर्ज है, जिसे राष्ट्रीय संपत्ति माना गया है. दस्तावेज़ों के अनुसार इस गाटा संख्या 753 पर दर्ज मकबरे का मालिकाना हक आना हक से लेकर उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड तक दर्ज किया गया है. यही नहीं, रिपोर्ट में गाटा संख्या 1159 का भी उल्लेख किया गया है. इस गाटा में 'ठाकुर जी विराजमान मंदिर' का ज़िक्र 6 नंबर पर दर्ज है. इसका अर्थ है कि यह जमीन भी धार्मिक और कानूनी विवादों से जुड़ी हुई है.

प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल

रिपोर्ट में यह महत्वपूर्ण बात कही गई है कि जब हिंदू संगठनों ने मकबरे पर साफ-सफाई और अन्य कार्यक्रमों के लिए लोगों से अपील की थी, उस समय जिला प्रशासन ने इन संगठनों से किसी भी प्रकार की बातचीत नहीं की. समान्य तौर पर पुलिस और प्रशासन ऐसे मामलों में संबंधित संगठनों से संवाद स्थापित करते हैं, ताकि स्थिति बिगड़ने से पहले ही कोई सामंजस्य बनाया जा सके. लेकिन फतेहपुर में प्रशासन और पुलिस ने यह जिम्मेदारी पूरी तरह से निभाने में लापरवाही बरती.

कोर्ट और सरकार की भूमिका

रिपोर्ट में एक और बड़ी कमी की ओर इशारा किया गया है। इसमें कहा गया है कि मालिकाना हक को लेकर कई बार सिविल जज और ऊपरी अदालतों में मुकदमे चले, लेकिन उनमें सरकार ने कभी भी स्वयं को पार्टी नहीं बनाया. यानी सरकार ने इन विवादित मामलों में अपनी ओर से कोई ठोस पक्ष नहीं रखा. यही नहीं, अदालत से आए किसी भी फैसले के खिलाफ सरकार ने अब तक अपील करने की जहमत भी नहीं उठाई. इससे यह धारणा बनी कि सरकार इन विवादों को सुलझाने की बजाय टालती रही. 

सरकार की कमियां

कमिश्नर और आईजी की संयुक्त रिपोर्ट में यह साफ कहा गया है कि तत्कालीन सरकार और प्रशासन ने इस संवेदनशील मामले को संभालने में गंभीर चूक की. न तो विवादित भूमि और मकबरे के स्वामित्व को स्पष्ट करने के लिए ठोस कदम उठाए गए और न ही मौके पर कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए उचित प्रबंधन किया गया.

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